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जगदम्बा मल्ल
पिछले दिनों यूरोपीय संघ के भारत में राजदूत जोआओ क्रेविन्हो के नेतृत्व में 8 यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक प्रतिनिधिमण्डल नागालैण्ड व अरुणाचल प्रदेश का दौरा करने गया। इसमें शामिल थे-(1) ब्रिसियन किरिलोवे कोस्तोवा (बुल्गारिया) (2) मिलोसाव स्टासे (चेक गणराज्य) (3) तेर्ती हकाला (फिनलैण्ड) (4) जानोस तेरेन्यी (हंगरी) (5) पियोत्र क्लोडकोसकी (पोलैण्ड) (6) मारियन रामासिक (स्लोवाकिया) और (7) कार्ड मीयर क्लोत (जर्मनी)। ये सभी पहले कोहिमा व दीमापुर की यात्रा पर गए थे, यहां से यह दल अरुणाचल प्रदेश गया।
अलगाववादियों से मंत्रणा
किसी भी विदेशी प्रतिनिधिमण्डल को किसी गैरसरकारी संगठन, नागरिक या सामाजिक संगठन से मिलने की अनुमति लेनी होती है। लेकिन इस दल के घोषित कार्यक्रम में ऐसी कोई योजना नहीं थी। किन्तु इस दल के प्रतिनिधि नागालैण्ड के अनेक ऐसे संगठनों व चर्च के नेताओं से बन्द कमरे में मिले, जो नागा विद्रोही गुटों की भारत विरोधी तथा अलगाववादी मांगों का समर्थन करते हैं तथा उनकी मदद करते हैं। नागा नेशनल काउंसिल ने उनसे स्पष्ट मांग की कि वे अपने देश लौटकर अपनी सरकारों को नागाओं की 'आजादी की लड़ाई' का समर्थन करने के लिए कहें। इसी प्रकार की अपील एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) तथा एन.एस.सी.एन. (के) नामक विद्रोही व अलगाववादी गुटों ने भी की। नागालैण्ड बैप्टिस्ट काउंसिल ऑफ चर्चेज, नागालैण्ड कैथोलिक एसोसिएशन तथा फोरम फॉर नागा रिकंसिलिएशन ने भी नागा अलगाववादियों/विद्रोहियों की भारत विरोधी मांगों का समर्थन किया तथा इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का अनुरोध किया। इन राजनयिकों से यह अपील भी की गई कि वे भारत सरकार पर इतना दबाव बनाएं कि वह एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के प्रमुख मुइवा की मांगों को मान ले। सूत्रों के अनुसार इन यूरोपीय राजनयिकों ने मणिपुर के आतंकवादियों से भी भेंट की और उल्फा नेताओं से भी गुपचुप मंत्रणा की।
वे सरकारी संरक्षण में, सरकारी संसाधनों का उपयोग करते हुए भारतविरोधी, चर्च प्रेरित विद्रोहियों, आतंकवादियों तथा उनके संगठनों से चर्चा करते रहे। अपनी मंशा को छिपाने तथा दिखावे के लिए वे नागालैण्ड के मुख्यमंत्री नीफू रियो, राज्यपाल निखिल कुमार, अनेक मंत्रियों, विधायकों, विधानसभा अध्यक्ष, मुख्य सचिव तथा नागालैण्ड विश्वविद्यालय के उपकुलपति से भी मिले। इसके पूर्व वे एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के समर्थक संगठनों-नागा पीपुल्स मूवमेण्ट फॉर ह्यूमन राइट्स, नागा स्टूडेंट्स फेडरेशन, नागा मदर एसोसिएशन तथा नागा हो हो के प्रमुखों से मिले और अलग-अलग विचार-विमर्श किया। गृह मंत्रालय के कड़े विरोध के बावजूद कट्टर विद्रोही नेता फीजो के गांव भी यह दल गया और वहां सभी गांव वालों के साथ आतंकवादियों व चर्च मिशनरियों से भी मिला। प्रश्न यह है कि नागालैण्ड जैसे अत्यंत संवेदनशील तथा आतंकवाद की समस्या से ग्रस्त क्षेत्र में गृह मंत्रालय तथा खुफिया एजेंसियों के विरोध के बावजूद इन्हें बेरोकटोक घूमने तथा विद्रोहियों के साथ बैठकें करने का मौका क्यों दिया गया?
गृह मंत्रालय की अनदेखी
विदेशियों को नागालैण्ड में प्रवेश के लिए गृह मंत्रालय से आवश्यक अनुमति पत्र लेना अनिवार्य होता है। किन्तु ये यूरोपीय राजनयिक गृह मंत्रालय की जानकारी के बिना ही नागालैण्ड में आतंकवाद समर्थक संगठनों व चर्च के प्रतिनिधियों से मिले। गुप्तचर एजेंसियों को भी इसकी सूचना नहीं थी। गृह मंत्रालय ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है और विदेश मंत्रालय से स्पष्टीकरण मांगा है।
नागालैण्ड आजकल चर्च तथा चर्च प्रायोजित आतंकवादी संगठनों-(1) एन.एन.सी. (2) एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) (3) एन.एस.सी.एन. (खापलांग) तथा एन.एस.सी.एन. (खोले-कितोवी) के शिकंजे में फंसा हुआ है। नागा जनता इनसे छुटकारा पाना चाहती है, किन्तु इनके विरोध में कोई मुंह नहीं खोल सकता, क्योंकि ऐसा करने वालों की हत्या कर दी जाती है। इन सभी आतंकवादी संगठनों तथा चर्च संगठनों को यूरोपीय देश हवाला के माध्यम से धन भेजते हैं। जब इन यूरोपीय देशों का व्यापार संबंध उत्तर-पूर्वांचल के राज्यों में शुरू हो जाएगा तो उन देशों के लिए भारत के चर्च संगठनों तथा चर्च प्रायोजित आतंकवादी संगठनों को मदद करने का मार्ग खुल जाएगा। इसलिए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में यूरोपीय राजनयिकों को घुसने ही नहीं देना चाहिए था, उनको व्यापार करने की अनुमति देना तो दूर की बात है।
आश्चर्य की बात है कि संवैधानिक ढंग से चुने गए नागालैण्ड के मुख्यमंत्री नीफू रियो आतंकवादियों की वकालत करते हैं और गृह मंत्रालय के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए नागालैण्ड आने वाले विदेशी राजनयिकों के सम्मान में भोज देते हैं।
क्या था गोपनीय एजेण्डा?
स्वतंत्रता से पूर्व उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को अंग्रेजों ने 'क्राउन कालोनी' बनाकर अपने अधीन रखना चाहा था, किन्तु वे सफल नहीं हुए। फिर ईसाई मिशनरियों को लगाकर नागालैण्ड में उग्रवाद खड़ा किया गया, नागालैण्ड को अलग 'ईसाई देश' बनाने का प्रयास किया गया। ब्रिटिश मिशनरी माइकल स्कॉट नागालैण्ड में रहकर फीजो, मुइवा व इसाक सू की मदद करता था, किन्तु सेना के अभियान से उसकी यह योजना भी असफल हो रही है। इसलिए बताया जा रहा है कि यूरोपीय देशों के ईसाई संगठन अपने राजनयिकों को भेजकर पूर्वोत्तर के राज्यों में व्यापार करने का बहाना बनाकर मृतप्राय: एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) को जिन्दा रखना चाहते हैं और उसको सहायता पहुंचाने का नवीन मार्ग तलाशना चाहते हैं, क्योंकि चर्च द्वारा विद्रोही गुटों को मदद देने के पुराने मार्ग का खुलासा होने लगा है। माना जा रहा है कि ये आठों विदेशी राजनयिक नागालैण्ड आकर एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) तथा घोर भारत विरोधी एन.बी.सी.सी. (नागालैण्ड बैप्टिस्ट काउंसिल आफ चर्चेज) को ढांढस बंधाने तथा उनकी 'सप्लाई लाइन' को दुरुस्त करने आए थे। नागालैण्ड में कार्यरत कैथोलिक चर्च तथा बैप्टिस्ट चर्च के बीच समझौता करवाना भी इनका उद्देश्य बताया जा रहा है, ताकि दोनों संगठित होकर विद्रोही नेता मुइवा की मदद करें।
यही समय क्यों चुना?
इस समय एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के प्रमुख टी.मुइवा व इसाक सू की हालत खस्ता है। नागाओं ने एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) से घृणा करनी शुरू कर दी है। मुइवा मणिपुर का तांग्खुल नागा है और नागालैण्ड के नागाओं को उसके नाम से भी घृणा होने लगी है। एन.एस. सी.एन. (खोले-कितोवी), एन.एस.सी.एन. (खापलांग) तथा एन.एन.सी. से भी नागाओं को घृणा है। ईसाई मिशनरी व चर्च के सभी शीर्ष अधिकारी अपराध व भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। ईसाई मिशनरी मादक द्रव्यों, अवैध हथियारों, देह व्यापार के लिए लड़कियों की तस्करी करते पकड़े जा रहे हैं। चर्च आतंकवादियों की पनाहगाह बन गया है, ईसाई मिशनरी आतंकवादियों के लिए जासूसी करते हैं। 'ईशु की शरण में' के नाम पर ठगी का धंधा चल रहा है। नागा नागरिक संगठनों के समक्ष इनका असली चेहरा आ चुका है। ऐसे समय में यूरोपीय राजनयिकों का वहां पहुंचना कई सवाल खड़े करता है। इसके कारणों की जांच कराने की आवश्यकता है।
ईसाई षड्यंत्र की आशंका
नागालैण्ड के बैप्टिस्ट चर्च, नागालैण्ड कैथोलिक एसोसिएशन तथा फोरम फॉर नागा रिकंसिलिएशन (चर्च का ही दूसरा संगठन) का अरुणाचल प्रदेश के बैप्टिस्ट चर्च तथा दोनों कैथोलिक बिशपों (एक पश्चिम अरुणाचल के ईटानगर में तथा दूसरा पूर्व में चीन सीमा के पास मियाओ में) से गहरा संबंध हैं। नीफू रियो और नाबाम टकी (अरुणाचल के मुख्यमंत्री)- दोनों ही बैप्टिस्ट ईसाई हैं। इन दोनों ईसाई मुख्यमंत्रियों का सोनिया गांधी के साथ बन्धुत्व भाव व समान लक्ष्य के नाम पर गहरा संबंध है। सोनिया भी ईसाई हैं और पोप के साथ उनके घनिष्ठ संबंध हैं। यूरोपीय ईसाई देशों से सोनिया के नजदीकी संबंध हैं। दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय पर सोनिया का प्रभाव चलता है। विदेश मंत्रालय को प्रभावित कर आठ यूरोपीय राजनयिकों को नागालैण्ड व अरुणाचल प्रदेश का दौरा कराया गया, उन्हें जिनसे मिलवाना चाहते थे, गृह मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद, उनसे मिलवाया गया। यह किसी षड्यंत्र का संकेत तो नहीं है?
इस प्रकार की चूक पहली बार नहीं हुई है। पहले भी अनेक मिशनरियां पर्यटक बनकर नागालैण्ड आती रही हैं और चर्च तथा आतंकवादियों की मदद करती रही हैं। अब गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय तथा गुप्तचर एजेंसियों को लगने लगा है कि नागालैण्ड में संदिग्ध विदेशियों को रोकने के लिए प्रोटेक्टिड एरिया परमिट (पी.ए.पी.) यानी संरक्षित क्षेत्र अनुमति-पत्र को फिर से लागू कर देना चाहिए। पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर विदेशी संरक्षित क्षेत्र आदेश (1958) को पहली बार जनवरी, 2011 में नागालैण्ड, मणिपुर व मिजोरम से हटा लिया गया था और वार्षिक समीक्षा की बात कही गई थी। इस बार की समीक्षा के बाद जनवरी, 2012 से एक वर्ष के लिए इसे पुन: हटा लिया गया है। इसलिए अवसर पाते ही विदेशी यूरोपीय पर्यटकों व ईसाई मिशनरियों का नागालैण्ड में तांता लग गया है। यहां के धनेश महोत्सव (हार्नबिल फेस्टिवल) में दिसम्बर, 2011 के प्रथम सप्ताह में 100 से अधिक विदेशी आए। बैप्टिस्ट काउंसिल ऑफ चर्चेज के 75 वर्ष पूरे होने पर 'प्लेटिनम जुबली' कार्यक्रम में जापान, कोरिया, अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, इण्डोनेशिया तथा थाईलैण्ड आदि देशों के 40 मिशनरी 19-20 अप्रैल, 2012 को कोहिमा में घूमते रहे। अभी-अभी लन्दन के प्रिंस एन्ड्रयू भी 3 दिन तक नागालैण्ड घूमकर गए। आशंका यह है कि अगर नागा विद्रोहियों को भड़काने वाले लोग नागालैण्ड आते रहेंगे तो नागा समस्या का समाधान कभी नहीं निकलेगा।
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