मुस्लिम तुष्टीकरण कीराह पर सपा सरकार
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राह पर सपा सरकार
उ.प्र./ धीरज त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव के नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई समाजवादी पार्टी की सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर आगे बढ़ रही है। उसने न केवल आतंकवादी घटनाओं में आरोपी लोगों पर से मुकदमा वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है बल्कि बेशर्मी इतनी कि इसके कारण भी नहीं बताना चाहती। पिछले सप्ताह विधान परिषद में जब इस बारे में भाजपा नेता हृदय नारायण दीक्षित ने सवाल पूछा तो सरकार ने उत्तर न देकर कुतर्क किया, 'आतंकवाद के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जी मुकदमे भी लादे गए हैं। सरकार ने इन्हें वापस लेने का फैसला किया है। अगर बेगुनाहों को फंसाया गया है तो उन्हें न्याय देना सरकार का काम है।' विधान परिषद् में यह मामला उठाने वाले श्री दीक्षित कहते हैं कि सपा सरकार की नीयत पर संदेह इसलिए भी होता है क्योंकि पिछली बार सपा की ही सरकार ने सिमी के मुखिया शाहिद बद्र जैसे व्यक्ति पर से मुकदमे वापस लेने का फैसला किया था। दूसरी तरफ, सरकार ने पुलिस की भर्ती में सच्चर कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक 18 प्रतिशत मुस्लिमों की भर्ती करने की घोषणा कर अपने खतरनाक इरादों को भी साफ कर दिया है। इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के लिए आवंटित बजट में इस वर्ष लगभग 2 हजार, 74 लाख करोड़ रुपए की व्यवस्था की है, जो पिछले वर्ष (2011-12) की तुलना में 81 प्रतिशत अधिक है।
इससे पहले भी जब सपा या मुलायम सिंह यादव की राज्य में सरकार बनी तब इस तरह की घोषणाएं की जाती रही हैं। पर, तब और आज में एक अंतर आया है। पहली बार समाजवादी पार्टी उ.प्र. की सत्ता में बगैर किसी अन्य दल के सहारे आई है। पार्टी के पास 225 से अधिक विधायकों का समर्थन है। इसलिए इस बार सपा को अपने मन की करने में किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। शायद यही वजह है कि इस बार मुस्लिम तुष्टीकरण का एजेंडा लागू करने को लेकर प्रदेश की सपा सरकार तेजी से आगे बढी है। इसीलिए न सिर्फ मुसलमानों पर से आतंकी घटनाओं पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का काम शुरू हो गया है बल्कि मुसलमानों को रिझाने के लिए सरकारी खजाने का मुंह भी खोल दिया गया है। मुस्लिम लड़कियों को दसवीं के बाद पढ़ाई के लिए 30,000 रु. नगद देने का फैसला हो या सरकारी पट्टिकाओं में हिन्दी के साथ-साथ उर्दू के प्रयोग का फैसला, मदरसों को आधुनिक बनाने की आड़ में उन पर धन लुटाने की बात हो अथवा कब्रिस्तान की जमीन बचाने के लिए उन पर चारदीवारी बनाने के लिए 200 करोड़ रुपये की बजट में व्यवस्था, मुस्लिम बालिकाओं को शिक्षा और विवाह के अनुदान के लिए 100 करोड़ रुपयों की मंजूरी देने का मामला हो या 'मल्टी सेक्ट्रोरल प्रोग्राम' के लिए 36 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान- सबका मकसद सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को सपा के साथ जोड़े रखना है। येन-केन-प्रकारेण मुसलमानों को खुश रखना सपा सरकार का उद्देश्य है।
दरअसल उ.प्र. में लगभग डेढ़ साल बाद लोकसभा चुनाव होना है, इसलिए भी सपा मुसलमानों के सामने नतमस्तक है, जिससे लोकसभा में इस वर्ग का वोट वह अपने पक्ष में जुटाकर अच्छी संख्या में सीटें जीत सके। सपा और कांग्रेस में मुसलमानों के वोट हथियाने के लिए गला काट प्रतिस्पर्द्धा जारी है। इसीलिए सपा सत्ता में आते ही पिछड़ों का एजेंडा भूल मुसलमानों को खुश करने में जुट गई है तो कांग्रेस को भी जैसे ही मौका मिलता है वह भी यह भूलकर फैसले करने लगती है कि जैसे उसे मुसलमानों के अलावा किसी ने वोट दिया ही न हो। इसीलिए अल्पसंख्यक आरक्षण को देश के सबसे बड़े न्यायालय द्वारा रद्द कर देने के बावजूद उ.प्र. की सरकार मुसलमानों को पुलिस भर्ती में 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात करती है तो कांग्रेस भी सर्वोच्च न्यायालय में फिर से अपील कराने की बात कह रही है, यह जानते हुए भी कि यह असंवैधानिक है।
आतंकियों पर से मुकदमा वापसी के कारणों पर परदा डालने की कोशिश
मुस्लिमों के लिए बजट में 81 प्रतिशत की बढ़ोतरी
जम्मू–कश्मीर/ विशेष प्रतिनिधि
आतंकवाद के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या में भारी वृद्धि
हिन्दुओं की संख्या भी कम, गरीबी भी घटी
कश्मीर घाटी के आतंकवाद से प्रभावित क्षेत्रों की जनसंख्या में असाधारण वृद्धि हो रही है। इसके साथ ही मुस्लिम निर्धन परिवारों की सरकारी सूची में भी भारी वृद्धि हुई है। जिन क्षेत्रों की जनसंख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है उनमें राज्य का सीमावर्ती जिला कुपवाड़ा विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसकी जनसंख्या गत 30 वर्षों में 3 लाख से बढ़कर 9 लाख के लगभग हो गई है। जबकि आतंकवाद की शुरुआत के पश्चात नियंत्रण रेखा के साथ लगने वाले इस जिले से 3000 से अधिक हिन्दू-सिख परिवार पलायन करके जम्मू तथा अन्य स्थानों पर रहने चले गए हैं। सरकारी सूची के अनुसार इस जिले में अब केवल 11 कश्मीरी पंडित परिवार ही रह गए हैं, जिनके सदस्यों की कुल संख्या 30 है। कुपवाड़ा के अतिरिक्त जिन अन्य जिलों की जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है उनमें बारामूला, अनंतनाग और श्रीनगर शामिल हैं।
विधानसभा में शेख अब्दुल रशीद के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्य के उपभोक्ता तथा वितरण मंत्री कमर अली ने बताया कि जिला कुपवाड़ा में 97,201 परिवारों को राशन कार्ड दिए गए हैं, जिनमें से मात्र 25,200 परिवार ही गरीबी की रेखा से ऊपर रहने वाले हैं, शेष सभी गरीबी की रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इनमें से 27,515 ऐसे परिवार हैं जो अत्यंत निर्धन हैं, जिन्हें अंत्योदय तथा अन्नपूर्णा योजनाओं के अंतर्गत राशन उपलब्ध करवाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत व्यतीत करने वाले परिवारों को अत्यन्त सस्ते दामों पर चावल और गेहूं उपलब्ध करवाया जाता है। अंत्योदय योजना के अंतर्गत चावल 3 रुपए प्रति किलो और गेहूं 2 रुपए प्रति किलो की दर से उपलब्ध करवाया जाता है। अन्नपूर्ण योजना के अंतर्गत तो एक प्रकार से मुफ्त में राशन दिया जाता है, और यह सारा खर्च केन्द्र सरकार वहन करती है।
जनसंख्या में भारी वृद्धि के संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि 80 के दशक में जब परिवार नियोजन योजना बड़े स्तर पर शुरू हुई तो घाटी के मुल्ला-मौलवियों तथा साम्प्रदायिक सोच रखने वाले मजहबी नेताओं ने न केवल इसका विरोध किया, अपितु यह भी घोषणा की कि जो व्यक्ति अधिक बच्चे पैदा करेगा उसे सम्मानित किया जाएगा। कट्टरपंथियों की इस चाल को विफल बनाने के लिए सरकार की ओर से यह घोषणा की गई कि जो सरकारी कर्मचारी नसबंदी करवाएंगे उन्हें अतिरिक्त वेतन वृद्धि दी जाएगी। कई सरकारी कर्मचारियों ने नसबंदी कराने के बाद मिलने वाली वेतन वृद्धि का लाभ भी उठाया और उसके बाद भी उनके बच्चे पैदा हो गए, जिसकी छानबीन भी शुरू हुई, किन्तु इसी बीच 1989 में आतंकवाद फूट पड़ा और वह छानबीन आतंकवाद की भेंट चढ़ गई।
उल्लेखनीय यह भी है कि बड़ी संख्या में हिन्दू-सिख परिवारों के पलायन के पश्चात भी घाटी के अधिकतर क्षेत्रों की जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है किन्तु जहां ये पलायन करने वाले लोग रहने आए, उस जम्मू संभाग के अधिकांश जिलों में जनसंख्या में वृद्धि दर सामान्य से भी कम रही है, इनमें कठुआ जिला विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 1981 की जनगणना में इस जिले की जनसंख्या 3,69,000 थी, जो अब 2011 में अर्थात 30 वर्षों के बाद 6,15,000 अंकित हुई है, जो दोगुने से भी कम है। यहां निर्धन परिवारों की संख्या में भी कमी दर्ज हुई है, जो मात्र 30,758 परिवार हैं।
सुरक्षा को लेकर पत्रकारों का राष्ट्रव्यापी धरना
पत्रकारों की सुरक्षा हेतु केन्द्रीय कानून बनाने की मांग को लेकर 'नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया' (एन.यू.जे.) और इससे जुड़ी राज्य इकाइयों ने पूरे देश में गत 25 जून को धरने-प्रदर्शन का आयोजन किया। पत्रकारों के हो रहे उत्पीड़न की ओर सरकार का ध्यान आकर्पित करते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून और मीडिया काउंसिल बनाने की मांग की गई। दिल्ली के जंतर-मंतर पर एनयूजे और दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (डी.जे.ए.) की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित धरने में तीन सौ से अधिक पत्रकारों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में एनयूजे के राष्ट्रीय महासचिव रासबिहारी, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र प्रभु, दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज वर्मा, महासचिव अनिल पांडेय, एनयूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाष निगम सहित बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया से जुड़े पत्रकार शामिल हुए। दिल्ली के अतिरिक्त झारखंड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि अनेक राज्यों से इसी प्रकार के धरने आयोजित करने के समाचार प्राप्त हुए हैं।
एन.यू.जे. के महासचिव रासबिहारी ने देशभर में पत्रकारों पर हो रहे हमलों व उत्पीड़न की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की मांग की। उन्होंने साफ किया कि इस कानून को बनाने की मांग करने के पीछे उनका मकसद यह बिल्कुल नहीं है कि देश में प्रत्येक पत्रकार को सरकार अलग से सुरक्षा उपलब्ध कराये। डीजेए के अध्यक्ष मनोज वर्मा ने कहा कि पत्रकारों पर निरंतर हमले हो रहे हैं लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। डीजेए महासचिव अनिल पांडेय ने रिपोर्टिंग के दौरान बीमार हो जाने वाले पत्रकारों को नि:शुल्क सरकारी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की।
एनयूजे स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के सचिव प्रमोद सैनी ने झारखंड, उड़ीसा और अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों में अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में काम कर रहे पत्रकारों की दुर्दशा से सभी को अवगत कराया। उन्होंने पत्रकारों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने की भी मांग की। पंजाब केसरी के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शर्मा ने पत्रकारों से उत्पीड़न की घटनाओं के खिलाफ संगठित होकर संघर्ष करने की अपील की।प्रतिनिधि
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