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पाठकीय
अंक–सन्दर्भ 10 जून,2012
संविधान के अनुसार भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है। संविधान के अनुच्छेद 15 और 19 के अनुसार राज्य, किसी नागरिक के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। लेकिन संविधान की धारा 30 मात्र अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और उसे चलाने का अधिकार देती है। कोई हिन्दू विद्यालय खोल तो सकता है, लेकिन वह एक कान्वेंट या मदरसे की तरह अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकता। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा चलाये गये शिक्षण संस्थानों में सरकार किसी भी प्रकार का न तो हस्तक्षेप कर सकती है और न ही उन पर कोई सरकारी नियम लागू होता है, जबकि ये शिक्षण संस्थान सरकारी अनुदान से चलते हैं। संविधान में यह कहीं नहीं लिखा गया है कि अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षा संस्थाएं खोलने व उसे चलाने का अधिकार नहीं है, तो फिर ऐसे प्रावधान की क्या आवश्यकता थी?
ऐसे प्रावधानों के कारण ही वे विशिष्ट अधिकार रखते हैं। वे अपनी शिक्षा संस्थाओं को खोलने और उन्हें चलाने में सरकारी निर्देश, विधि और नियमों से परे हैं। इस छूट का लाभ उठाने के लिए अब हिन्दुओं के कई वर्गों और पंथों ने भी अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग की है। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे हिन्दुओं के उन वर्गों में फैल रही है, जिनकी शिक्षा संस्थाएं हैं, जैसे कि जैन और सिख बन्धु। हिन्दू समाज का विघटन करने का यह सबसे सुगम व सरल तरीका है।
तमिलनाडु में 30 में से 28 शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान ईसाइयों के हैं और उन्हें बनाने के लिए सरकार से अनुमति भी नहीं ली गयी है। शायद अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण कानून भी इस पर मौन है। मदरसों में मौलवियों को वेतन सरकारी कोष से दिया जाता है। मदरसों को भारी सरकारी अनुदान भी दिया जाता है, ताकि वहां आने वाले छात्र अपने मजहब की शिक्षा ग्रहण कर सकें। अब स्थिति यहां तक बन चुकी है कि वे अपने सरकारी अनुदान से प्राप्त संस्थानों को सूचना के अधिकार के अन्तर्गत नहीं लाना चाहते और सरकार इस बारे में उन्हें आश्वासन भी दे रही है। इतना ही नहीं, मदरसों के पाठ्यक्रम की जानकारी भी सरकार नहीं ले सकती। बहुसंख्यक समाज के विद्यालय अगर ऐसा प्रयास करते हैं तो उनकी मान्यता रद्द हो जाती है। विद्या भारती के विद्यालयों में तो यह तलवार लटकी रहती है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया है। इस कारण यहां कोई आरक्षण लागू नहीं होता है। इसके साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पीठ देश के अन्य भागों में स्थापित की जा रही है। पर पूरे देश में हिन्दुओं का एक भी ऐसा शिक्षा संस्थान नहीं है जहां बच्चों को अपने धर्म की शिक्षा मिल सके। महामना मदमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी लेकिन आज उसकी स्थिति भी सरकारी संस्थान की है। जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कालेज में गैर ईसाई छात्रों को भी जून 2011 से बाइबल की शिक्षा और प्रात: ईसा की प्रार्थना बोलनी और पढ़नी पढ़ती है। लेकिन हिन्दू छात्र अपने विद्यालयों में भी वेद, प्राचीन विज्ञान, नक्षत्र विद्या, योग, प्राणायाम, आयुर्वेद, वास्तु, नाड़ी विज्ञान, गीता, रामायण आदि नहीं पढ़ सकते हैं।
–ओम प्रकाश त्रेहन
एन 10, डा. मुखर्जी नगर, निकट बतरा सिनेमा दिल्ली-110009
कश्मीर पर यह क्या?
केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त कश्मीरी वार्ताकारों ने कश्मीर के सन्दर्भ में जो सुझाव दिए हैं वे बड़े ही घातक हैं। श्री नरेन्द्र सहगल ने उन सुझावों का सूक्ष्म विश्लेषण किया है। यदि ये सुझाव मान लिए गए तो कश्मीर स्वत: 1952 से पहले की स्थिति में पहुंच जाएगा।
–मनीष कुमार
तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)
कश्मीर के तीनों वार्ताकार (दिलीप पडगांवकर, एस.एम. अंसारी और राधा कुमार) एक विशेष विचारधारा से प्रभावित हैं। इसलिए वार्ताकार के रूप में जब उनकी नियुक्ति हुई तभी अनुमान लग गया था कि वे लोग किस प्रकार के सुझाव देंगे। उनके सुझावों से बड़ा दु:ख हुआ। ये सुझाव कश्मीर को भारत से पूरी तरह अलग करने वाले हैं। ये वार्ताकार डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को भूल गए। इन्होंने लगाववादियों और जिहादियों की मांगों का ही समर्थन किया है।
–बी.एल. सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023
तथाकथित कश्मीर समस्या के अध्ययन के लिए वार्ताकारों की नियुक्ति एक साजिश थी। इसे देश के साथ धोखा भी कहा जा सकता है। सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण को कानूनी अमलीजामा पहनाने के लिए सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया था। और जो सरकार चाहती थी वही सुझाव इन लोगों ने दिए। उसी प्रकार सरकार ने कश्मीर को 1952 से पूर्व की स्थिति में लाने के लिए इन वार्ताकारों की नियुक्ति की थी, ताकि यह कहा जा सके कि यह सरकार का नहीं, बल्कि वार्ताकारों का सुझाव है।
–विकास कुमार
शिवाजी नगर, वडा, जिला–थाणे (महाराष्ट्र)
वर्तमान केन्द्र सरकार संवैधानिक रूप से कश्मीर का इस्लामीकरण करने जा रही है। कभी-कभी यह सोचकर हैरान रह जाती हूं कि सत्ता-सुख के लिए कुछ लोग और राजनीतिक दल इस देश को ही दांव पर लगा रहे हैं। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि देश है तो आप हैं, अन्यथा आपको कौन पूछेगा। याद रखना अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करना बड़ा महंगा पड़ता है।
–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
द्वारकापुरम, दिलसुखनगर
हैदराबाद-60 (आं.प्र.)
सेकुलरवाद का आवरण
चर्चा सत्र में श्री बल्देव भाई शर्मा के आलेख 'चोरी और सीनाजोरी' में संप्रग सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति पर कड़ा प्रहार किया गया है। वोट के लिए यह सरकार घटिया से घटिया काम कर रही है। इस सरकार के कार्यों से देश रसातल की ओर जा रहा है। अब ऐसी सोच कांग्रेस के समर्थक भी रखने लगे हैं। यह सरकार देश के निवासियों को आपस में लड़ाने का हर उपाय कर रही है और अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए सेकुलरवाद का आवरण ओढ़ रही है।
–उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)
संप्रग सरकार राष्ट्रधर्म को पूरी तरह भूलकर भेद-भाव की नीति पर चल रही है। एक ओर तो कहा जाता है कि यह देश पंथनिरपेक्ष है, तो दूसरी ओर एक मजहब विशेष को आरक्षण क्यों? सरकार की निर्लज्जता देखिए कि सर्वोच्च न्यायालय में कहती है कि यह आरक्षण मजहब को ध्यान में रखकर नहीं दिया जा रहा है। न्यायालय द्वारा फटकार खाने के बाद भी सरकार कहती है कि वह मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए वचनबद्ध है।
–हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
गैर–मुस्लिम भी मानव हैं?
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की रपट हिन्दुस्थान के तथाकथित मानवाधिकारवादियों को जरूर पढ़नी चाहिए। रपट में जो तथ्य दिए गए हैं उनसे तो लगता है कि पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों को मानव ही नहीं माना जाता है। उन्हें वहां वही करना पड़ता है, जो वहां का बहुसंख्यक समाज कहता है। गैर-मुस्लिमों को न तो पढ़ने की आजादी है, न पसंद के कपड़े पहनने की। गैर-मुस्लिमों को जबर्दस्ती कुरान की आयतें पढ़ाई जाती हैं और इस्लामी वेश-भूषा में रहना पड़ता है। हद तो तब हो जाती है जब किसी मृत हिन्दू को अंतिम संस्कार के समय जलाने से रोका जाता है और कट्टरवादी उसे दफनाने पर जोर देते हैं।
–हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
भारत विरोधी और नक्सली
दिनोंदिन नक्सली घटनाएं बढ़ रही हैं। निर्दोष सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों को भी नक्सली मार रहे हैं। पर केन्द्र सरकार राज्य सरकारों पर लापरवाही का आरोप लगाकर चुप हो जाती है। नक्सली देश-विरोधी कार्य कर रहे हैं। उनके आका भारत-विरोधी विदेशी तत्व हैं। यही लोग कथित सरकारी शोषण के नाम पर भोले-भाले ग्रामीणों को नक्सलवाद के नाम पर हथियार उठाने को मजबूर कर रहे हैं।
–लक्ष्मी चन्द
गांव–बांध, डाक–भावगड़ी, तह.-कसोली
जिला– सोलन (हि.प्र.)
प्रत्येक घर में पहुंचे पाञ्चजन्य
वर्तमान में पाञ्चजन्य ही एक ऐसा समाचार पत्र है, जो देशहित से जुड़ी हर खबर को आमजन तक पहुंचाता है। सेकुलर समाचार पत्र और टी.वी. चैनल तो देशहित से जुड़े मुद्दों को उठाने से पहले अपना लाभ-हानि देखते हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि पाञ्चजन्य दिन दूनी-रात चौगुनी उन्नति करे और प्रत्येक घर में पहुंचे।
–दीपक कुमार
ग्रा. व पो –सालवन, जिला–करनाल (हरियाणा)
भीषण गर्मी
गरमी है दिखला रही, भीषण अपना खेल
ए.सी. बहुत उदास है, पंखे–कूलर फेल।
पंखे–कूलर फेल, बढ़ेंगे ए.सी. जितने
तीखे होंगे गरमी के तेवर भी उतने।
कह 'प्रशांत' निर्धन व्यक्ति तो है बेचारा
सिर्फ हाथ का पंखा उसका बना सहारा।।
–प्रशांत
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
श्रावण कृष्ण 5 रवि 8 जुलाई, 2012
” ” 6 सोम 9 ” “
” ” 7 मंगल 10 ” “
” ” 8 बुध 11 ” “
” ” 9 गुरु 12 ” “
” ” 10 शुक्र 13 ” “
” ” 11 शनि 14 ” “
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