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इतिहास के पन्नों पर दर्ज कुछ तथ्यों पर ध्यान दें तो औपनिवेशिक मुक्ति के बाद और आधुनिक भारत का निर्माण होने से पहले, नेपाल के कुछ वर्गों या दलों की तरफ से भारत में विलय की इच्छा प्रकट की गयी थी। यह इच्छा भारत और नेपाल की ऐतिहासिकता और सांस्कृतिक-धार्मिक एकता की वजह से थी, जिसे हमारा राजनीतिक नेतृत्व बनाए रखने में नाकाम रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि नेपाल का न केवल बुनियादी चरित्र बदला, बल्कि वह धीरे-धीरे पाकिस्तान और चीन की रणनीति का मैदान बन गया, जिसके जरिए भारतीय हितों का प्रतिकार करने की लगातार कोशिश की जा रही है। चीन और पाकिस्तान अपनी रणनीति में सफल भी हो रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि चीन और पाकिस्तान भारत में प्रवेश के लिए नेपाल में दाखिल हो गये हैं। आखिर कैसे? इसलिए कि अब नेपाल हमारे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया या फिर इसलिए कि हमारा नेतृत्व और हमारा राजनय दिशाहीन और अक्षम हो चुका है?
भारत विरोधी रवैया
ये सवाल उठने इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि पिछले दिनों मोहन वैद्य किरण के नेतृत्व वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध छेड़ने का ऐलान कर दिया। उल्लेखनीय है कि गत 3 अक्तूबर से मोहन वैद्य के नेतृत्व में माओवादियों ने नेपाल के दस जिलों में भारतीय फिल्मों और वाहनों के साथ-साथ भारतीय संगीत पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है और वे अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए लगातार शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) जून 2012 में ही सत्ताधारी एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) से अलग हो गयी थी। अब इसके द्वारा पार्टी की तामसलिंग स्टेट कमेटी के अधीन आने वाले जिलांे-चितवन, धादिंग, काव्रे, रसुवा, नुवाकोट, सिंधूली मकवानपुर, सिंधुपाल चौक, रामचप और डोलका-में भारत विरोधी प्रतिबंधों को लागू किया गया है। ऊपरी तौर पर तो यह नेपाल की अंदरूनी लड़ाई है, लेकिन इसके निहितार्थ उतने स्पष्ट नहीं हैं जितने कि सामान्य तौर पर दिख रहे हैं। भले ही कुछ बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों और मीडियाई विशेषज्ञों द्वारा यह कहा जा रहा हो कि माओवादियों द्वारा अपनाए जा रहे भारत विरोधी रवैये के निहितार्थ अस्पष्ट हैं, लेकिन सच तो यह है कि मोहन वैद्य किरण घोषित तौर पर भारत के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, जिसकी ताकत उन्हें कहीं और से मिल रही है। हां, असल सवाल यह अवश्य है कि इस उपद्रव के लिए माओवादियों को मिलने वाली ताकत का स्रोत कहां है? सामान्य कार्य-कारण सम्बंधों के अनुसार, इसके दो स्रोत हो सकते हैं। इनमें से एक तो प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई के नेतृत्व वाली सरकार हो सकती है, जबकि दूसरी ताकत चीन और इसके साथ-साथ पाकिस्तान की आईएसआई भी हो सकती है।
गम्भीरता से देखें तो ऐसे बहुत से तथ्यों से साक्षात्कार हो जाएगा जो इसमें चीनी षड्यंत्र होने का संकेत दे रहे होंगे। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि माओवादियों द्वारा चलाए जाने वाले इस उग्र आंदोलन स्थल के पास ही कुछ चीनी नागरिकों की संदिग्ध गतिविधियां देखी गयी हैं। माओवादियों के इस उपद्रव में सम्भवत: उनका अपना दिमाग कम, चीनी मस्तिष्क ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। इस तथ्य से भारत सहित पूरी दुनिया परिचित है कि चीनी खुफिया एजेंसियां नेपाल में भारत की ताकत का प्रतिकार करने के लिए माओवादियों को न केवल भारत के खिलाफ भड़काती हैं बल्कि उन्हें आवश्यक ऊर्जा और पोषण भी उपलब्ध कराती रहती हैं। सूत्रों के जरिए ऐसे कई खुलासे हुए हैं जो बताते हैं कि नेपाल में चीनी धन का उपयोग भारत विरोधी मुहिम में किया जाता है। उल्लेखनीय है कि चीन काफी समय से परम्परागत नेपाल को एक 'नये नेपाल' में रूपांतरित करना चाहता है। इस उद्देश्य से चीन लम्बे समय से माओवादियों के माध्यम से 'स्ट्रेटेजिक फ्रेमवर्क' विकसित करने की रणनीति पर कार्य भी कर रहा है। इसके लिए बीजिंग द्वारा वर्ष 2008 में 'ट्रैक-2 डिप्लोमेसी' की भी शुरुआत की गयी थी।
चीन की चाल
दरअसल नेपाल में रणनीतिक धरातल विकसित करने के उद्देश्य से चीन एक तरफ नेपालियों को अपने प्रजातीय खांचे में जमाना चाहता है तो दूसरी तरफ मंदारिन को नेपाल में आधारभूत तरीके से स्थापित करना चाहता है। इसके अतिरिक्त चीन नेपाल में बौद्ध मंदिरों का निर्माण और शिक्षा केन्द्रों की स्थापना करने की रणनीति भी अपना रहा है ताकि चीनी पंथ और संस्कृति का नेपाल में विस्तार हो सके और नेपाल सांस्कृतिक तौर पर भारत की बजाय चीन के निकट पहुंच जाए। भारतीय मीडिया और भारतीय गीतों का विरोध इसी सांस्कृतिक युद्ध का एक नतीजा हो सकता है जिसे माओवादी चीन के इशारे पर लड़ रहे हैं। 'ट्रैक-2 डिप्लोमेसी' के जरिए चीन नेपाली 'स्कॉलरों' को आमंत्रित कर चीनी 'थिंक टैंक' द्वारा प्रशिक्षित करने का कार्य कर रहा है ताकि आने वाले समय में नेपाल को चीन के अनुरूप ढाला जा सके। यही नहीं, चीन नेपाल के साथ 'रोड स्ट्रेटेजी' भी विकसित कर रहा है ताकि नेपाल की सेना के जरिए भारत पर नजर रख सके। ऐसी सूचना है कि चीन भारत की जासूसी करने के लिए नेपाली सेना का इस्तेमाल करने की रणनीति बना रहा है।
आईएसआई की कुचेष्टा
पाकिस्तान या उसकी खुफिया एजेंसी की बात करें तो अब वह नेपाल के जरिए भारत से दोहरा युद्ध लड़ रही है। पाकिस्तान एक तरफ नेपाल के जरिए आतंकियों को भेज कर भारत को सीधे तौर पर निशाना बना रहा है तो दूसरी तरफ नकली मुद्रा भेजकर भारत की अर्थव्यवस्था में तरलता के आकार को कृत्रिम रूप से फुलाकर नुकसान पहुंचाना चाहता है। उल्लेखनीय है कि नकली भारतीय मुद्रा आईएसआई की देखरेख में कराची, क्वेटा और लाहौर में छपती है जिसे आईएसआई तथा लश्कर-ए-तोयबा के निर्देशन में नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका के जरिए भारत तक पहुंचा दिया जाता है। इसका सीधा सा तात्पर्य यह हुआ कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी नेपाल (इसके साथ कुछ अन्य देश भी) के जरिए भारत में आतंक के लिए 'फंडिंग' करती है। यही नहीं, तमाम ऐसी खुफिया सूचनाएं अब तक प्राप्त हो चुकी हैं जो यह बताती हैं कि नेपाल पाकिस्तानी आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए एक बड़ा अड्डा बन चुका है। इसके दो कारण हो सकते हैं। एक-चीन, पाकिस्तान और माओवाद की तिकड़ी और दूसरा-आईएसआई द्वारा माओवादियों को हथियार मुहैया कराना।
'सेकुलर राज्य' का दुष्परिणाम
अगर गम्भीरता से देखा जाए तो पता चलता है कि नेपाल तभी से आईएसआई के शातिर दिमाग का निशाना बना है और चीनी पाले की ओर तेजी से सरका है जब से नेपाल का वर्तमान रूप में रूपांतरण हुआ है। इसलिए कभी-कभी ऐसा लगने लगता है कि नेपाल के दो बदलाव भारत के हितों के प्रतिकूल साबित हो रहे हैं। उसका हिन्दू से सेकुलर राज्य बनना और सीमित संवैधानिक राजतंत्र से लोकतंत्र में परिवर्तित होना। उल्लेखनीय है कि मई 2006 के उस परिवर्तन, जिसने हिन्दू राजतंत्र (हिन्दू किंग्डम) को एक 'सेकुलर राज्य' में परिवर्तित किया, से नेपाल-भारत सांस्कृतिक बंधन कुछ हद तक ढीले पड़े और दोनों के बीच जो दूरी बनी उसे माओवादियों के जरिए चीन ने भरने की कोशिश की। दूसरा, 28, दिसम्बर 2007 को अनुच्छेद 159 में किया गया संशोधन, जिसने 'प्रॉविजन्स रिगार्डिंग द किंग' के स्थान पर 'प्रॉविजन्स ऑफ द हेड ऑफ स्टेट' को स्थापित कर दिया, जिससे नेपाल में राजतंत्र के स्थान पर एक ऐसा लोकतंत्र आया जिसकी जड़ों पर माओवादियों ने कब्जा करने के लिए लोकतंत्र की धज्जियां उड़ानी शुरू कर दीं। नेपाल में पनपी अनिश्चितता और अस्थिरता ने चीन के साथ-साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के खेल के लिए भी जगह उपलब्ध करा दी है। जो भी हो, अब नेपाल में भारत के साथ साझा इतिहास, संस्कृति और रणनीतिक हितों को दरकिनार करते हुए उदण्डतापूर्ण शैली का प्रदर्शन हो रहा है।
भारतीय राजनय के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। उसे भारत-नेपाल के बीच परम्परागत सांस्कृतिक संबंधों की ऊष्मा को फिर से प्रखर करना होगा। माओवादियों के प्रभाव की जकड़न बढ़े, इससे पहले वहां की मूल हिन्दू धारा को प्रवाहमान बनाए रखने के लिए राजनय में पैनापन लाना होगा।
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