देश बचाना है तो असम बचाओ
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असम भारत का पूर्वी कोना है। यह सीमान्त राज्य है। प्रारम्भ से ही यह अनेक जन-जातियों का केन्द्र रहा है। इस क्षेत्र में 450 मील लम्बी पवित्र ब्रह्मपुत्र नदी बहती है। सामरिक दृष्टि से भी यह राज्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भारत के इतिहास में पहले इसे 'प्राग्यज्योतिष' तत्पश्चात 'कामरूप' तथा बाद में असम के नाम से पुकारा गया है। 'प्राग्यज्योतिष' से अर्थ 'ज्योतिष' शास्त्र की पूरब की भूमि अथवा ऊंचे और विस्तृत पवित्र पर्वत श्रृंखलाओं की श्रेष्ठ भूमि कहा गया। इसके अद्भुत सौन्दर्य तथा प्रकृति के कारण इसे 'कामरूप' कहा गया। स्थानीय ताई भाषा में कामरूप का अर्थ है 'बेजोड़' अथवा 'अद्वितीय'। यही भाव असम शब्द में है, अर्थात जिसके कोई समान नहीं है। कुछ इसे ऊंची-नीची भूमि के कारण भी असम कहते हैं। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो इसकी सीमाएं अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा तथा नागालैण्ड सहित चीन, तिब्बत, म्यांमार तथा बंगलादेश के साथ लगती हैं। कुल 20-25 कि.मी. चौड़ी पट्टी इसे भारत से मिलाती है, जिसे युद्धनीतिक पट्टी भी कह सकते हैं। सामान्य तौर पर इसे लोग 'चिकन नेक' नाम से पुकारते हैं।
असम का अतीत गौरवमयी रहा है। यहां के लोगों का जीवन रामायण तथा महाभारत के अनेक प्रसंगों तथा विशिष्ट घटनाओं से जुड़ा है। यह वशिष्ठ तथा परशुराम की भूमि है। कामाख्या देवी का शक्तिपीठ यहां का धाम है। ह्वेन सांग वह पहला विदेशी यात्री था जिसने यहां के धार्मिक जीवन तथा बौद्धस्थलों का विस्तृत वर्णन किया है। यहां के शासक भास्कर वर्मन को असम का अशोक तथा विक्रमादित्य कहा जाता है। यहीं के लाचित बड़फूकन को दूसरा शिवाजी कहा जाता है। आठवीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक यहां क्रमश: तीन राजवंश-पालवंश, कोचवंश तथा अहोमवंश प्रसिद्ध रहे। यह क्षेत्र सदैव वीरों की भूमि, त्याग तथा संघर्ष का केन्द्र रहा। असम का एक अद्वितीय वैशिष्ट्य इस बात में है कि भारत के अन्य प्रदेशों की भांति यहां के इतिहास में कभी 'मुगलकाल' नहीं रहा। मोहम्मद बिन बख्तयार खिलजी से औरंगजेब के काल तक लगभग सत्रह बार असम पर बड़े आक्रमण हुए, परन्तु प्रत्येक बार मुगल सेनाएं पराजित हुईं। परन्तु 1826 में यान्दुबी की संधि से अंग्रेजों ने छल-कपट पूर्वक इस राज्य पर अपना आधिपत्य जमाया। हालांकि अंग्रेजों से भी उनका संघर्ष 1898 तक चलता रहा परन्तु 19वीं शताब्दी से असम विदेशी आक्रमणकारियों तथा विघटनकारी शक्तियों के खेल का मैदान बन गया।
'ब्रिटिश कालोनी' बनाने की योजना
सन् 1760 में बंगाल पर कब्जा करने के पश्चात ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपने कदम पूर्व की ओर बढ़ाए। लार्ड कार्नवालिस के काल से इस क्षेत्र में ब्रिटिश पहलकदमी तेज हो गई। 1826 में यान्दुबी की संधि से अंग्रेजों ने यहां अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। यद्यपि असमिया समाज और अंग्रेजों का संघर्ष निरन्तर चलता रहा। पर एक बार कब्जा होने के बाद अंग्रेजों ने इसे अपना स्थायी निवास भी बनाना चाहा। इसीलिए असम लैण्ड वेस्टेज एक्ट बनाया गया। इस प्रकार यहां की भूमि को बेकार भूमि कहकर अंग्रेजों ने अपने लोगों को मुफ्त या मिट्टी के मोल जमीन बेचकर उन्हें यहां बसने का आह्वान किया। कूपलैण्ड नामक अंग्रेज ने इसे 'क्राउन कालोनी' बनाने को कहा, जिसमें ब्रह्म देश (म्यांमार) से लेकर देहरादून तक के पहाड़ी क्षेत्र को शामिल किया गया। इसे 'न्यू इंग्लैण्ड' भी कहा, परन्तु सतत संघर्षों के कारण अंग्रेजों की यह योजना पूरी न हो सकी।
असम का ईसाईकरण
1813 ई. के 'भारतीय चार्टर एक्ट' ने सरकारी रूप से बंगाल में ईसाईकरण की पूरी छूट दी। यही नियम 1833 ई. के एक्ट में सम्पूर्ण भारत पर लागू हुआ। पर ईसाई पादरियों ने नगरों तथा कस्बों में अपना प्रभाव स्थापित होते न देख वनवासियों तथा जनजातियों की ओर ध्यान देना शुरू किया। 1828 में जब सर जान विल्सन भारत आया तो उसने यहां की जनजातियों का अध्ययन करने को प्रेरित किया। तब अनेक ईसाई पादरियों ने वनवासियों-जनजातियों को ईसाई बनाना अपना उद्देश्य बना लिया। वनवासियों-जनजातियों को हिन्दुओं से अलग दिखाने के लिए सरकारी तथा गैरसरकारी प्रयास हुए। अनेक मनगढ़त कहानियां रची गईं। पादरियों द्वारा असमियों को ईसाई बनाने के लिए अनेक अमानुषिक अत्याचार किए गए तथा निम्नस्तरीय हथकण्डे अपनाए गए। हिन्दू धर्माचार्यों-समाज सुधारकों का जनजातीय बहुल क्षेत्रों में जाना निषिद्ध कर दिया गया। बाइबिल का असम की विभिन्न भाषाओं तथा बोलियों में अनुवाद कराया गया। परिणामस्वरूप आज असम क्षेत्र के साथ जुड़े तीन राज्य (नागालैण्ड, मिजोरम तथा मेघालय-तब ये असम राज्य के ही अंग थे) ईसाई राज्य हैं।
चीन की गिद्ध–दृष्टि
1949 ई. में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापित होते ही उसने विस्तारवादी नीति पर चलना शुरू कर दिया। चीन के निरंकुश अधिनायक माओत्से तुंग ने अपनी विश्व विजय की योजना प्रारम्भ कर दी। 1953 ई. में चाऊ-एक-लाई ने मास्को जाकर तथा स्तालिन से मिलकर सम्पूर्ण विश्व को दो भागों में बांटा। वह योजना तीन चरणों की थी। योजना का प्रथम चरण 1960 ई. तक पूरा होना था, जिसमें भारत पर कम्युनिस्ट शासन स्थापित किया जाना था। परन्तु 1953 ई. में ही स्तालिन की मृत्यु से योजना अधूरी रह गई। इसके तुरंत बाद चीन ने असम की उत्तरी सीमा पर स्थित तिब्बत पर कब्जा कर लिया। चीन से 1954 ई. का व्यापारिक समझौता, पंचशील की दुहाई, बाडुंग सम्मेलन, भारत द्वारा चीन की चापलूसी-सभी व्यर्थ साबित हुए और चीन ने 1962 में भारत पर भी आक्रमण कर दिया। सबसे पहले इसका शिकार असम क्षेत्र ही बना। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू असम को बंजर भूमि कहकर सन्तुष्ट होते रहे और चीन की सेनाएं असम के तेजपुर तक पहुंच गईं। दूसरी ओर कोलकाता में कम्युनिस्ट चीनी सेनाओं के स्वागत के लिए माला लिए खड़े थे। वह युद्ध समाप्त होने के पश्चात भी आज तक चीन द्वारा असम का पूर्व तथा अरुणाचल उसका शिकार बना हुआ है, परन्तु अब भी हम उन्हें बुद्ध की सोने की मूर्ति प्रदान कर समझौते तथा शांति की याचना कर रहे हैं। इतना ही नहीं राजीव गांधी के काल में चीनी सेना ने अरुणाचल के पूर्व में समद्रोंग घाटी पर कब्जा कर लिया, जो आज भी उसके कब्जे में है।
स्वतंत्र मुस्लिम राज्य की योजना
समूचे असम प्रदेश में ईसाईकरण के साथ इस्लामीकरण के भी प्रयत्न होते रहे। इस सन्दर्भ में ब्रिटिश शासकों ने मुस्लिमों की पूरी मदद की। 1905 में बंगाल का विभाजन इसी योजना का अंग था। 1908 में ढाका के नवाब हबीबुल्ला ने कहा था, 'असम के पास बहुत जमीन है, इसे मुस्लिम बहुल प्रदेश बनाया जाना चाहिए।' 1911 में 'असम में कुल मुस्लिम जनसंख्या 3.5 लाख थी जो 1931 में असामान्य रूप से बढ़कर 9.5 लाख हो गई थी। यह 1931-1941 तक 20 प्रतिशत, 1941-1951 में 21 प्रतिशत, 1951-1961 में 35 प्रतिशत तथा 1961-1971 के काल में 44 प्रतिशत तक बढ़ी। 1931 में ही एक यूरोपियन विद्वान सी.एस. म्यूटन ने मुस्लिम घुसपैठ को देखते हुए कहा था कि यदि घुसपैठ की यही रफ्तार रही तो शीघ्र ही शिवसागर जिले को छोड़कर शेष असम हिन्दू बहुल नहीं रहेगा। 1946 में अंतरिम शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बरदोलोई के त्यागपत्र देने पर मुस्लिम लीग के मोहम्मद सादुल्लाह को इसका मुख्यमंत्री बनाया गया। उस कालखण्ड में दस लाख मुस्लिम असम में घुस गए। इसी काल में मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा पूरे बंगाल को तथा असम को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग हुई। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अथक प्रयत्नों से पश्चिमी बंगाल तथा गोपीनाथ बरदोलोई के प्रयत्न से असम (केवल सिल्हट जिला छोड़कर) पाकिस्तान का हिस्सा न बन सका।
मुस्लिम तुष्टीकरण तथा बंगलादेशी घुसपैठ
स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस ने अपने घटते जनाधार के देखते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण को तेजी से बढ़ाया तथा इसे अपनी नीति का मुख्य भाग बना लिया। 1951 भारत, की जनसंख्या तथा नागरिकता की दृष्टि से एक 'नेशनल रजिस्टर' बनाया गया। लेकिन इसकी परवाह न करते हुए 1961 से 1971 के दौरान तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के लोग झुण्ड के झुण्ड के रूप में असम आते ही नहीं रहे बल्कि यहां के नागरिक भी बन गए। और तो और इन मुस्लिमों को सन्तुष्ट करने के लिए अनेक कानून बनाए गए। 1971 में बंगलादेश निर्माण के बाद असम उनके लिए आरामगाह बन गया। श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा संविधान में 'सेकुलर' शब्द जोड़ने से उन्हें प्रोत्साहन मिला। राजीव गांधी ने 1985 के 'नेशनल रजिस्टर' की अवहेलना कर, मार्च, 1971 तक आए बंगलादेशी घुसपैठियों को छोड़कर आगे के लिए उन पर रोक तथा दोनों देश की एक सीमा रेखा सम्बंधी समझौता किया, पर वह लागू न हुआ। बंगलादेशी घुसपैठिए जन सैलाब की भांति अवैध रूप से भारत के असम क्षेत्र में घुसते रहे।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2009-2011 से कानूनी रूप से आए 58000 बंगलादेशी न तो वापस लौटे और न ही उनका अता-पता है। एक अनुमान के अनुसार इस समय लगभग 4 करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिये भारत में हैं जिसमें से बहुत से भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं। इस समय असम में कई मुस्लिम संगठन सक्रिय हैं, जिनका उद्देश्य अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को असम में शरण देना तथा उन्हें यहां की नागरिकता दिलाना है। आज असम में 126 विधानसभा क्षेत्रों में से 56 मुस्लिम बहुल हो चुके हैं।
कब चेतेगें हम लोग?
क्या बंगलादेशी मुसलमानों के झुण्ड के झुण्ड आने से भी भारत नहीं चेतेगा? क्या मुम्बई में 50,000 मुसलमानों के हिंसात्मक प्रदर्शन से भी भारत नहीं जगेगा? क्या हजारों की संख्या में पाकिस्तान से लुटे-पिटे हिन्दुओं का आगमन भारतीयों को एक खुली चुनौती नहीं है? गौरव तथा स्वाभिमान की भावना छोड़ हम कब तक घुटनाटेक स्वार्थी नीति के पोषक बने रहेंगे? राष्ट्रहित छोड़, कब तक राजनीति के स्वार्थ को महत्व देते रहेंगे? यदि असम न बचा तो भारत की स्वतंत्रता व एकता तथा सम्प्रभुता भी सुरक्षित न रहेगी। अत: असम की रक्षा से ही भारत की सुरक्षा रहेगी।
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