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महाराष्ट्र की करीब 40 प्रतिशत आबादी सूखे की मार से बेहाल है, वहीं सत्तारूढ़ नेता, विशेषकर एनसीपी के नेता अपने भद्दे बयानों से लोगों को भड़का रहे हैं। पिछले दिनों राज्य के उपमुख्यमंत्री और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने पुणे के इंदापुर में एक जनसभा में कहा, 'राज्य की नहरों में पानी नहीं है तो क्या इसके लिए मैं बांधों में जाकर पेशाब करूं।' इस बयान के बाद तो राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया। भाजपा, शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, रिपब्लिकन पार्टी सहित सभी विपक्षों दलों ने इस बयान की घोर निन्दा की और अजीत पवार से इस्तीफा देने की मांग की। किन्तु अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार की तरह ही बेशर्म बने रहे। अपने पद से इस्तीफा तो नहीं दिया पर इस बयान के लिए उन्होंने माफी जरूर मांगी है। किन्तु लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या एनसीपी में भाई-भतीजावाद चरम पर है? लोग कह रहे हैं कि तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में गृहमंत्री आरआर पाटिल ने राज्य की कानून-व्यवस्था पर एक गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया था। उस समय एनसीपी ने उनसे तुरन्त पद से त्यागपत्र दिलवा दिया था। इसी तरह तेलगी मामले को लेकर उस समय के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल को भी इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। अब शरद पवार अपने भतीजे अजीत पवार को सिर्फ माफी मांगने की सलाह देकर चुप हैं। लिहाजा विपक्ष ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे ने तथा विधान परिषद् में विनोद तावड़े ने काम रोको प्रस्ताव के जरिए अजीत पवार के इस्तीफे की मांग उठाई, जिनका सभी विपक्षी दलों ने साथ दिया। नवनियुक्त राज्य भाजपाध्यक्ष देवेन्द्र फडणवीस ने कहा है कि भाजपा अजीत पवार के इस्तीफे की मांग को लेकर गंभीर है।
नेताओं के बयानबाजी के बीच अकाल का मुद्दा न्यायालय पहुंच गया है। एक याचिका पर सुनवाई के बाद मुम्बई उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि जब राज्य के कुछ हिस्सों में पेयजल की समस्या से लोग जूझ रहे हैं तब सरकार सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के बजाय पेयजल की आपूर्ति पर ज्यादा ध्यान दे। द.वा. आंबुलकर
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