ज्ञान के आधार पर संस्कृति का गर्व करें
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सप्तम् चमनलाल जी स्मृति व्याख्यान में विद्वानों ने कहा-
दुर्भाग्य से हिन्दू समाज का एक बड़ा वर्ग गुलाम मानसिकता से ग्रसित है। स्वामी विवेकानंद ने इस गुलाम मानसिकता को दूर करने के लिए ही उच्च स्वर में हिन्दू समाज को चेताया था।
–डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी
स्वामी विवेकानंद ने अपने हिन्दू समाज की सेवा का जो भाव जगाया, वह उन्होंने अपने विदेश प्रवास में ईसाइयों से पाया था–इस झूठ पर से पर्दा उठाना जरूरी है।
–राजीव मल्होत्रा
गत 23 मार्च को जहां देश तीन क्रांतिकारियों-भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की याद में 'मेरा रंग दे बसंती चोला' गा रहा था, वहीं दिल्ली के एक सभागार में जुटे एक हजार से अधिक देशभक्त बुद्धिजीवी एक मौन क्रांति के साधक का पुण्य स्मरण कर रहे थे। अवसर था सप्तम् चमनलाल जी स्मृति व्याख्यान का। अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र द्वारा दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब सभागार में आयोजित इस समारोह के मुख्य वक्ता थे भारतीय मूल के अमरीकी विद्वान श्री राजीव मल्होत्रा और मुख्य अतिथि थे भारत के विद्वान राजनेता डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी। अध्यक्षता की अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष श्री कपिल कपूर ने। सब एकत्र हुए थे उन (स्व.) चमनलाल जी की स्मृतियों को पुन: ताजा करने के लिए जिन्होंने देश में ही नहीं तो विदेश में जाकर बसे राष्ट्रभक्त भारतीयों को सूत्रबद्ध किया, जोड़ा। और उस दौर में जोड़ा जब आज की तरह मोबाइल, इंटरनेट आदि की सुविधाएं नहीं थीं।
हिन्दू स्वयंसेवक संघ के अन्तरराष्ट्रीय संयोजक के वर्तमान सचिव श्री सौमित्र गोखले ने बताया कि चमनलाल जी ने अपने जीवनकाल में 27 हजार पृष्ठों की निजी डायरी लिखी थी। उनके निधन के बाद हमने उसे खंगाला, ताकि उनसे प्रेरणा पाने वालों को कुछ और दे सकें, तो पाया कि कार्य और व्यक्ति के बारे में तो उसमें बहुत कुछ है, पर अपने बारे में एक भी शब्द नहीं। अपने दु:ख-सुख, मन की स्थिति और मान-अपमान के बारे में चमनलाल जी ने एक भी शब्द नहीं लिखा। उनके सादगी की मिसाल तो उनके जीवनकाल में उनके सहयोगी भी देते थे। पर उस सादगी के पीछे की कर्मठता और महानता देश-दुनिया के सामने उस दिन आयी जब 10 फरवरी, 2003 को वे हमसे विदा ले गए और भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी सहित तत्कालीन सरकार का अधिकांश मंत्रिमण्डलीय सहयोगी, सांसद और पदाधिकारी सहित हजारों लोग केशवकुंज पहुंचे। तब भारतीय मीडिया को पता चला कि वे चमनलाल जी ही थे जो अटल जी से मिलने झण्डेवाला से उनके प्रधानमंत्री आवास तक साधारण बस से ही चले जाया करते थे।
सादगी की प्रतिमूर्ति का पुण्य स्मरण करते हुए डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बताया कि चमनलाल जी का संबंध और सम्पर्क इतना जीवंत और विस्तृत था कि आपातकाल के दिनों में जब मैं लीस्टर (इंग्लैण्ड) में था तब मेरे गुप्त पते पर सूचना मिली कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के लोग मुझे एक सार्वजनिक कार्यक्रम के बाद धोखे से गिरफ्तार कर गुप्त तरीके से भारत लाने वाले हैं। वैसी ही कोशिश हुई, पर चूंकि मैं सजग था इसलिए बच गया। फिर अमरीका में भी मुझे मारने के लिए रॉ के लोग भेजे गए, पर मुझे पूर्व सूचना मिली, मैंने एफबीआई को कहा, और रॉ के एजेंट एयरपोर्ट से ही वापस भेजे गए। ये दोनों गुप्त सूचनाएं मुझे चमनलाल जी ने ही भेजी थीं।
इस वर्ष चमनलाल जी स्मृति व्याख्यान का विषय रखा गया था-स्वामी विवेकानंद प्रेरित पुनर्जागरण की भावी दिशा। इस विषय पर बोलते हुए डा.स्वामी ने भारत के वर्तमान नेतृत्व को निराशाजनक बताया और कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जानते हैं कि न केवल देशवासियों में नहीं बल्कि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के बीच भी उन्हें लेकर हल्की टिप्पणी होती है, पर वे कुछ कर नहीं सकते, क्योंकि उनकी मानसिकता ही ऐसी बन चुकी है। वे अपने नौकरशाही वाले जीवनकाल में अपने नियोक्ता के निर्देशों का पालन करते रहे और अब प्रधानमंत्री बनकर भी वैसा ही कर रहे हैं। दुर्भाग्य से हिन्दू समाज का एक बड़ा वर्ग भी इसी प्रकार की गुलाम मानसिकता से ग्रसित है। स्वामी विवेकानंद ने इस गुलाम मानसिकता को दूर करने के लिए ही उच्च स्वर में हिन्दू समाज को चेताया था। लाहौर के अपने व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू की परिभाषा देते हुए कहा था कि यह वह शब्द है जिसके सुनते ही शरीर में ऊर्जा भर जाए। यह हिन्दू ही इस देश की पहचान है। जो मतांतरित हो गए, अब हिन्दू नहीं हैं, स्वयं को ईसाईयत व इस्लाम से जोड़ते हैं, उनका डीएनए करा लीजिए, सब भारतवासियों का डीएनए एक ही मिलेगा और उसकी सच्ची पहचान हिन्दू ही है। अपनी इस पहचान को गर्व के साथ विश्व गगन में स्थापित करें।
400 से ज्यादा शोध प्रकल्पों की सहायता करने वाले, 44 वर्ष की आयु में व्यवसाय से अवकाश लेकर अमरीकियों को अमरीकियों की ही भाषा में हिन्दुत्व समझाने वाले उद्यमी, इंफिनिटी फाउण्डेशन के संस्थापक श्री राजीव मल्होत्रा ने कहा कि भारत के बारे में विदेशियों का दृष्टिकोण सदैव से इसे नीचा दिखाने का रहा है। यहां तक कि वे मानते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने अपने हिन्दू समाज की सेवा का जो भाव जगाया, वह उन्होंने अपने विदेश प्रवास में ईसाइयों से पाया था- इस झूठ पर से पर्दा उठाना जरूरी है। पर केवल भावना से नहीं, अपने वेदांत, दर्शन, सांख्य व उपनिषदों की सही व्याख्या द्वारा, पूरा शोध करके। भारतीय ज्ञान विज्ञान हर दृष्टि से श्रेष्ठ है। उसे हेय समझने वालों को अपने ज्ञान से ही परास्त करना होगा। हिन्दू एक श्रेष्ठ समाज है, उसकी संस्कृति बहुत समृद्ध है, उसका वेदांत व दर्शन अद्वितीय है। हमें अपनी यह पहचान बनाए रखते हुए अपनी विशिष्टताओं को उभारना होगा, तभी हम गर्व के साथ अपनी संस्कृति की बात कह सकेंगे।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व उप कुलपति एवं अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र के अध्यक्ष प्रो.कपिल कपूर ने कहा कि शास्त्रों का अध्ययन आवश्यक है, पर हिन्दू समाज ध्यान रखे कि शास्त्र सम्मत ज्ञान के रक्षण के लिए शस्त्र उठाना भी धर्म है। यही कार्य राम व कृष्ण आदि ने पूर्व युग में किया और गुरु गोविंदा सिंह ने इस युग में धर्म की रक्षा के लिए किया।
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