सफलता की कुंजी सृजनशीलता-डा. दीक्षा चौबे-
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डा. दीक्षा चौबे
रुचि की अभिव्यक्ति या सृजनशीलता मानव-मन को न सिर्फ पोषित करती है वरन् उसे पीड़ा, तनाव से दूर एक स्वच्छ, सुन्दर दुनिया में ले जाती है जहां सुर-ताल है, अनोखे रंग हैं, कल्पनाओं के सजीव चित्र हैं, अद्भुत भाव-विचार हैं। यदि सृजनशीलता बनी रहेगी तो जीवन के प्रति सकारात्मकता बनी रहेगी।
रुचि के लिए सीखा हुआ कार्य कई बार हमें हताशा के अंधेरे से बाहर निकालने के लिए उजाले का भी कार्य करता है। शादी के पन्द्रह वर्षों बाद दीपा के पति की नौकरी छूट गई, क्योंकि उसके पति जिस कागज के कारखाने में काम करते थे, वह बंद हो गया। उनके सामने एक बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी। दीपा को शादी से पहले सीखा हुआ ब्यूटीशियन का पाठ्यक्रम याद आया। घर के एक कमरे से ही ब्यूटी पार्लर की शुरुआत की। धीरे-धीरे स्थिति सुधरी। आज उसने अपने पार्लर में सभी सुविधाएं जुटा ली हैं। दीपा की मदद से उसके पति ने भी घर पर बेकरी की दुकान खोल ली है। अब प्रत्येक माह उनकी अच्छी आय होती है।
अनिल और निशा ने प्रेम विवाह किया था। उनका संयुक्त परिवार था। वर्षों बाद बंटवारा हुआ तो जिस दुकान के पीछे अनिल ने जीवनभर मेहनत की, वह चाचा के हिस्से में चली गई। वे बहुत ही कठिन दिन थे। आधे रास्ते पर आपको मालूम न हो कि कहां जाना है, व्यक्ति अकिंचन हो जाता है। ऐसे वक्त में निशा ने उसे संभाला। घर पर बुटिक का काम शुरू किया। धीरे-धीरे उसी बुटिक ने एक बहुत बड़ी दुकान का रूप ले लिया। अब पति-पत्नी, दोनों बेटे भी मिलकर दुकान को संभाल नहीं पाते। उन्हें कई नौकर रखने पड़े। अब भी उस समय को याद कर कांप जाते हैं वे दोनों, परन्तु वही बुरा वक्त उन्हें वह आत्मविश्वास, संबल दे गया जिसके सहारे वे पूरी जिंदगी बिता सकते हैं। बुरे वक्त में कोई काम आये न आये अपना हुनर, अपनी मेहनत ही काम आती है।
सीखा हुआ हुनर कभी बेकार नहीं जाता। शौक के लिए सीखी गई कला ने दीपा व निशा को जीने की एक नई राह दिखाई। आज भी कई महिलाएं घर पर ट्यूशन पढ़ाकर घर की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ता प्रदान कर रही हैं। हमें अपने आस-पास इस तरह के हजारों उदाहरण मिलेंगे जब एक बिखरते घर को अपनी हिम्मत, कला, शिक्षा से एक स्त्री ने संभाला। कला बुरे वक्त में काम आने वाले आभूषणों की तरह है, प्रत्येक स्त्री के पास यह धन होना ही चाहिए। प्रत्येक माता-पिता को अपनी बेटी को शिक्षा के साथ सृजनशीलता की ओर अवश्य प्रेरित करना चाहिए। उनकी रचनात्मकता व प्रतिभा को फलने-फूलने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
संगीत व कला मन को एक नई ऊर्जा से लबरेज कर देती है। जीवन को तनाव व निराशा के अंधेरों से बाहर खींच लाती है और जीने की नई उमंग पैदा करती है। मेरी एक चाची के दोनों बेटे अमरीका में बस गये हैं। सेवानिवृत्त चाचा जी की अपनी व्यस्त दिनचर्या है- दोस्तों की महफिल, पढ़ने का शौक। परन्तु चाची रसोई का काम खत्म करके अकेलेपन के अवसाद से कुंठित सी हो गई थीं। एक दिन बगीचे की बुरी हालत देखकर उसकी सफाई में जुटीं तो बागवानी का पुराना शौक बाहर आ गया। दूसरे दिन बाजार जाकर ढेर सारे बीज व फूलों के सुंदर पौधे ले आईं। अपने बगीचे की साज-संवार में वे इतनी व्यस्त हो गईं कि अन्य कार्यों के लिए उनहें समय निकालना पड़ता है। अकेलेपन की पीड़ा, तनाव कब उड़न छू हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला।
इसी प्रकार कई लोगों को मैंने जीवन की सारी जिम्मेदारियां पूरी कर लेने के बाद संगीत सीखने, लेखन-कार्य, चित्रकला इत्यादि शौक पूरा करते देखा है। हम अपने दिल में अनेक ख्वाहिशें संजोकर रखते हैं। जीवन की व्यस्तता हमें उन्हें पूरा करने का अवसर नहीं देती और जब वक्त होता है तो हमारा संकोच, आलस्य या लगन में कमी हमें आगे बढ़ने से रोक देते हैं। जब भी अवसर मिले हमें अपनी सृजनशीलता या शौक को अवश्य पूरा करना चाहिए। इससे हमारे मन को संतोष, संपूर्णता व सच्ची खुशी मिलती है।
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