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ईसाई मिशनरियों के आने से पहले तक सभी नागा हिन्दू ही थे। सर पर मोटी-मोटी शिखा (चुटिया) रखते थे और बड़े गर्व से स्वयं को हिन्दू कहते थे। नागा हिल्स (आज का नागालैण्ड) भारत का अभिन्न अंग रहा है। साइमन कमीशन जब भारत आया उस समय नागा हिल्स जिले के डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स पासे ने नागाओं की ओर से एक ज्ञापन लिखा और अपने कार्यालय के चपरासी स्तर पर काम करने वाले कुछ अंगामी नागाओं का हस्ताक्षर कराकर साइमन कमीशन को सौंपा और उसे प्रचारित किया। यहीं से अलगाववाद की शुरुआत हुई। इसी चार्ल्स पासे ने नागा हिल्स ट्वेन्सांङ एरिया (एनएचटीए) को 1946 में भंग कर नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) बनायी। कुख्यात फीजो 1951 में इसका तीसरा अध्यक्ष बना। अंग्रेजों ने ही इस क्षेत्र को वर्जित क्षेत्र घोषित कर यहां 'बंगाल पूर्व सीमा अधिनियम (1873)' तथा 'चीन हिल्स अधिनियम (1896)' के तहत 'इनरलाइन परमिट' लगाकर शेष भारत के लोगों को यहां आने पर बाधा खड़ी की, जबकि नागा हिन्दुओं को भय एवं लालच दिखाकर ईसाई बनाने हेतु अमरीकी व ईसाई मिशनरियों को खुली छूट दे दी, साथ ही उनकी सब प्रकार की सहायता भी की। जैसे-जैसे नागा ईसाई बनते गये वैसे-वैसे आतंकवाद एवं अलगाववाद बढ़ता गया और आज नागालैण्ड एक समस्या बन गया है।
खोनोमा के रणबांकुरे
खोनोमा के अंगामी नागाओं ने सन् 1878 में ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेजी शासन के विस्तार का घोर विरोध किया था। उन्होंने गोरे अधिकारियों तथा अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध किया था। उनको भगाकर ही दम लिया था। मजबूर होकर अंग्रेजों ने खोनोमा से 100 किमी. दूर चुमुकेडिमा में अपना शिविर बनाया। इन लड़ाकुओं में फीजो के परदादा भी शामिल थे।
जेलियांगरांग संघर्ष
हेपाऊ जादोनांग व रानी गाइदिन्ल्यू के कुशल नेतृत्व में जेलियांगरांग के नागाओं ने अंग्रेजी सरकार, ईसाई मिशनरियों तथा चर्च द्वारा घृणा के प्रचार का सशस्त्र विरोध किया था। भारत की सार्वभौमिकता को अक्षुण्ण रखने के लिए उन्होंने जेलियांगरांग हेरक्का संगठन बनाकर समाज को संगठित किया था। अंग्रेजों ने हत्या का झूठा आरोप लगाकर हेपाउ जादोनांग को 29 अगस्त, 1931 को इम्फाल में फांसी दे दी और रानी मां गाइदिन्ल्यू को आजीवन कारावास में डाल दिया गया।
नेताजी सुभाष का सहयोग
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कोहिमा से 30 किमी. दूर चेजसेजू नामक चाखेसाङ नागा गांव में अपना सैनिक शिविर बनाकर रहे थे और अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे। अंगामी व चाखेसाङ नागा सुभाष बाबू की सेना को राशन व सुरक्षा प्रदान करते थे। उनके लिए अंग्रेजों के खिलाफ जासूसी करते थे। फीजो इस हेतु नागाओं को संगठित करता था। उस समय वह हिन्दू ही था। ट्वेनसाङ जिले के चांङ नागाओं ने भी ईसाई प्रचार एवं अंग्रेजी सरकार के विस्तार का सशस्त्र विरोध किया था।
स्पष्ट है कि सभी नागा समुदायों/उपजातियों ने चर्च व गोरी सरकार के साथ संघर्ष कर उनका सशक्त विरोध किया था। किन्तु नागा उपजातियों के संगठन के अभाव में चर्च व अंग्रेजी सरकार ने मिलकर इस विरोध को दबा दिया। यह भी स्पष्ट है कि ईसाई मिशनरियों के आगमन से पूर्व सभी नागा हिन्दू थे। आज भी अंगामी, चाखेसाङ, पोचुरी, जोलियांगरांग, कोन्याक सहित सभी समुदायों में हजारों की संख्या में हिन्दू नागा हैं।
चाखेसाङ संघर्ष– सन् 1960 के दशक में नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) के नेतृत्व में नागा आतंकवाद अपना विस्तार कर रहा था। उस समय और आज भी इन आतंकवादियों तथा चर्च का जिन-जिन नागाओं ने विरोध किया अथवा फीजो की अतिवादी नीति से असहमति जतायी, उन सबकी हत्या कर दी गई। एनएनसी के प्रथम सचिव टी. साख्रे की फीजो ने दिन-दहाड़े हत्या करवा दी। इसी समय कोहिमा से 25 किमी पूर्व थेवेपिसुमी गांव के 48 युवकों की एक पंक्ति में खड़ा करके गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनका दोष यही था कि उन्होंने एनएनसी तथा चर्च को समर्थन देने से इनकार कर दिया था। वे हिन्दू थे और भारत को अपना देश मानते थे।
चर्च ही नागा आतंकवाद की जननी है
नागा समाज के बीच समन्वय, संगठन व आपसी भ्रातृत्व-भाव को चर्च ने समाप्त कर दिया। हिन्दू नागा व ईसाई नागा आपस में झगड़ने लगे। ईसाइयों के साथ चर्च व गोरी सेना खड़ी थी। शुरुआत में मतांतरित होने पर ईसाइयों को गांव से बाहर खदेड़ दिया जाता था। वे ईसाई नागा अलग गांव बसाकर रहते थे। चर्च ने नागा समाज को हिन्दू व ईसाई- दो भागों में बांट दिया। चर्च ने हिन्दुओं के खिलाफ घृणा फैलायी, गलत इतिहास लिखवाया। चर्च अंग्रेजी सरकार के विस्तार में सहयोगी था और ईसाई नागा उनके अनुयायी बनते गये। माइकल स्काट सहित सभी अंगेजी व अमरीकी मिशनरियों ने इसी योजना पर कार्य किया। जिन नागाओं ने नेताजी सुभाष की सेना के साथ मिलकर अंग्रेजी सेना से लड़ने में सहयोग किया था, ईसाई बन जाने पर वही नागा भारत के खिलाफ खड़े हो गये।
दुष्प्रचार
चर्च ने नगाओं के बीच गलत इतिहास प्रचारित किया। उनको बताया कि वे कभी भी हिन्दू नहीं थे। वे कभी भी भारतीय नहीं थे। इसलिए उन्हें पाकिस्तान की भांति अलग नागा ईसाई देश की मांग करनी चाहिए। चर्च ने ईसाई नागाओं से ऐसा करवाने के लिए ही एनएनसी बनाई और इस प्रयास में 40,000 नागा आपस में लड़कर मर गये। आज भी आपस की लड़ाई में नागा मर रहे हैं। दूसरी तरफ प्रचारित किया गया कि शेष भारत के हिन्दू नागाओं को देखना नहीं चाहते। वे नागाओं को अछूत मानते हैं। इस प्रकार हिन्दुओं के खिलाफ नागाओं के दिमाग में घृणा भर दी गई और उनको भारत के खिलाफ भड़काया गया।
फोरम फार नागा रिकन्सिलेशन
यह एक ऐसा संगठन है जिसे चर्च ने ही भारत की आंखों में धूल झोंकने के लिए खड़ा किया है। रेव. (डा.) वाती अय्यर, जो बैप्टिस्ट वर्ल्ड एलायंस के भी उपाध्यक्ष हैं, इस संगठन के अध्यक्ष हैं। सभी नागा आतंकवादी संगठनों को संगठित कर नागलैण्ड की 'आजादी' के संघर्ष को सशक्त बनाना तथा इसे जारी रखना इस फोरम का उद्देश्य है। वर्ल्ड काउंसिल आफ चर्चेज, वर्ल्ड विजन, बैप्टिस्ट वर्ल्ड एलायंस, वेटिकन तथा अन्य दर्जनों चर्च संगठनों तथा चर्च प्रायोजित गैरसरकारी संगठनों का समर्थन इस फोरम को प्राप्त है। नागा समस्या के किसी भी सकारात्मक समझौते में ये सबसे बड़े बाधक हैं।
चीन की गिद्ध दृष्टि
टी. मुइवा को जब यह आभास हुआ कि केवल चर्च के बल पर नागालैण्ड को आजाद कर पाना कठिन है, तब वह अपने सैकड़ों सशस्त्र समर्थकों के साथ सन् 1976 में चीन चला गया। चीन तो ऐसे अवसर की ताक में पहले से ही बैठा था। चीनी जनरलों ने उन सबको गोरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी। सन् 1980 में वापस नागालैण्ड लौटकर मुइवा ने चीनी साम्यवाद के सिद्धांत पर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैण्ड (एनएससीएन-आई.एम.) बनाया और नए सिरे से संघर्ष प्रारंभ किया। अब पाकिस्तान, बंगलादेश, चीन तथा चर्च उसकी मदद कर रहे हैं।
जाग रहा है नागालैण्ड
नागा समाज की वर्तमान पीढ़ी को भारत के इतिहास, हिन्दू समाज की मानसिकता, भारतीय समाज में नागा समाज का स्थान तथा उनकी अपनी क्षमता-इन सबकी पूरी जानकारी है। भारतीय हिन्दू समाज के साथ मैत्री भाव रखना तथा उनके साथ मिलकर अपना उत्थान करना इसी में नागा समाज की भलाई है, यह आज के नागा युवकों को आभास हो गया है। 'चर्च झूठ बोलता है' ऐसा वे कहने लगे हैं। भारतीय संविधान के अधिनियम 369 (अ) के तहत नागालैण्ड को अनेक विशेष अधिकार दिये गये हैं। उनका मानना है कि इस धारा के सभी प्रावधानों का ईमानदारी से पालन करने से नागा समाज का चतुर्दिक विकास होगा। उनका यह भी मानना है कि आतंकवाद एक उद्योग बन गया है, आतंकवादी तथा चर्च इसका पूरा लाभ उठा रहे हैं। इसलिए एनएससीएन (आईएम), एनएससीएन (के), एनएनसी तथा चर्च ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी है। नागा समाज इन पर भरोसा नहीं करता है। फोरम फॉर नागा रिकन्सिलेशन की भी प्रतिष्ठा प्राय: खत्म हो चुकी है।
ईस्टर्न नागा पीपुल्स आर्गेनाइजेशन
नागालैण्ड के चार जिले-मोन, ट्वेन्साङ, लांगलेंङ तथा किफिरे की 6 जातियां- कोन्याक, चाङ, साङ्तम, फोम, चिमचुंगर तथा खेमुंगन-पूर्वी नागालैण्ड की मांग कर रहे हैं। वे भारत के भीतर ही अलग राज्य की मांग कर रहे हें। वे चर्च तथा उसके आतंकवादी गुटों को अपना समर्थन नहीं दे रहे हैं।
नागालैण्ड के नागा मुइवा व उसके आतंकवादी संगठन को फूटी आंख से भी देखना नहीं चाहते हैं। मुइवा मणिपुर का तांग्खुल नागा है और उसके संगठन में भी तांग्खुल भरे पड़े हैं। इस तांग्खुलों ने नागालैण्ड के हजारों नागाओं की अकारण हत्या की है। इसलिए मुइवा अपने हेब्रान शिविर से बाहर आ नहीं सकता। उल्टे भारतीय सेना उसकी सुरक्षा में तैनात रहती है।
सरकार जल्दबाजी न करे
इन दिनों एनएससीएन (आईएम) व चर्च की दशा दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। इनके सशस्त्र आतंकवादी अब शादी करके नौकरी की तलाश कर रहे हें। इसलिए चर्च व मुइवा को लगता है कि हालत और अधिक बिगड़ जाने से पहले तथा सोनिया गांधी के केन्द्र सरकार की सर्वेसर्वा रहते-रहते कुछ समझौता कर लेना चाहिए। इसलिए वे बार-बार दिल्ली जा रहे हैं, सोनिया गांधी का दरबार सजा रहे हैं। साथ ही जिन विदेशी ताकतों ने अब तक मुइवा की मदद की है, वे नहीं चाहते कि एनएससीएन (आई.एम.) के साथ कोई समझौता हो। वे तो भारत को कमजोर करने के लिए ही मुइवा की मदद कर रहे थे, मुइवा का उपयोग कर रहे थे।
इस प्रकार नागा समस्या की धुंध छंट रही है, अन्धकार खत्म हो रहा है और सही समाधान अपना आकार ले रहा है। अत: जल्दबाजी में गलत समझौता करने से केन्द्र सरकार को परहेज करना चाहिए। नागा आतंकवादियों के साथ गलत समझौता होने से पूरे पूर्वोत्तर में आतंकवाद पुन: भड़क उठेगा।
नागा समाज में इस सकारात्मक परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए नागा युवकों की सुरक्षाबलों व अन्य सरकारी संस्थानों भी भर्ती करनी चाहिए। रोजगार के साधन देने चाहिए। कानून व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए तथा केन्द्र सरकार की निगरानी में आर्थिक पैकेज देकर इनका चतुर्दिक विकास करना चाहिए। चर्च की अराष्ट्रीय गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए गुप्तचर एजेंसी को अधिक कारगर व सक्रिय करना चाहिए। सेना को बदनाम करने वालों की खबर लेनी चाहिए। इस सावधानी से ऐसा बहुत कुछ होगा, जो देश के हित में होगा।
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