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मैंने सिंगापुर में आयोजित जूनियर एशियन चैम्पियनशिप-2010 में रिकार्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक, गोल्डन एयरटेल हाफ मैराथन में कांस्य पदक तथा जूनियर ओलम्पिक, 2010 सिंगापुर में भारत का रिकार्ड बनाकर पदक जीता, यह सारी उपलब्धियां अति सीमित साधनों के बलबूते प्राप्त की थी। एथलीट की दुनिया में जब कदम रखा तो मेरे पैरों में जूते नहीं थे। दौड़ने के लिऐ ट्रैक नहीं था। गांव की पथरीली सड़कें थीं और प्रशिक्षक की जगह साथ में पढ़ने वाले लड़के थे। लेकिन मैंने कभी भी संसाघनों को प्राथमिकता नहीं दी। मैंने अपना ध्यान सिर्फ 'टाइमिंग के साथ दौड़ लगाने' पर लगाये रखा। इसी कारण मुझे सफलता मिली।'
'मेरे मां-बाप किसान हैं। खेती के नाम पर उनके पास मात्र डेढ़ बीघा जमीन है। इससे पूरे परिवार, जिसमें मैं और मेरी चार बहनें शामिल हैं, का पढ़ाई से लेकर सारा खर्च शामिल था। ऐसे में मैं उनसे अपने एथलीट के सामानों या संसाधनों के लिए पैसे कैसे मांग सकता था। संकोची स्वभाव होने के कारण मैंने मित्रों से भी मदद नही मांगी। मां-बाप मेरी रुचि देखते हुए प्राय: मेरे लिए अधिक से अधिक सुविधाएं और खान-पान की व्यवस्था करते रहते थे।'
'मां-बाप शुरू में चाहते थे कि उनका एकलौता बेटा पढ़-लिखकर कहीं नौकरी करें, लेकिन जब मैं पढ़ाई से अलग एथलीट बनने की ओर बढ़ा तो उन्होंने विरोध तो नहीं किया, लेकिन सहमति भी नही दिखाई। हां, आस-पास के लोग मेरी इस कोशिश का विरोध करते रहे, लेकिन मैं दौड़ता रहा।'
'आज मैं दौड़ती दुनिया में जिस मुकाम पर हूं उसे देखकर अब तमाम लोग, विशेषकर मेरे आस-पास के गांव के लड़के एथलीट बनने लगे हैं। मेरे गांव के बच्चों ने अभी इटावा में आयोजित राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में 7 मेडल जीते हैं। मैं इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं।'
इन्द्रजीत एथेलेटिक्स की दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें आभाव का दर्द कहीं न कहीं जरूर कचोटता है। वे कहते हैं, 'अच्छी गाड़ी, अच्छा पेट्रोल रहेगा तो गाड़ी ज्यादा बोझ लेकर भी दूर तक चली जायेगी। लेकिन गाड़ी पुरानी या कमजोर रहेगी तो लक्ष्य तक पहुंचने में भी संशय बना रहता है। एक बात और, लोगों को वही काम करना चाहिए जो उनकी रुचि का हो। किसी के दवाब अथवा अनिच्छा से कोई कार्य नहीं करना चाहिए, क्योकि ऐसे में सफलता मिलनी कठिन हो जाती है।' प्रस्तुति : हरिमंगल
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