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भारतीय नव वर्ष और अंग्रेजी 'न्यू ईयर' में बड़ा भारी अंतर है। अंग्रेजी साल के आते समय भीषण सर्दी से जनजीवन बेहाल रहता है, जबकि नव वर्ष पर मौसम ऐसा सुहाना होता है कि कोई चाहकर भी घर में नहीं बैठ सकता। ऐसे में भी यदि कोई घर में घुसा रहे, तो उसे मनहूस नहीं तो और क्या कहेंगे?
शर्मा जी यों तो बड़े खुशदिल आदमी हैं, पर पिछले कुछ दिनों से वे सुबह टहलने नहीं आ रहे थे। अत: मुझे उनके स्वास्थ्य के बारे में शंका हो गयी। उनके घर पहुंचा, तो बात करते-करते वे अचानक रुआंसे हो गये।
– क्यों वर्मा, क्या मैं बूढ़ा लगता हूं ?
– सुबह-सुबह कैसी बात कर रहे हैं शर्मा जी… ?
– नहीं वर्मा, सच बताओ।
– बूढ़े हों आपके दुश्मन, पर आज ये बेवक्त का वृद्धराग कैसा?
– कुछ पूछो मत वर्मा। पिछले दिनों मैं बाजार गया, तो बाल-बच्चों वाली कई महिलाएं मुझे 'अंकल जी' कहने लगीं।
– शर्मा जी, कहने से ही कोई अंकल नहीं बन जाता। जब से राहुल बाबा ने शादी न करने की घोषणा की है, तब से लोग उन्हें भी 'राहुल अंकल' कहने लगे हैं। क्या इससे वे अंकल हो गये ?
– देखो वर्मा, तुम हमारे राहुल जी को कुछ मत कहो।
– मेरे चुप रहने से क्या होगा शर्मा जी ? लोग बचपन से जवानी की ओर बढ़ते हैं, पर वे तो सीधे 'अंकल' हो गये। और यदि यही हाल रहा, तो लोकसभा चुनाव के बाद वे 'मामू' हो जाएंगे।
– तो क्या अंकल की कुछ विशेष पहचान होती है ?
– बिल्कुल। कुछ पहचान तो सबको दिखाई दे जाती हैं। जैसे बालों की सफेदी, घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी होने के कारण माथे पर खिंची लकीरें, अस्त-व्यस्त कपड़े, हाथ में सब्जी और राशन के लिए थैला, बड़बड़ाते होठों पर बीमा और पेंशन का हिसाब….आदि।
– और …?
– और अंकल लोग घर हो या बाजार, दफ्तर हो या व्यापार, हर जगह समझदार नागरिक जैसा व्यवहार करते हैं। वे किसी जिम्मेदारी से डरते नहीं और सफलता या असफलता से घबराते नहीं।
– हमारे राहुल जी में तो ये सब विशेषताएं पहले से ही हैं।
– पर लोग तो ऐसा नहीं मानते। जो व्यक्ति घर-परिवार का बोझ ही नहीं उठा सकता, वह देश को कैसे संभालेगा ? शायद इसी डर से उन्होंने प्रतियोगिता शुरू होने से पहले ही खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग कर लिया है।
– ये तुम्हारी क्षुद्र सोच है वर्मा, पर मैं ऐसा नहीं मानता।
– शर्मा जी, भारत में सबको अपनी-अपनी तरह से सोचने और कहने की छूट है, पर यह न भूलें कि अंकल का सम्बन्ध 'अक्ल' से भी है।
– यानि जिसमें अक्ल होती है, उसे ही लोग अंकल कहते हैं?
– जी हां। और वे महिलाएं तो आपको 'अंकल जी' कह रही थीं। यानि वे आपको सामान्य अक्ल वालों से भी बड़ा मान रही थीं।
– तो मुझे इस सम्बोधन का बुरा नहीं मानना चाहिए?
– बिल्कुल नहीं।
– तर्क के हिसाब से तुम्हारी बात भले ही ठीक हो वर्मा, पर अंकल सुनकर बूढ़ेपन का अहसास तो होता ही है।
– शर्मा जी, ये तो एक शाश्वत सत्य है। दशरथ जी को जब अपने कान के पास सफेदी दिखाई दी, तो उन्होंने इस सत्य को स्वीकार कर राम को युवराज बनाने की घोषणा कर दी; पर यदि कोई इसे स्वयं न माने, तो फिर जमाने की ठोकर उसे समझा देती है।
– अच्छा.. ?
– जी हां। रीतिकाल के महान कवि केशवदास के सफेद बालों को देखकर कुएं से पानी भर रही युवतियों ने जब उन्हें 'बाबा' कहा, तो उनके दिल में आग लग गयी और मुंह से निकल पड़ा –
केशव केसन अस करि, जस अरिहु न कराय
चन्द्रवदन मृगलोचिनी बाबा कहि–कहि जांय।।
– यानि मैं यह मान लूं कि अब मैं भी 'अंकल' हो गया हूं ?
– बिलकुल। अच्छा अब मैं चलता हूं। नमस्ते शर्मा अंकल।
शर्मा जी का खिलखिलाता चेहरा एक बार फिर रुआंसा हो उठा, 'ओह वर्मा, तुम भी….।' विजय कुमार
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