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गिलगित–बाल्टिस्तान को पाकिस्तान अपना पांचवां सूबा बनाने जा रहा है। इलाके की पाकिस्तान-नियंत्रित गैर-कानूनी विधानसभा ने इस आशय का प्रस्ताव गत 13 सितंबर को बहुमत से पारित कर दिया। अब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की अगुआई वाली गिलगित-बाल्टिस्तान परिषद इस पर अपनी मुहर लगा देगी तो मामला पाकिस्तान की नेशनल असेंबली और सीनेट के पास जाएगा। पाकिस्तान के इरादे सिरे चढ़ गए तो पैंसठ साल के अंतराल के बाद यह क्षेत्र पाकिस्तान का एक संवैधानिक राज्य बन जाएगा। अब तक पाकिस्तानी नियंत्रण के बावजूद वहां अदालतें और पाकिस्तानी संविधान इसे पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानते।
उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर रियासत का यह भाग पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का लगभग अस्सी फीसदी क्षेत्र है। चूंकि 1947 में महाराजा हरि सिंह ने इस समूची रियासत का विलय भारत में कर दिया था, इसलिए वैधानिक रूप से यह भारत का ही अंग है। भारत के संविधान और संसद की निगाह में समूचा जम्मू- कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह बात सब जानते हैं। 1994 में सर्वसम्मत प्रस्ताव से हमारी संसद ने पाकिस्तान से इस इलाके को भारत को सौंपने के लिए कहा था। हाल ही में रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने दोहराया था कि जम्मू-कश्मीर में अगर कोई काम अधूरा है तो वह यह है कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे से राज्य के उस भू-भाग को आजाद कराना, जिसमें गिलगित- बाल्टिस्तान भी शामिल हैं।
विरोध दर्ज कराए भारत
मौजूदा पाकिस्तानी कवायद का अभिप्राय यह है कि पाकिस्तान अवैध कब्जे वाली हमारी भूमि को अपनी मिल्कियत घोषित करने की नापाक कोशिश कर रहा है। इस गैर-कानूनी कवायद के खिलाफ दिल्ली में बैठी केन्द्र सरकार की तरफ से अब तक कोई बुलंद आवाज न उठना इस बात का संकेत है कि हमारा सत्ता अधिष्ठान अपनी सीमाओं व भूमि को लेकर बहुत सजग और संवेदनशील नहीं है। दिल्ली को चाहिए कि इस कवायद के प्रति अपना विरोध पुरजोर ढंग से दर्ज कराए। वरना संसद के संकल्प और रक्षा मंत्री के हाल के बयान का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
पाकिस्तानी मीडिया की रपटों के अनुसार गिलगित-बाल्टिस्तान की असेंबली में प्रस्तुत व पारित प्रस्ताव में इलाके को पाकिस्तान के नए सूबे का दर्जा देने की मांग की गई है। यह दर्जा मांगने वालों का कहना है कि ऐसा होने के बाद इस इलाके के लोगों को वे सब अधिकार मिल जाएंगे जो किसी भी दूसरे पाकिस्तानी राज्य के नागरिकों को हासिल हैं। अब तक यहां के लोगों को पाकिस्तान के हुक्मरानों ने बुनियादी मानवीय अधिकारों से भी वंचित रखा हुआ है और सूबा बनने के बाद यहां के लोग नेशनल असेंबली में अपने प्रतिनिधि भेज सकेंगे। मगर भारतीय दृष्टिकोण और कानूनी नजरिए से देखें तो यह जम्मू-कश्मीर के एक भाग को जबरन पाकिस्तानी अंग घोषित करने से अधिक कुछ नहीं है। कायदे से भारत सरकार को इसका कड़ा विरोध करना चाहिए।
आबादी का स्वरूप बदला
अतीत के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान को 1947 में जबरन अपने नियंत्रण में ले लिया था। चूंकि इसे पाकिस्तानी भूमि घोषित करना उसके लिए संभव नहीं था, इसलिए उसने अब तक इस काम को लटकाए रखा था। इसकी एक वजह यह भी थी कि शिया बहुल इस इलाके के लोग कभी पाकिस्तान में शामिल होने के लिए उत्सुक नहीं रहे। कहना न होगा कि 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान' में सुन्नी मत के लोगों की तूती बोलती है और कट्टरवादी सुन्नी समुदाय के लोग शिया मुसलमानों को मुसलमान मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। लिहाजा, इस्लाम के नाम पर भारत का विभाजन होने के बावजूद गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान की संप्रभुता कबूल करने को तैयार नहीं थे।
इस जटिलता का हल निकालने के लिए पाकिस्तान ने बीते कई दशक के दौरान बहुत संयत ढंग से काम किया। जुल्फिकार अली भुट्टो के शासनकाल में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने सबसे पहले यहां 'स्टेट सब्जेक्ट' कानून को समाप्त किया। यह वही कानूनी प्रावधान है जिसके चलते आज भी भारत के दूसरे हिस्सों के लोग जम्मू- कश्मीर में नहीं बस सकते। पाकिस्तान ने अपने गैर-कानूनी कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान से यह प्रावधान हटाकर वहां की आबादी की संरचना बदल डालने का रास्ता खोल दिया। फिर शुरू हुआ इस अपेक्षाकृत शांत इलाके में पंजाब व पख्तूनख्वा से सुन्नी मत के लोगों को बसाए जाने का सुनियोजित सिलसिला। देखते-देखते यहां का बहुसंख्यक शिया समुदाय संख्या में कमजोर पड़ता गया। आज हालत यह है कि अपने ही क्षेत्र में शिया समुदाय को आए दिन कट्टरवादियों के अमानवीय हमलों का सामना करना पड़ता है।
आबादी का यह संतुलन बिगड़ा तो इस इलाके में पाक-परस्त जमात का दबदबा बनता चला गया। बरसों तक इस काम को गुपचुप करने के बाद 2009 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के एक आदेश के तहत गिलगित-बाल्टिस्तान की असेंबली अस्तित्व में लाई गई। इस आदेश और असंेबली की वैधानिकता आज भी पाकिस्तानी अदालतों में विचाराधीन है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान की संसद से भी आज तक इस विवादास्पद आदेश को मंजूरी नहीं मिली है। मगर पाकिस्तान के शासकों ने जिस मकसद से यह आदेश जारी कर असेंबली बनवाई थी, आखिर उससे वह काम उसने ले लिया है। असंेबली ने आखिरकार गिलगित- बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का संवैधानिक अंग बनाने की मंजूरी देकर इस्लामाबाद के हाथ मजबूत कर दिए हैं।
लामबंदी शुरू
पाकिस्तान की इस करतूत का दिल्ली कब और कैसे विरोध करेगी, यह अभी साफ नहीं है। परंतु गिलगित-बाल्टितान के ही वे लोग इस प्रस्ताव के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं जो पाकिस्तान के पैंतरों के मायने जानते और समझते हैं। बलावरिस्तान नेशनल पार्टी के नेता और विधायक नवाज खान नाजी ने तो असंेबली में ही इसका मुखर विरोध किया। स्वायत्तता के इस हिमायती ने जोर देकर कहा कि गिलगित-बाल्टिस्तान का भविष्य शेष जम्मू-कश्मीर के साथ जुड़ा हुआ है। कुछ इसी तर्ज पर कश्मीरियों के विभिन्न गुटों ने भी पाकिस्तान की इस पहल की खिलाफत की है। गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का पांचवां सूबा बनाए जाने के खिलाफ जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट नामक अलगाववादी संगठन की लंदन इकाई ने लंदन में आवाज उठाई। उनका कथन है कि पाकिस्तान अपने मतलब के लिए जम्मू-कश्मीर को बांट रहा है। पाकिस्तानी कब्जे वाले 'गुलाम कश्मीर' के मीरपुर जिले की बार एसोसिएशन ने भी गिलगित-बाल्टिस्तान के पाकिस्तान में विलय की इस कोशिश के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित किया है। उधर जिनेवा में कश्मीर नेशनल पार्टी के आला नेताओं ने एक साझा बयान जारी कर दोहराया कि गिलगित-बाल्टिस्तान संवैधानिक व कानूनी तौर पर जम्मू- कश्मीर रियासत का अभिन्न अंग है और गिलगित- बाल्टिस्तान की असेंबली को इसके भविष्य का फैसला करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। कुल मिलाकर पाकिस्तान की साजिशों की खिलाफत करने के लिए कश्मीरी व गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय गुटों ने कमर कस ली है। इनमें से अधिकांश पाकिस्तान विरोधी होने के साथ भारत विरोधी भी हैं।
ऐसी स्थिति में भारत का रुख क्या हो, यह लाख टके का सवाल है। जानकारों का कहना है कि दिल्ली को अपने मजबूत संवैधानिक व कानूनी दावे को नए सिरे से पेश कर देश-दुनिया को बताना चाहिए कि गिलगित-बाल्टिस्तान को यूं चतुराई से पाकिस्तानी सूबा बनाया जाना अर्थात उस क्षेत्र का पाकिस्तान में विलय भारत को मंजूर नहीं। पाकिस्तान इस इलाके का एक हिस्सा पहले ही गैरकानूनी ढंग से चीन के हवाले कर चुका है। उसे बताया जाना चाहिए कि गिलगित-बाल्टिस्तान की भूमि और लोगों का किसी वस्तु की भांति अपने हित में दुरुपयोग करने की उसकी कोशिशें कामयाब नहीं होने दी जाएंगी। भारत को इस इलाके में पाकिस्तान विरोधी स्थानीय समुदायों के हितों की पैरवी विभिन्न मंचों और मोर्चों पर करनी चाहिए ताकि वहां के लोगों को पाकिस्तान के मोहपाश से निकाला जा सके।
देशभक्त भारतीयों की मांग
पाकिस्तान की इस गैर-कानूनी हरकत का मुखर विरोध करे दिल्ली
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