साथ चले राष्ट्र और शिक्षा का दर्शन
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मथुरा में विद्या भारती के राष्ट्रीय प्राचार्य सम्मेलन का आह्वान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल ने कहा कि भारतीयों की 800 वर्षों तक पराधीनता के कारण दबी ऊर्जा अब उभर आई है। भारतीय बच्चे 100 में से 100 अंक पाने लगे हैं, जिसमें शिक्षकों के योगदान को स्वीकारा जाना चाहिए। डा. कृष्णगोपाल गत दिनों मथुरा में विद्या भारती द्वारा आयोजित प्राचार्यों के तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। 30 सितंबर से 2 अक्तूबर तक चले सम्मेलन को एन.सी.ई.आर.टी. के पूर्व निदेशक डा. जगमोहन सिंह राजपूत, विद्या भारती के संरक्षक श्री ब्रह्मदेव शर्मा 'भाईजी', राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गोविंद प्रसाद शर्मा, राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री प्रकाश चंद्र, सह संगठन मंत्री श्री यतीन्द्र एवं केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन श्री विनीत जोशी ने भी संबोधित किया।
डा. कृष्णगोपाल ने कहा कि सुदूर ग्रामीण इलाकों से आने वाले बच्चे भी अच्छा परिणाम दे रहे हैं। यह एक अच्छा पक्ष है। संत विनोबा भावे का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि संत विनोबा भावे की मां ने कहा 'जो देता है वह देवता, जो रखता है वह राक्षस है'। विनोबा भावे ने सम्पूर्ण जीवन मां के उस संस्कार को अंगीकार किया। यह मनुष्य का उत्कर्ष है।
डा. कृष्णगोपाल ने कहा कि शिक्षकों के हाथों में लाखों-करोड़ों बच्चों का भविष्य है। राष्ट्र का लक्ष्य पक्का हो तभी शिक्षा का उद्देश्य पक्का होगा। राष्ट्र का दर्शन एवं शिक्षा का दर्शन दोनों एक साथ चलें, यह आवश्यक है। तभी बच्चों के जीवन में लक्ष्य निर्धारित होगा। लक्ष्य उन्हें स्वयं को जानने का हो, यह शिक्षा का लक्ष्य होगा।
सम्मेलन के अन्य सत्र को संबोधित करते हुए डा. जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में सभी कार्य कर लेते हैं, लेकिन कठिन परिस्थितियों में कार्य करना ही महानता है।
सम्मेलन के तीसरे दिन के प्रथम सत्र का उद्घाटन काष्णिर् स्वामी गुरुशरणानंद महाराज ने किया। समापन सत्र को संबोधित करते हुए विद्या भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री प्रकाश चंद्र ने कहा कि शिक्षा एक ऐसा प्रभावी तंत्र है जो व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया का सशक्त तंत्र है। इसलिए विद्या भारती ने बड़ी संख्या में देशभर में विद्यालय खोले। मुकेश गोस्वामी
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