बिजली से भी तेज घोटाले के झटके
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उत्तर प्रदेश/ शशि सिंह
माया के घोटालेबाज इंजीनियर ने लगाया
30 हजार करोड़ रुपए का चूना
मायावती सरकार में सरकारी खजाने को चूना लगाने का एक और, और अब तक का सबसे बड़ा मामला सामने आ गया है। मायावती की चहेती कंपनी जेपी पावर वेंचर को फायदा पहुंचाने वाले अभियंता (इंजीनियर) की बर्खास्तगी का आदेश पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने दिया, अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी उस पर अपनी मुहर लगा दी है। लेकिन अब इतनी देर हो गई है कि उत्तर प्रदेश की जनता को इसका खामियाजा अगले 25 साल तक भुगतना पड़ेगा। नई राज्य सरकार भी काफी हद तक लागू हो चुके इस फैसले को वापस लेने की स्थिति में नहीं है। हां, अगर वह चाहे तो इस मामले की सीबीआई जांच कराकर सही तथ्यों को उजागर कर सकती है। इस प्रकरण का खुलासा करने वाले बिजलीकर्मी नंदलाल जायसवाल और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद भानू प्रताप सिंह वर्मा ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर सीबीआई जांच की मांग भी की है।
मायावती के चहेते
उत्तर प्रदेश के नए लगे व प्रस्तावित बिजली उत्पादन केन्द्रों (पावर प्रोजेक्ट्स) का मायावती सरकार के समय उनके दो सबसे चहेतों-पोंटी चड्ढा (अब मृत) और जेपी ग्रुप ने जमकर फायदा उठाया। पोंटी ने शराब व्यवसाय पर कब्जा जमाने के साथ ही राज्य की 21 सहकारी चीनी मिलों में से अधिसंख्य को औने-पौने दामों में खरीद लिया। अब अखिलेश सरकार चीनी मिलों में किए गए 1100 करोड़ रु. से अधिक के घोटाले की जांच कराने का फैसला कर चुकी है। उधर जेपी समूह ने रियल स्टेट कारोबार में जमकर फायदा उठा। गंगा एक्सप्रेस जैसी विवादित परियोजना भी उसके हाथ सौंपी गई। भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों पर कई बार पुलिस ने हिंसक अन्याय किया। वह मामला हर समय विवादों के घेरे में रहा। इधर जेपी पावर वेंचर को इलाहाबाद के बारा में 1980 मेगावाट और करछना में 1320 मेगावाट के दो पावर प्रोजेक्ट्स दे दिए गए। हालांकि उसकी पहली बोली (बिडिंग) में लैंको और रिलायंस ने भी हिस्सा लिया था। करार के अनुसार जनता को सबसे सस्ती बिजली देने के लिए लैंको को प्रोजेक्ट दिया जाना चाहिए था। लेकिन उस समय उस बोली को रद्द कर दिया गया। बताया गया कि ये दरें बाजार भाव से ज्यादा थीं। लेकिन बाद में जेपी पावर वेंचर को ही प्रोजेक्ट दे दिया गया। जबकि इसकी बिजली दरें लैंको की तुलना में 40 पैसे प्रति यूनिट ज्यादा थी।
तरीके से खेला खेल
यह खेल भी बड़ा तरीके से खेला गया। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (यह आयोग बिजली संबंधी सारे फैसले करता है) का अध्यक्ष उस राजेश अवस्थी को बनाया गया जो एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन) में उप महाप्रबंधक रहा। यह पद मुख्य अभियंता से काफी नीचे का है। बिजली अधिनियम में आयोग के अध्यक्ष के लिए 25 साल का अनुभव और कम से कम दो साल का मुख्य अभियंता का अनुभव जरूरी है। राजेश अवस्थी एनटीपीसी से सेवानिवृत्त होने वाला था। अवस्थी को नियामक आयोग में लाने में शुरुआती अड़चनें आईं तो उसे जेपी पावर वेंचर में उपाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त करा दिया गया। राजेश अवस्थी बसपा में मायावती के बाद सबसे बड़े नेता सतीश चंद्र मिश्र का रिश्तेदार बताया जाता है। नियामक आयोग के अध्यक्ष पद के लिए साक्षात्कार में 30 अनुभवी अभियंता (इंजीनियर) शामिल हुए, लेकिन सरकार की ओर से राजेश अवस्थी को ही योग्य माना गया और उसे नियुक्ति दे दी गई। सरकार की विशेष कृपा के चलते आयोग के अध्यक्ष बने राजेश ने बारा और करछना के पावर प्रोजेक्ट्स उसी जेपी पावर वेंचर को दे दिये जो लैंको और रिलायंस से महंगी बिजली बेचेगा। यह सिलसिला कम से कम 25 साल तक चलेगा। बिजली विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह आम जनता को 25 साल तक सजा भुगतनी होगी और ढाई दशक में सरकारी खजाने को 30 हजार करोड़ रुपए की चपत लगेगी।
अंतत: हो गई बर्खास्तगी
उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग में 'व्हीसिल ब्लोवर' के रूप में विख्यात नंदलाल जायसवाल ने इस मामले को अपने हाथ में लिया तो बात सर्वोच्च न्यायालय तक गई और सरकार को राजेश अवस्थी को बर्खास्त करना पड़ा। उच्च न्यायालय ने उसकी बर्खास्तगी के समय माना कि राजेश की नियुक्ति सीधे जेपी पावर वेंचर को लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी। उसकी नियुक्ति पूरी तरह बिजली अधिनियम के विरुद्ध की गई। उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि बिडिंग में लैंको और रिलायंस ने क्रमश: 2.59 रुपये और 2.60 रुपये प्रति यूनिट की दर में बिजली देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्हें ये प्रोजेक्ट नहीं दिये गये, जबकि जेपी पावर को यह प्रोजेक्ट दे दिया गया, जो 3.02 रुपये और 2.97 रुपये प्रति यूनिट की दर से सरकार को बिजली बेचेगी।
नंदलाल ने चुकाई कीमत
'व्हीसिल ब्लोवर' नंदलाल जायसवाल को बिजली घोटाला उजागर करने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है। नंदलाल का 18 बार स्थानांतरण किया गया। उन पर विभिन्न थानों में छह मुकदमे दर्ज कराए गए। यहां तक कि लखनऊ में उनकी उपस्थिति के साक्ष्य को नकारते हुए ललितपुर में उन पर बलात्कार का एक मुकदमा दर्ज करा दिया गया। यह मामला अभी न्यायालय में लंबित है। यही नहीं, उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। पेंशन, ग्रेच्युटी और फंड भी रोक लिया गया। तब उन्होंने न्यायालय का सहारा लेकर गेच्युटी और फंड प्राप्त कर लिया। गलत तरीकों का सहारा लेकर की गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति के मामले को भी न्यायालय में चुनौती दे रखी है। उनका कहना है कि अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी और उन्हें जीत जरूर मिलेगी। कला और कानून में स्नातक नंदलाल अब खुद वकालत कर रहे हैं। अपना मामला वे ही खुद लड़ रहे हैं।
अखिलेश का अंग्रेजी प्रेम
प्रदेश की अखिलेश सरकार को अंग्रेजी से खास प्रेम है, जबकि उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हिन्दी प्रेम के लिए जाने जाते हैं। आखिर अखिलेश ने विदेश में पढ़ाई जो की है। भाजपा सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा और नंदलाल जायसवाल ने राज्य सरकार को साक्ष्यों के साथ सीबीआई जांच के लिए प्रत्यावेदन दिया तो उसको यह कहकर वापस कर दिया गया कि उनका अंग्रेजी में अनुवाद करके फिर से प्रस्तुत किया जाए। विशेष सचिव श्रद्धा मिश्रा ने साफ तौर पर कहा कि मामले की जांच विद्युत अपीलीय अधिकरण (नई दिल्ली) से कराने का फैसला किया गया है। इसलिए उन्हें साक्ष्यों समेत अंग्रेजी भाषा में रूपांतरित करके आवेदन दिया जाए। इधर नंदलाल जायसवाल का कहना है कि अंग्रेजी में ब्योरा मांगना हिंदी का अपमान है। यह भी कि इस मामले में सीबीआई जांच से कम उन्हें कुछ मंजूर नहीं है। इसके लिए वे उच्च न्यायालय का दरवाजा फिर खटखटाएंगे।
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