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'स्वामी विवेकानंद और भारतीय नवोत्थान' पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की संगोष्ठी
हम अपने जीवन को ऐसा बनायें कि राष्ट्र कल्याण के साथ–साथ विश्व कल्याण में
भी अपनी सहभागिता
सुनिश्चित कर सकें।
–मोहनराव भागवत
विश्व को संक्रमण काल और कठिनाइयों से निकालने के लिए आध्यात्मिक चेतना जगाने की आवश्यकता है।
–न्यायमूर्ति धर्माधिकारी
यदि भारतवासी देश के निर्माण में तन–मन–धन से अपना सहयोग देते हैं तो राष्ट्र का उत्थान सुनिश्चित है।
–जगद्गुरु शंकराचार्य
'दुनिया को कष्टों से उबारने का विचार भारत के अलावा किसी के पास नहीं। विश्व के कल्याण के लिए जरूरी है कि पश्चिम के विज्ञान और भारत के अध्यात्म का संयोजन हो। हम अपने जीवन को ऐसा बनायें कि राष्ट्र कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण में भी अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकें।'
उक्त उद्गार माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय एवं विवेकानंद सार्द्धशती समारोह समिति के तत्वावधान में गत 24 मार्च को भोपाल में समन्वय भवन सभागार में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने व्यक्त किये। संगोष्ठी का विषय था 'स्वामी विवेकानंद और भारतीय नवोत्थान'।
श्री भागवत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो धर्मसभा में दिया उद्बोधन विश्व को एक नई दिशा देने वाला था। स्वामी जी ने यह घोषणा की थी कि संपूर्ण मानवता को ऊपर उठाना है तो भारत के वेदों को याद करना होगा। उन्होंने बार-बार इस बात को कहा कि दुर्बलता मृत्यु है, निर्भयता जीवन। श्री भागवत ने कहा कि सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा तथा समर्पण के आधार पर ही स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई। स्वामी विवेकानंद ने हमें अपनी वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करना सिखाया।
सरसंघचालक ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने विश्व को विज्ञान, गणित और अध्यात्म का ज्ञान दिया था, आज वैसा पराक्रम पुन: दिखाने का अवसर आ गया है। हम सभी अपने जीवन को ऐसा बनाएं कि सिर्फ धन, मान, यश उपार्जन ही नहीं, राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र उत्थान हमारे जीवन का ध्येय बन जाये।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के नाते उपस्थित कांची कामकोटि पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद में विवेक और आनंद दोनों का समन्वय था इसलिए उन्हें विवेकानंद कहा गया। आज आवश्यकता इसी बात की है कि हम प्रत्येक कार्य को पूर्ण विवेक और आनंद के साथ करें। यदि भारतवासी देश के निर्माण में तन-मन-धन से अपना सहयोग देते हैं तो राष्ट्र का उत्थान सुनिश्चित है।
संगोष्ठी में विश्वविद्यालय द्वारा विगत वर्ष 'मीडिया में विविधता एवं बहुलता रूपी समाज का प्रतिबिंब' पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रकाशित प्रतिवेदन का विमोचन श्री मोहनराव भागवत एवं जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया। समापन कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती, बाबूलाल गौर, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी सहित मध्यप्रदेश सरकार के अनेक मंत्री, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के. कुठियाला और समाज के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
इससे पूर्व 23 मार्च को उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति देवदत्त माधव धर्माधिकारी ने कहा कि मानव जीवन को सुखमय बनाने के लिए हमें वैदिक धर्म को जाना होगा और वेदों की ओर जानना होगा। आज पूरी दुनिया संक्रमण काल से गुजर रही है। इससे उत्पन्न विपत्तियों से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम स्वामी विवेकानंद द्वारा बताए मार्ग पर चलें। विश्व को संक्रमण काल और कठिनाइयों से निकालने के लिए दुनियाभर में आध्यात्मिक चेतना जगाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा, संस्कृति एवं जनसंपर्क मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा।
संगोष्ठी में अनेक सत्रों में विचार मंथन हुआ। 'स्वामी विवेकानंद का संचार शास्त्र' विषयक सत्र में अपने विचार रखते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुठियाला ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अच्छे संचारक बनने के लिए पांच सूत्र दिये हैं- प्रमाणसिद्ध विश्वास, युक्ति सिद्धता, क्षमा और नम्रता, धीरता और दृढ़ता तथा अनेकरूपता। सत्र की अध्यक्षता कर रहे श्री राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि स्वामी विवेकानंद एक सामान्य मानव नहीं बल्कि अवतारी पुरुष थे। स्वामी जी के विचारों के आधार पर ही नये भारत का निर्माण प्रत्येक युवा को करना चाहिए।
विद्यार्थियों के सत्र का विषय था- 'स्वामी विवेकानंद का संदेश और मेरा जीवन'। इस सत्र में विश्वविद्यालय के भोपाल, नोएडा एवं खंडवा परिसर के विद्यार्थियों ने स्वामी जी के विचारों की प्रासंगिकता, स्वामी विवेकानंद और वनवासी समाज, स्वामी विवेकानंद की विकास दृष्टि, स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक दृष्टि, युवा और विवेकानंद, विवेकानंद की संचार संवाद कला और स्वामी विवेकानंद तथा सनातन धर्म जैसे विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे एम.एस.विश्वविद्यालय, बडौदा के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि युवा वह है जो सकारात्मक सोचता है, कुछ अच्छा करना चाहता है और देश पर मर मिटना चाहता है। युवाओं को आगे बढ़कर राष्ट्र निर्माण में जुटना SÉÉʽþB* ʽþ.ºÉ./¦ÉÉä{ÉɱÉ
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