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सऊदी अरब वह देश है जहां पैगम्बर हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ। पवित्र मक्का में इस्लाम की नींव रखी गई है। यह वही नगर है जहां पवित्र कुरान अवतरित हुई। इसलिए यह नगर मुस्लिमों के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली हज यात्रा इसी मक्का नगर में सम्पन्न होती है। इन दिनों सऊदी अरब में वहाबी राजघराने का राज है। वे केवल कुरान और सुन्नत को ही महत्व देते हैं। इसलिए उनके लिए इस्लाम से जुड़ी अन्य परम्पराएं और आदर्श कोई स्थान नहीं रखते हैं। उनका मानना है कि कोई अन्य वस्तु, जो इस्लाम से जुड़ी हुई हो, उनके लिए कोई महत्व नहीं रखती है।
कड़ी निन्दा
मक्का में अल हरम नाम से एक विख्यात मस्जिद है। इस प्राचीन मस्जिद के चारों ओर पुरातात्विक महत्व के खंभे हैं। लेकिन पिछले दिनों सऊदी सरकार के निर्देश पर इसके कई खंभे गिरा दिए गए हैं। इस्लामी बुद्धिजीवियों में से अनेक लोगों का यह मत है कि इसी के पास से पैगम्बर साहब बुरर्ाक (पंख वाले घोड़े) पर सवार होकर ईश्वर का साक्षात् करने के लिए स्वर्ग पधारे थे। उक्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखकर 'इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन' ने भी सऊदी शासकों द्वारा इस प्राचीन मस्जिद के साथ छेड़छाड़ करने की हरकत की कड़ी निंदा करते हुए इसे अनुचित बताया है। बताया जाता है कि अल हरम मस्जिद 356 हजार 800 वर्ग मीटर में फैली हुई है। कहा जाता है कि इसका निर्माण हजरत इब्राहीम ने किया था। इस मस्जिद के पूर्वी भाग के खम्भों को धराशायी किया जा रहा है। इतिहास की दृष्टि से उसका महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यहां पैगम्बर हजरत मोहम्मद एवं उनके साथियों के महत्वपूर्ण क्षणों को अरबी में अंकित किया गया है। सऊदी सरकार की इस हरकत से मुसलमान उत्तेजित न हो जाएं इसलिए सारा काम अत्यंत गोपनीय ढंग से किया जा रहा है। इस मस्जिद के ऐतिहासिक खंभों को तोड़ने का ठेका सऊदी अरब की बिन लादेन नामक बड़ी कम्पनी को दिया गया है। पिछले दिनों प्रिंस चार्ल्स ने अपनी सऊदी यात्रा के समय सपत्नीक इस ऐतिहासिक धरोहर को तोड़े जाने का निरीक्षण कर अफसोस व्यक्त किया था। सऊदी सरकार ने इस तोड़फोड़ के काम को मस्जिद के विस्तार की योजना से जोड़ दिया है। लेकिन प्रिंस चार्ल्स, जो विश्व धरोहर की रक्षा करने वाली समिति से जुड़े हुए हैं, का कहना था कि यह तो केवल मस्जिद को मटियामेट कर देने का मात्र एक बहाना है।
पहली घटना नहीं
सऊदी सरकार द्वारा किसी मस्जिद को तोड़ने की यह पहली घटना नहीं है। काबे (हरम) के विस्तार के नाम पर वह आए दिन इस प्रकार की हरकत करती रही है। विश्व के सैकड़ों मुसलमान प्रतिवर्ष वहां पहुंचते हैं और अपनी आंखों से इस प्रकार का विनाश देखते हैं, लेकिन किसी का साहस नहीं होता है कि वे सऊदी सरकार का विरोध कर सकें। सऊदी सरकार तोड़-फोड़ का काम केवल मक्का में ही नहीं करती है, मदीना में भी उसकी यह हरकत जारी है। मदीना में जन्नतुल बकीअ नामक कब्रिस्तान में इस्लाम के बड़े खलीफाओं और पैगम्बर साहब के परिवार जन की कब्रों से वे लगातार छेड़छाड़ करते रहते हैं। कब्रों पर फातेहा पढ़ते समय यदि किसी ने झुककर कब्रों को चूमने का प्रयास किया तो उस पर सऊदी सरकार की पुलिस लोगों पर कोड़े बरसाती है। यह कितनी विचित्र बात है कि जिस घर में पैगम्बर मोहम्मद का जन्म हुआ था उस बेतुल मवलीद को भी ध्वस्त करके वहां सऊदी सरकार ने एक पुस्तकालय बना दिया है। पैगम्बर मोहम्मद जिस दारुल अकरम में लोगों को इस्लामी शिक्षा दिया करते थे, उसे भी ध्वस्त कर दिया गया है।
दादागिरी स्वीकार नहीं
ऐसी तोड़-फोड़ के लिए सऊदी अरब के शासकों से कोई पूछताछ नहीं कह रहा है। सऊदी सरकार इस्लाम के मामले में नितांत कट्टर है। वह केवल इस्लामी आदेश और सिद्धांत में विश्वास करती है। उसका ऐतिहासिक स्थलों से कोई लेना-देना नहीं है। वहाबियों का कहना है कि इन स्थलों से अपनी सहानुभूति और सम्मान दर्शाना एक प्रकार से उनमें आस्था रखने के समान है जो पूजा-पाठ का ही एक रूप है। इससे पूर्व सऊदी सरकार ने मक्का की बिलाल मस्जिद को धराशायी करके शाह के महल का विस्तार कर दिया था। यानी मस्जिद भी सऊदी की वहाबी सरकार के लिए कोई महत्व नहीं रखती है। यहां बता दें कि बिलाल एक हब्शी थे, जिनकी आवाज में अत्यंत ओज और मधुरता थी। पैगम्बर के समय में बिलाल ही नमाज से पूर्व अजान दिया करते थे। विश्व के अनेक देशों से जाने वाले मुसलमान जब वहां पहुंचते हैं तो इस्लाम की इन निशानियों को ध्वस्त होते देखकर मन ही मन अफसोस व्यक्त करते हैं। देवबंदी विचारधारा के मुसलमान सम्भवत: सऊदी सरकार की विचारधारा से सहमत हों लेकिन भारत के 80 प्रतिशत मुसलमान सऊदी हुकूमत के इस काम को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। पर चूंकि सऊदी राजा के पास सरकार है इसलिए वे कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। लेकिन सऊदी अरब स्थित मक्का के इमाम, जो भारत में समय-समय पर आकर अपना रूतबा दर्शाते हैं, उनका बहिष्कार करके सऊदी सरकार को अवश्य ही सबक सिखा सकते हैं। यदि सामान्य मुसलमान इन अरब के इमामों के विरुद्ध खड़ा हो जाए तो सऊदी सरकार को झटका दिया जा सकता है। हज यात्रा मक्का में प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है। वहां तो सऊदी सरकार के विरुद्ध कुछ कर पाना कठिन है, लेकिन ईरानियों ने समय-समय पर सऊदी सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाकर सऊदी सरकार की बुद्धि ठिकाने पर लाने का प्रयास किया है। मुसलमानों को भली प्रकार याद है कि सऊदी सरकार के विरुद्ध कुछ वर्ष पूर्व आतंकवादी काबे में घुसकर इस पवित्र स्थल का अपहरण करने में भी सफल रहे हैं। इसलिए अन्य देश के मुस्लिम भी इस तानाशाही को दूर करने का संकल्प करें तो सऊदी अरब में इस्लामी धरोहर को बचाया जा सकता है। इस सवाल का जवाब तो मुसलमानों को देना ही होगा कि जब सऊदी सरकार काबे में तोड़-फोड़ कर सकती है तो फिर भारत के हिन्दू अपने श्रद्धा-स्थलों को बचाने के लिए आन्दोलन क्यों नहीं चला सकते? o¨ÉÖVÉ}¡ò®ú हुसैन
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