शिशु की प्राण रक्षा
|
शिशु की प्राण रक्षा
पूर्व लेख में हमने मातृ तथा नवजात शिशु की प्राण रक्षा पर चर्चा की थी। नवजात शिशु की देखभाल पूरी सावधानी और तत्परता के साथ करनी चाहिए। थोड़ी सी भी लापरवाही नवजात शिशु के लिए खतरनाक हो सकती है। अक्सर पाया जाता है कि नवजात शिशु हर प्रकार से देखने में ठीक लगता है तब माता-पिता शिशु की देखभाल के प्रति असावधान हो जाते हैं जो उचित नहीं है। इस लेख में हम नवजात शिशुओं में होने वाली कुछ आम बीमारियों के बारे में चर्चा करेंगे।
दस्त (डायरिया)
नवजात शिशुओं को दस्त लगना एक सामान्य बात है लेकिन समुचित देखभाल न की जाए तो बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण दस्त संबंधी बीमारियां हैं। यह बीमारी दो वर्ष के कम उम्र के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करती है। नवजात शिशुओं में दस्त की पहचान यही है कि बच्चा सामान्य से अधिक पतला शौच करता है। यह??गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल' संक्रमण के कारण होता है जो जीवाणु, विषाणु तथा परजीवी जीवों के माध्यम से होता है। यह संक्रमण दूषित भोजन, पानी??तरल पदार्थ आदि से फैलता है।?दस्त कई दिनों तक रह सकता है तथा शरीर में पानी व लवण (साल्ट) की कमी कर देता है। जीवित रहने के लिए शरीर में पानी और लवण का उचित मात्रा में बने रहना नितान्त जरूरी होता है।
दस्त होने पर शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना अत्यंत आवश्यक है परन्तु निम्नलिखित लक्षण उत्पन्न होने पर थोड़ा भी समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और शिशु को चिकित्सक को दिखाना चाहिए-
l 'डी-हाइड्रेशन'8होने के लक्षण दिखाई देने पर। जैसे बच्चा पिछले 8 घंटे से पेशाब न कर रहा हो, मुंह सूखा हो, रोते समय आंसू न निकल रहे8हों।
l दस्त में रक्त दिखाई दे रहा हो।
l पिछले थ् घंटे में 8 बार से अधिक बच्चे ने शौच किया हो।
l दस्त पानी की भांति हो रहा हो तथा उल्टी भी हो रही हो।
l बच्चा बहुत अधिक सुस्तथ्हो गया हो ।
l बच्चे को तीन दिनों से बुखार हो।
l बच्चा अक्सर चिल्ला रहा हो।
l बच्चेथ्के पेट, आंख और गाल धंसे हुए दिखाई दे रहे हों।
l इसके अतिरिक्त बच्चे में कोई और भी लक्षण दिखाई दे रहा हो।
दस्त के दौरान ध्यान दें-??l बच्चा यदि नवजात हो और मां के दूध पर आश्रित होथ्तो कुछ अन्तराल पर उसे मां का दूध पिलाते रहें।
l यदि बच्चा चार माह से अधिक है तो उसे ओ. आर. एस. (पानी, नीबू, चीनी व नमक का घोल) एवं हल्का भोजन खिलाते रहें।
l बच्चे का डायपर आदि बदलने पर हाथ साबुन से धोयें अन्यथा संक्रमण फैलने की संभावना हो सकती है।
बच्चे में श्वास संबंधी समस्या
नवजात शिशु में श्वास संबंधी तकलीफ आम है। सर्दी, फ्लू, कण्ठ रोग एवं श्वसन शोथ (ब्रोंकाइटिस) आदि ???माह तक के बच्चे तथा बचपन में होना साधारण सी बात है। अस्थमा और न्यूमोनिया एक गंभीर परेशानी है तथा यह भी इसी अवस्था में उभर सकती है।
जुकाम
इसमें बच्चों को खांसी, नाक का बहना, भूख की अनिच्छा??गले में परेशानी उत्पन्न हो जाती है। लगभग??0??से अधिक 'वायरस' जुकाम के कारण हो सकते हैं और ये 'वायरस' एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा प्रयोग की जाने वाली संक्रमित वस्तुओं के माध्यम से फैलते जाते हैं। लगभग एक सप्ताह तक इनका प्रभाव रहता है और इस दौरान 'वायरस' के फैलने का पूरा खतरा बना रहता है।
बच्चों में जुकाम का इलाज :
l बच्चे की नाक को साफ रखने के लिए 'नेजल एस्पिरेटर??का प्रयोग करें।
l नाक के छिद्रों को साफथ्रखने के लिए 'क्लीन वैपोराइजर' का प्रयोग करें।
l मुंह पर नाक से निकले गंदे तरल को साफ करते रहें ताकि उससेथ्संबंधित त्वचा की परेशानी न उत्पन्न होने पाये।
l स्मरण रखें बच्चे की नाक जब तक बंद रहेगी, उसे दूध पीने/भोजन ग्रहण करने में परेशानी बनी रहेगी।
l बच्चे में जुकाम की परेशानी उत्पन्न होने पर स्थिति जब गंभीर हो जाए तो तुरन्त शिशु रोग विशेषज्ञ से परामर्श करें । बिना चिकित्सक के परामर्श के कोई भी दवा बच्चे को न दें।
फ्लू
इसे 'इन्फ्लूएंजा' अथवा फ्लू के नाम से जाना जाता है। बुखार होना, ठंड लगना तथा कंपकंपी होना, थकावट का होना, मांसपेशियों में दर्द होना तथा खांसी आना-इसके प्रमुख लक्षण हैं। जुकाम की ही तरह इसके भी संक्रमण का प्रसार ???होता है।??बच्चों में फ्लू का इलाज :
l बच्चा यदि दो माह से कम उम्र का है तो उसे तुरन्त शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखायें।
l बच्चे की नाक को साफ रखने के लिए 'नेजल एस्पिरेटर' का प्रयोग करें। गर्म पानी अथवा 'सैलाइन नेजल ड्राप्स'थ्नाक के छिद्रों को साफ रखने में सहायक होती है।
l नाक के छिद्रों को साफथ्रखने के लिए 'क्लीन वैपोराइजर' का प्रयोग करें।
l बुखार होने, खांसी होने तथा गले में परेशानी उत्पन्न होने पर, कान में दर्द होने पर, साइनस दर्द होने पर चिकित्सक से परामर्श करके ही बच्चे को दवा दें।
कण्ठ रोग
यह रोग वायरल संक्रमण से होता है। इस कारण विन्डपाइप और 'वॉयस बॉक्स' में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से शिशु को बार्किंग कफ तथा कभी-कभी बुखारथ्शुरू हो जाता है।
शिशु में कण्ठ रोग का इलाज :
l बच्चे को विश्राम दें। इससे बच्चे को आराम मिलेगा तथा आसानी से वह सांस ले सकेगा।
l बच्चे को लपेटकर ठंडी हवा मेंथ्बाहर ले जायें, इससे उसके गले की सूजन कम होगी।
l यदि बच्चे को सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हो रही है तो उसे अविलंब शिशु रोग विशेषज्ञ एवं नाक, कान, गले के विशेषज्ञ के पास ले जायें। यह एक आपात स्थिति हो सकती है, जिसमें आवश्यकतानुसार 'स्टेरॉयड' जैसी दवाइयां देनी पड़ सकती हैं।
फेफड़े का संक्रमण
यह रोग फेफड़े में वायरल संक्रमण के कारण होता है, जिसकी वजह 'रेस्प्रिेटरी सिनसाइशियल वायरस' (आर.एस.बी.) आर एस वी 90 प्रतिशत दो साल के बच्चों को संक्रमित करता है। नाक का बहना, कष्ट के साथ सांस लेना, तेजी से सांस लेना, सांस छोड़ने में कठिनाई होना, बलगम के साथ अथवा बिना बलगम के खांसी होना तथा बुखार होना-इसके प्रमुख लक्षण हैं। लगभग 20 प्रतिशत बच्चों के फेफड़े में संक्रमण के कारण उनके कान में संक्रमण हो जाता है तथा??? प्रतिशत बच्चों में आगे चलकर अस्थमा हो जाता है।
बच्चों में ब्रोन्क्यिोलाइटिस का इलाज:
बच्चा यदि दो माह से कम उम्र का है तो शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
l बच्चा चार माह से अधिक उम्र का है तो गर्म तरल पदार्थ खाने मेंथ्दें, इससे उसे गले की परेशानी से राहत मिलेगी।
l गुनगुना पानी अथवा 'सैलाइन नेजल' ड्राप्स का प्रयोग करें। इससे बच्चे को बलगम से राहत मिलेगी।
l बच्चे को मां का दूध एक अंतराल के बाद पिलाते रहें।
l बच्चे के पास अथवा उसके आसपास धूम्रपान न करें।
l इसके अतिरिक्त बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो रही है, बुखार 101 'डिग्री फारेनहाइट' से अधिक है, सांस लेने में घरघराहट हो रही है, सांस प्रति मिनट??0 से अधिक बार हो रही है, होठ पर नीलापन दिखाई दे रहा है तो अविलंब विशेषज्ञ चिकित्सक के पास ले जायें।
इस लेख में बताई गयीं बीमारियां बच्चों में आमतौर पर पायी जाती है तथा इनका इलाज संभव है। जरूरत होती है सावधानी की। आगामी लेख में बच्चों की दूसरी बीमारियों पर चर्चा की जाएगी
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
(लेखक से उनकी वेबसाइट www. drharshvardhan.com तथा ईमेल drhrshvardhan@ gmail.
स्वास्थ्य
डा. हर्ष वर्धन
टिप्पणियाँ