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ओ मेरे इस देश की बेटी
जाने तुझ पर क्या–क्या गुजरी
सोच के तेरे दर्द की चीखें
अन्तर्मन तक कांप रहा है
कैसे तुझसे नजर मिलाएं
कैसे तेरे सामने आएं
अपराधी सा बनके तुझसे
हर कोई माफी मांग रहा है।
तेरी भी आंखों में जाने
कितनी ख्वाब सुहाने होंगे
सतरंगी से इस जीवन में
कितने रंग सजाने होंगे
खुले आसमां में उड़ने की
दिल में कितनी चाहत होगी
अपनी छोटी सी दुनिया में
कितने महल बनाने होंगे।
अभी तो अपनी उस बगिया में
कितने फूल खिलाने होंगे
अपनी खुशबू से जाने
कितने गुलशन महकाने होंगे
बैठ के डोली में जाने की
कितनी अभिलाषाएं होंगी
कितने किस्से पिया मिलन के
सखियों संग बताने होंगे।
टूट गए पर सारे सपने
छूट गई बाबुल की दुनिया
रूठ के सबसे देखो कैसे
चिर निद्रा सो गई चिरैया
कितना साहस कितनी हिम्मत
कितनी निडर थी स्वाभिमानी
कभी ना कोई भुला सकेगा
तेरी निर्भय अमर कहानी।
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