पूर्वोत्तर भारत में अब चर्च के निशाने पर सेना
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उल्फा, एन.एस.सी.एन. (आईएम), माओवादी तथा आईएसआई– इन चारों ने समन्वित योजना बनाकर
पूर्वोत्तर भारत में तबाही मचाने की ठान रखी है।
जगदम्बा मल्ल
नागालैण्ड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, असम और अरुणाचल प्रदेश में आतंकवादियों-अलगाववादियों के द्वारा जारी हिंसा के कारण सामान्य जनता का जीना दूभर हो गया है। पूर्वोत्तर भारत में चारों तरफ हत्या, जबरन धन बसूली, अपहरण, हेरोइन, शराब तथा अन्य मादक पदार्थों सहित हथियारों की तस्करी आदि अपराधों का बोलबाला है। इन सभी कुकृत्यों के पीछे अलगाववादियों–आतंकवादियों, ईसाई मिशनरियों, शत्रु देशों द्वारा प्रायोजित गैरसरकारी संगठनों, कथित मानवाधिकारवादी संगठनों और आई.एस.आई का हाथ है। उल्फा, एनएससीएन (आईएम) तथा अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ जो केन्द्र सरकार का संघर्ष विराम समझौता हुआ है, उसमें किए गये प्रावधान इतने गलत हैं कि राज्य पुलिस को अपनी सुरक्षा में भी गोली चलाने का अधिकार नहीं है। इन आतंकवादियों को जो लोग अपने घरों में शरण देते हैं, उनको भी सजा देने का कोई नियम-कानून नहीं है।
नागालैण्ड की स्थिति: नागालैण्ड में मोन, ट्वेनसांग, किफिरे और लाङलेङ जिले में रहने वाले कोन्याक, चाड, साडतम, फोम, खेमुगन तथा यिमचुडर- इन छह जनजातियों ने 'ईस्टर्न नागा पीपुल्स आर्गेनाइजेशन' (ईएनपीओ) नामक संगठन बनाकर एक नए 'सीमांत नागालैण्ड' नामक राज्य की मांग की है। उधर नागा आतंकवादी आपस में एक-दूसरे को मार रहे हैं। धन उगाही और अपहरण करने के अतिरिक्त एनएससीएन (आईएम) और (के) गुट के आतंकवादी खुलेआम सैनिक वेश में हथियार लेकर घूम रहे हैं। आम जनता तबाह है, किन्तु नीफू रियो की सरकार आंख-कान बंद किए हुए है। उसे न कुछ दिखाई दे रहा है और न ही सुनाई। इस स्थिति से तंग आकर अंगामी यूथ आर्गेनाइजेशन (एवाईओ) ने गत 2 अप्रैल को कोहिमा में जुलूस निकाल कर प्रदर्शन किया और राज्य सरकार को ज्ञापन दिया। इसमें मांग की गई कि वह आतंकवादियों के उत्पात से निर्दोष जनता को बचाये और आतंकवादियों को नियंत्रित करे। जो आतंकवादी अभी जेल में सजा काट रहे हैं, उन्हें जमानत पर रिहा न करे। एनएससीएन (आईएम) का विदेश सचिव एंथोनी निंग्खन शिमराय, जो मुइवा का चचेरा भाई भी है, इस समय दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है। एवाईओ ने उन लोगों व कथित सामाजिक संगठनों की निन्दा की है जो शिमराय तथा अन्य कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं।
ईसाई मिशनरियों द्वारा अवैध शस्त्र व्यापार, देह व्यापार, लड़के-लड़कियों को नौकरी के नाम पर बेचने की घटनाएं तथा मादक पदार्थों की तस्करी की घटनाएं नागा समाज को उद्वेलित कर रही हैं। गत 9 मार्च को एक बहुचर्चित पादरी ए पुनी को असम रायफल्स के जवानों ने उसके घर से अवैध हथियारों के साथ धर दबोचा। यह पादरी एनएससीएन (आईएम) का एक पदाधिकारी है तथा उसका रेड कार्ड नं 003 है। इसके घर से एके 56 रायफलें तथा अन्य घातक हथियार बरामद हुए हैं। गत 2 अप्रैल को नागालैण्ड की चुमुकेडिया पुलिस जांच चौकी पर नागालैण्ड पुलिस ने मुहम्मद सज्जाद खान तथा रियाजुद्दीन नामक दो बंगलादेशी मुसलमानों को 2.5 किलो हेरोइन के साथ पकड़ा। 15 दिन पूर्व 5 बंगलादेशी मुसलमानों ने दीमापुर में दिनदहाड़े चोखसाङ नागा समुदाय की एक विवाहित महिला के साथ उसके घर में उसके पति के सामने ही बलात्कार किया। ऐसी ही अनेक घटनाएं घट रही हैं जिससे नागालैण्ड की शांति भंग हो गई है। किन्तु एनएससीएन (आईएम) का प्रमुख मुइवा कथित रूप से नागालैण्ड की आजादी की लड़ाई लड़ रहा है। नागा मिशनरियां शांति प्रचारक बनकर अशांति और घृणा फैला रही हैं। नागालैण्ड की सरकार सरकारी खजाने की लूट में व्यस्त है और केन्द्र सरकार अपने विरोधाभासों में ही उलझी हुई है।
अरुणाचल प्रदेश का परिदृश्य– दो दशक पूर्व तक अरुणाचल प्रदेश में ईसाइयों का नामोनिशान तक नहीं था। इस कारण वहां चारों तरफ शांति थी। ईसाई मिशनरियों के प्रवेश करते ही अरुणाचल ड्रेगन फोर्स (एडीएफ), नेशनल ड्रेगन फोर्स (एनडीएफ) तथा ताई-सिंग्फो सेक्यूरिटी फोर्स (टीएसएसएफ) नामक आतंकवादी संगठन बन गये। एनएससीएन (आईएम) के हेब्रान स्थित शिविर में उनको प्रशिक्षित किया गया। अरुणाचलवासियों को ईसाई बनाने के काम में चर्च की मदद करने के लिए इन आतंकवादी संगठनों को एनएससीएन (आईएम) ने निर्देश दिया। इस प्रकार इस शांतिप्रिय हिन्दूबहुल प्रदेश में गांव-गांव तक चर्च का जाल फैल गया। पूर्वी अरुणाचल के चांगलांग और तिरप जिले में एनएससीएन (आईएम) तथा एनईएससीएन (के) का प्रभाव हो गया। प्रदेश के पूर्वी चीन सीमा के पास मियाओ नामक स्थान पर एक कैथोलिक बिशप तथा पश्चिमी अरुणाचल के ईटानगर शहर में दूसरा कैथोलिक बिशप आसीन हो गया। इस प्रकार दोनों कैथोलिक बिशप, बैपटिस्ट चर्च, नागा आतंकवादी तथा नागा ईसाई मिशनरियों का गठजोड़ अरुणाचल प्रदेश को ईसाई प्रदेश बनाने की योजना पर काम कर रहा है और चीन के साथ साठगांठ बनाये हुए है। माओवादी/नक्सलवादी, आईएसआई तथा उल्फा भी यहां सक्रिय हैं और यहां की शांतिप्रिय जनता का खून चूस रहे हैं। धन बसूली, अपहरण, मतान्तरण, हत्या तथा देह-व्यापार के लिए लड़कियों की कालाबाजारी यहां बेरोकटोक चल रही है। अरुणाचल प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री नाबाम टकी निशी जाति के कट्टर ईसाई हैं। दोनों कैथोलिक बिशपों, नागा आतंकवादियों, नागा ईसाई मिशनरियों तथा विदेश-पोषित गैरसरकारी संगठनों ने सोनिया गांधी की मदद से नाबाम को मुख्यमंत्री पद पर आसीन करने में सफलता पा ली है। इस कारण यहां चर्च को खुला मैदान मिल गया है। अरुणाचल में मतांतरण व आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए देश-विदेश से सैकड़ों करोड़ रुपए आ रहे हैं और चर्च इस काम में लगा हुआ है। जो इनका विरोध करता है उसकी हत्या हो जाती है अथवा उसका कुछ पता ही नहीं चलता।
मणिपुर का दर्द– संपूर्ण उत्तर पूर्वांचल में मणिपुर के हालात सबसे अधिक खराब हैं। हेरोइन व मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के परिप्रेक्ष्य में यह स्वर्णिम त्रिकोण (गोल्डन ट्रायंगल-म्यांमार, थाईलैण्ड और लाओस) की सीमा पर स्थित है। मोरे नामक शहर से मादक पदार्थ मणिपुर में प्रवेश करते हैं। गुप्तचर एजेंसियों का मानना है कि प्रतिवर्ष 20 से 30 किलो हेरोइन म्यांमार से मणिपुर आती है। यह बंगलादेश की सीमा भी एकदम नजदीक है, जहां उत्तर पूर्व के सभी आतंकवादी संगठनों का प्रशिक्षण शिविर व केन्द्र है। 2 अप्रैल को चार बंगलादेशी मुसलमानों- मु. जियाउर रहमान, याह्या खान, मु. नूरद्दीन तथा मु. मुनीर खान को एक किलो हेरोइन के साथ मणिपुर पुलिस ने थोबाल शहर में पकड़ा। चीन में शरण लेने वाले उल्फा, एनएससीएन (आईएम) यूएनएलएफ, पीएलए तथा अन्य आतंकवादी संगठनों के प्रमुख नेता मणिपुर के चूराचांदपुर, चन्देल, उखरूल, सेनापति व तमेंडलांड जिलों में पोस्ता उत्पादन के लिए धन उपलब्ध कर रहे हैं। हेरोइन बनाने वाले कई कारखानों का संचालन कर रहे हैं। अवैध धंधा करने वालों में अधिकांशत: ईसाई हैं। यहां चर्च अत्यंत सक्रिय है। इम्फाल घाटी में भी चर्च का जाल फैलता जा रहा है और उसी अनुपात में आतंकवादी और उनके संगठन भी बढ़ते जा रहे हैं। यहां एनएससीएन (आईएम), यूएनएलएफ, पीएलए, यूएनसी तथा चर्च का गठबंधन बन गया है। आईएसआई भी इन सबकी मदद कर रहा है। सभी ग्रामों में चर्च बनाए जा रहे हैं, मदरसों व मस्जिदों का विस्तार होता जा रहा है और माओवादी इकाइयों का गोपनीय गठन होता जा रहा है। जब कभी सेना सक्रिय हो जाती है तो मानवाधिकार के नाम पर देशद्रोही शक्तियां सेना पर बरस पड़ती हैं और अभद्र भाषा में जवानों की निन्दा करती हैं। यदि केन्द्र सरकार ने 42,000 जवानों को मणिपुर में तैनात नहीं किया होता तो वहां 28 जनवरी को विधानसभा का चुनाव इन आतंकवादियों के उत्पात के कारण नहीं हो पाते। फिर भी वहां सैकड़ों लोग मारे गये। सेना भी उनको बचा नहीं पायी, क्योंकि सेना के हाथ बंधे थे, उन्हें खुली छूट नहीं दी गई थी। मणिपुर की पीड़ित व निर्दोष जनता इन सबके विरुद्ध आवाज उठाना चाहती है, किन्तु हिंसा के डर से उसकी आवाज बन्द है।
असम के हालात– असम में उल्फा (परेश गुट) का आतंक जारी है। 7 अप्रैल को नेशनल रिफाइनरी लिमिटेड लि. (गुवाहाटी) में उल्फा ने अपने स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आग लगा दी, करोड़ों का नुकसान हुआ। सेना पहले से ही सतर्क थी इसलिए उल्फा अधिक तबाही न मचा सका। असम के जितने नामी-गिरामी चोर, डकैत, कार-चोर, नशीले पदार्थों के तस्कर थे, सेना व पुलिस ने पहले से ही उन पर नजर रखी थी। परेश बरुआ इन अपराधियों को धन देकर इनसे घिनौना काम करवाता है। इनसे ही बम विस्फोट करवाता है। सेना ने ऊपरी असम के तिनसुकिया, डिब्रूगढ़ व शिवसागर जिले में अपनी चौकसी बढ़ा रखी है। उल्फा, एन.एस.सी.एन. (आईएम), माओवादी तथा आईएसआई- इन चारों ने समन्वित योजना बनाकर असम में तबाही मचाने की ठान रखी है। कल्पना करें यदि सेना वहां न होती तो हालात कैसे होते? असम के चाय बागानों के मालिक, बड़े कारखानों तथा बड़े-बड़े व्यवसायियों से धन लेकर उल्फा अपने को मजबूत बनाता रहता है।
मेघालय– समय-समय पर मेघालय में भी आतंकवाद सर उठाता रहता है। इस समय गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी (जीएनएलए) तथा आचिक नेशनल वालेंटियर काउंसिल का उत्पात अपनी चरम सीमा पर है। ये दोनों ही चर्च प्रायोजित आतंकवादी संगठन हैं जिनका उल्फा, एनएससीएन (आईएम) तथा माओवादियों से गठबंधन है। इन्होंने कोयला व्यापारियों, ट्रक मालिकों तथा व्यवसायियों का जीना दूभर कर दिया है। धन उगाही के लिए अपहरण की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इस वर्ष जनवरी में गारो-राभा संघर्ष के पीछे भी चर्च व इन आतंकवादी संगठनों का ही हाथ था।
पूर्वोत्तर में अन्तरराष्ट्रीय षड्यंत्र– 30 किमी. चौड़े सिलीगुड़ी गलियारे (चिकन नेक) को काटकर पूरे उत्तर पूर्वांचल को शेष भारत से अलग कर देने की योजना बनाकर अमरीका, ब्रिटेन, कोरिया, चीन, पाकिस्तान व बंगलादेश काम कर रहे हैं। जहां बंगलादेश अपनी मुस्लिम आबादी यहां घुसा रहा है वहीं पाकिस्तान की आईएसआई यहां सक्रिय है। चीन ने सभी आतंकवादी प्रमुखों को निर्देशित किया है कि वे इन्डो-बर्मा रिवाल्यूशनरी फ्रण्ट (आईबीआरएफ) बनाकर संगठित हो जाएं और अपनी मारक क्षमता 30,000 प्रशिक्षित कैडर तक ले जाएं। ऐसा हो जाने पर चीन भारत पर आक्रमण कर देगा। इस क्षेत्र में माओवादी बढ़ते जा रहे हैं। चर्च भी ईसाईयों की संख्या मतान्तरण के माध्यम से बढ़ाता जा रहा है। इसीलिए चीन पूरे उत्तर पूर्वांचल को निगल जाने की तैयारी में लगा हुआ है।
इन सबको नियंत्रित करने में सेना की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय सेना एक तरफ चीन की सेना से अन्तरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा करती है तो दूसरी तरफ इन आतंकवादियों तथा अपराधी तत्वों से समाज की रक्षा करती है। ये आतंकवादी केवल सेना से डरते हैं। सेना ही उनको नियंत्रित कर पाती है। राज्य पुलिस तो इन आतंकवादियों के लिए कुछ भी नहीं है। सेना की देशभक्ति तथा कर्तव्य पालन के कारण आतंकवादी या तो मारे जाते हैं या पकड़े जाते हैं या फिर अपने शिविर में दुबक जाते हैं। इसलिए सशस्त्र सैन्य बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के नाम पर सेना को बदनाम करने की मुहिम चल पड़ी है। सेना की सक्रियता एवं कर्तव्यनिष्ठा के कारण एनएससीएनई (आईएम), उल्फा, यूएनएलएफ तथा पीएलए के सभी शीर्ष नेता या तो जेल की हवा खा रहे हैं या फिर केन्द्र सरकार से शांति वार्ता कर रहे हैं। ऐसा करने के लिए वे मजबूर हैं, वरना या तो पकड़े जाएंगे या फिर मारे जाएंगे। इसलिए चर्च, चर्च-पोषित गैरसरकारी संगठन, विदेश पोषित गैरसरकारी संगठन, छद्म मानवाधिकारवादी संगठन तथा कुछ पत्रकार सशस्त्र सैन्य बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) को हटाने की मांग कर रहे हैं। वास्तव में जो लोग आतंकवादियों का मुखौटा बनकर सेना को बदनाम करने तथा उसे कमजोर करने की मुहिम चला रहे हैं, उनके धन के स्रोतों तथा उनके अन्तरराष्ट्रीय संबंधों की जांच कराने की आवश्यकता है। सैन्य बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाना अथवा उसमें संशोधन करना राष्ट्र के लिए घातक होगा और पूर्वोत्तर भारत के लिए तो प्राणघातक!
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