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5 महीने से पैसे पर कुण्डली मारे बैठी है सरकार, क्योंकि वे हिन्दू हैं?
दिल्ली में रह रहे विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं को एक बार फिर उजाड़ने की कोशिश हो रही है। यह कोशिश कश्मीरी जिहादी नहीं कर रहे हैं, बल्कि दिल्ली की सेकुलर कांग्रेस सरकार कर रही है। दिल्ली सरकार ने फरमान जारी किया है कि 'आधार कार्ड' के बिना किसी भी कश्मीरी विस्थापित हिन्दू को राहत राशि नहीं दी जाएगी। इस कारण किसी क्षेत्र में 5 महीने से, तो किसी इलाके में 3 महीने से विस्थापित हिन्दुओं को राहत राशि नहीं मिल रही है। इस वजह से ये बेचारे हिन्दू एक बार फिर मुसीबत में फंस गए हैं।
मालूम हो कि दिल्ली में करीब डेढ़ लाख कश्मीरी हिन्दू विस्थापित जीवन बिता रहे हैं। कश्मीर घाटी से जबरन भगाए गए इन हिन्दुओं का दर्द हद पार कर चुका है। फिर भी उनकी चीख सेकुलर भारत सरकार के कानों तक नहीं पहुंच रही है। घाटी से लुट-पिटकर आए ये हिन्दू बमुश्किल दिल्ली में गुजारा करते हैं। फिर भी सरकार इन सभी विस्थापित हिन्दुओं को राहत राशि नहीं देती है। सिर्फ 2860 कश्मीरी परिवारों को राहत राशि मिलती है। इसमें हिन्दू, सिख और मुस्लिम भी शामिल हैं। सरकार ने अनेक विस्थापितों का पंजीकरण तक नहीं किया है, किसी ने पंजीकरण खुद ही नहीं कराया है इसलिए ऐसे लोगों को राहत राशि नहीं मिलती है। जिस परिवार में अधिकतम तीन सदस्य हैं उसे करीब 4 हजार रु. और उससे अधिक सदस्य वाले परिवारों को सिर्फ 5000 रु. मासिक मिलते हैं। किसी-किसी परिवार में 10-10 सदस्य हैं, पर उन्हें भी 5000 रु. ही दिए जाते हैं। लेकिन अब आधार कार्ड के बिना यह राशि भी नहीं मिल रही है। शालीमार गार्डन (गाजियाबाद) में रहने वाले विजय हाण्डू ऐसे ही विस्थापितों में एक हैं। उन्हें दिल्ली की गीता कालोनी के एस.डी.एम. दफ्तर से राहत राशि के तौर पर लगभग 4000 रु. हर माह मिलते थे। पर नवम्बर 2012 से यह रकम नहीं दी जा रही है। अचानक कहा गया कि 'आधार कार्ड' लाओ उसके बाद ही राहत राशि मिलेगी। श्री हाण्डू ने पाञ्चजन्य को बताया कि 'यह सब कश्मीरी विस्थापित हिन्दुओं को दिल्ली से भगाने की साजिश है। एक ओर कश्मीर घाटी में मंत्री से संत्री तक अफजल के लिए छाती पीट रहे हैं, तो दूसरी ओर हम विस्थापितों की राहत राशि भी बन्द की जा रही है। इस देश में राष्ट्रवादियों का जीना मुश्किल होता जा रहा है।'
जसोला विहार (दिल्ली) में रहने वाले रमेश हाण्डू का दर्द भी बड़ा गहरा है। उन्होंने बताया, '90 के दशक में जो लोग घाटी से दिल्ली आए उन्हें राहत राशि के तौर पर 100 रु. महीना दिया जाता था। वही अब 1250 रु. कर दिया गया है। लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि उनमें से कोई मर जाता है तो उसकी राहत राशि बन्द हो जाती है। यह लाजिमी भी है, पर परिवार में जो नए सदस्य जुड़ रहे हैं उन्हें सरकार विस्थापित नहीं मानती है। इसलिए उनके लिए राहत राशि नहीं दी जाती है। अब आधार कार्ड की आड़ में राहत राशि नहीं दी जा रही है। आधार कार्ड आसानी से बनता नहीं है। अगर बन भी जाता है तो छह महीने से पहले हाथ में आता नहीं है। इन हालातों में विस्थापित हिन्दुओं को बड़ी तकलीफें उठानी पड़ती हैं।'
कश्मीर समिति दिल्ली के अध्यक्ष राकेश कौल कहते हैं, 'विस्थापित हिन्दुओं की राहत राशि रोकना उनके घावों को कुरेदना है। यदि सरकार ने जल्द से जल्द राहत राशि नहीं दी तो कश्मीरी हिन्दू संसद के बाहर आत्मदाह करने को मजबूर होंगे। इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी।' श्री कौल यह भी कहते हैं कि कोई भी कश्मीरी हिन्दू दिल्ली में आधार कार्ड नहीं बनाएगा। इसके दो कारण हैं- एक, जम्मू-कश्मीर सरकार ने अपने यहां आधार कार्ड बनाने की इजाजत नहीं दी है। हम भी कश्मीर से हैं, तो फिर हम पर दबाव क्यों डाला जा रहा है? दूसरा, यदि हम लोग आधार कार्ड बना लेते हैं तो कश्मीरी अलगाववादी इसका फायदा उठाएंगे। वे हमारे लिए घाटी वापसी के सारे रास्ते बन्द करेंगे। कश्मीर हमारी जान है, हमारी पहचान है। यदि सरकार हमें फिर से बसाने की जिम्मेदारी लिख कर ले तो इस कार्ड से हमें परहेज नहीं।'
विस्थापितों का दर्द
1990 के दशक में कश्मीर घाटी में जब आतंकवाद बढ़ा तो सबसे ज्यादा हिन्दू प्रताड़ित हुए। देखते ही देखते लगभग 4 लाख हिन्दू कश्मीर घाटी से जान बचाने के लिए पलायन कर गए। अब इनकी संख्या करीब सात लाख हो गई है। सबसे अधिक करीब 2 लाख हिन्दू जम्मू में रहते हैं। दिल्ली में इनकी संख्या लगभग डेढ़ लाख है। इसके अलावा ये लोग मुम्बई, पुणे, कोलकाता, देहरादून, बेंगलूरू आदि शहरों में रहते हैं। पिछले 23 साल में करीब 60 हजार हिन्दू कश्मीर घाटी में सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुए हैं। अब घाटी में सरकारी नौकरी करने वाले हिन्दू न के बराबर हैं।
आधार क्यों?
दिल्ली सरकार ने अपनी किसी भी योजना के लिए 'आधार कार्ड' अनिवार्य कर दिया है। चाहे जन्म प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र, आय प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, राष्ट्रीयता प्रमाणपत्र बनवाना हो या जाति प्रमाणपत्र चाहिए, आधार कार्ड के बिना नहीं बन पाएगा। कश्मीरी हिन्दुओं का कहना है कि राहत राशि बांटना दिल्ली सरकार की कोई योजना नहीं है। भारत सरकार ने राहत राशि बांटने के लिए उसे एक 'नोडल एजेंसी' के रूप में काम दिया है। इसलिए इसके लिए आधार-कार्ड अनिवार्य नहीं किया जा सकता।
हद कर दी आपने
विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के बच्चों को वह सुविधा भी नहीं मिल पाती है, जो कश्मीरी मुस्लिमों के बच्चों को मिलती है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय बारहवीं पास करने वाले 5 हजार कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को हर साल वजीफा देता है। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले इन मुस्लिम छात्रों का शुल्क सरकार भरती है। विस्थापित हिन्दुओं के बच्चों के लिए दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब के तकनीकी संस्थानों में 2-2 सीटें आरक्षित की गई हैं। पर इन लोगों को शुल्क खुद भरना पड़ता है।
दिल्ली सरकार कहती है
दिल्ली में विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड जरूरी किया गया है। राहत राशि पाने वाले भी आधार कार्ड बनवाएं।
विस्थापितों का कहना है
हम जम्मू–कश्मीर के रहने वाले हैं। वहां की सरकार ने आधार कार्ड बनाने की इजाजत नहीं दी है। यदि दिल्ली में आधार बनाएंगे तो हमारी पहचान खत्म हो जाएगी।
उनके वोट
दिल्ली में रहने वाले विस्थापित हिन्दू जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनावों में वोट करते हैं। उनके लिए पृथ्वीराज रोड स्थित कश्मीर भवन में विशेष इंतजाम किया जाता है और वहीं ये हिन्दू वोट डालते हैं। इनका कहना है कि जब हम लोग दिल्ली की सरकार के लिए वोट नहीं करते हैं तो फिर दिल्ली के पते पर आधार कार्ड क्यों बनाएं। सरकार घाटी का माहौल ठीक कराए। हम लोग अपनी मातृभूमि लौटना चाहते हैं।
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