इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि आर्थिक सुधारों की दौड़ में गांव, खेती, किसान लगातार पिछड़ रहे हैं और लाखों किसानों की आत्महत्याएं तो इस बहुप्रचारित आथिर्क विकास पर कलंक हैं। यह भी हो सकता है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी यह सरकार अपनी छत्रछाया में हो रहे महाघोटालों से जनता का ध्यान हटाने के लिए आर्थिक सुधारों को तेजी दे रही हो। वस्तुत: यदि सरकार वर्तमान अर्थतंत्र का ही सही नियोजन कर ले और विकास योजनाओं का पैसा अपने संरक्षण में पल रहे भ्रष्टाचारियों की जेबों में जाने से रोक ले तो भारत की आर्थिक तरक्की की तस्वीर ही दूसरी होगी। साथ ही वह आर्थिक क्षेत्र में स्वदेशी तंत्र को परिपुष्ट करे और देश भर में बिखरे व दम तोड़ रहे लघु और कुटीर उद्योगों में जान फूंके। स्वदेशी की उपेक्षा करके विदेशी के भरोसे आर्थिक उन्नति का रास्ता अख्तियार करना देश के लिए घातक ही होगा।
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