दृष्टिपात
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दृष्टिपात
आलोक गोस्वामी
पाकिस्तान ने भारत के साथ अपनी मई 2011 में हुई दो-तरफा बातचीत के दौरान एक नया शिगूफा छोड़ा था कि 'सर क्रीक' के भूगोल में बदलाव आ गया है, लिहाजा साथ लगती 'पीर सनाई क्रीक' (भारत की सीमा में) के मुहाने पर उसका दावा बनता है। अब उसी बातचीत के अगले दौर में यह मुद्दा उठने की पूरी संभावना है। भारतीय पक्ष ने तब भी पाकिस्तान के नए दावे का पुरजोर विरोध किया था। दरअसल 2007 में हुए सर्वे का कहना था कि 'सर क्रीक' पूरब की तरफ एक से डेढ़ किमी. खिसक गई है। यह भी कहा गया था कि 'पीर सनाई' को 'सर क्रीक' से अलग करने वाला जमीनी टुकड़ा भी वक्त के साथ गायब हो गया है। नतीजा यह कि 'सर क्रीक' और 'पीर सनाई' के मुहाने तकरीबन घुलमिल गए हैं। इसके चलते, पाकिस्तान के अनुसार, उसका हक बनता है कि उसके इलाके की रेखा पूरब में 'पीर सनाई क्रीक' के नजदीक तक बढ़ा दी जाए।
नई दिल्ली ने पाकिस्तानी दावे पर कड़ा एतराज जताया, कहा कि इस्लामाबाद का दावा भारत की नावों/जहाजों की पीर सनाई क्रीक तक पहुंच को रोक देगा। यह 'क्रीक' भारत के लिहाज से अहम है, क्योंकि वहां भारत की नावें वगैरह आती- जाती रहती हैं। उधर, पाकिस्तानी कहते हैं कि उनके अधिकारी भारत की नावों को 'क्रीक' से आने-जाने की इजाजत दे देंगे। भारत ने इस पर एतराज करते हुए कहा है कि बांटने की रेखा तो जलधारा के बीच होनी चाहिए न कि सर क्रीक का पूर्वी किनारा और साथ लगता 2 नॉटिकल मील का हिस्सा, जैसा कि पाकिस्तानी कहते हैं। नई दिल्ली को लगता है कि पाकिस्तान राजनीतिक समझ दिखाएगा और धारा के बीच को ही सीमा मान लेगा। पर विशेषज्ञों को इस बात पर संदेह बना हुआ है।
मलेशिया में फतवा
प्रदर्शनों से दूर रहें मुसलमान
मलेशिया के बड़े वाले मुल्ला-मौलवियों ने अभी हाल में एक नया फतवा छोड़ा है कि मुसलमानों के लिए ऐसे प्रदर्शनों में भाग लेना 'हराम' है जो देश में उथल-पुथल मचाते हों। फतवा 28 अप्रैल, 2012 को उस बड़े प्रदर्शन के कुछ दिनों बाद आया है जिसमें हजारों की तादाद में लोगों ने सरकार विरोधी रैली में भाग लिया था।
कुछ साल पहले मलेशिया की इसी राष्ट्रीय फतवा कमेटी ने मुसलमानों को योग करने से भी मना करते हुए फतवा जारी किया था। कमेटी का कहना था कि 'इसमें दूसरे मत-पंथों की चीजें हैं, जो मुसलमानों को भ्रष्ट कर सकती हैं।' बहरहाल अबकी बार फतवा कमेटी का कहना है कि मुसलमान ऐसी किसी भीड़ का हिस्सा न बनें जिससे कुछ हासिल न होता हो, जो कानून के खिलाफ हो या गड़बड़ी फैलाती हो। मलेशिया में अभी कुछ दिन पहले ही विपक्ष के समर्थन से चुनाव सुधारों की मांग करते हुए प्रदर्शन किए गए थे, जिसमें कुछ लोग हिंसा पर उतर आए थे। इसी के चलते, फतवा कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल शुकोर हुसिन के अनुसार, मामले पर काफी सोच-विचार किया गया था। हुसिन कहते हैं, इस्लाम में दंगे भड़काने, गड़बड़ी फैलाने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की मनाही है। इसमें चुनी हुई सरकार को कुर्सी से हटाने के लिए ऐसे प्रदर्शन आयोजित करने से बाज आना भी शामिल है। नुकसान, परेशानी या मुसलमानों में बेचैनी पैदा करने की कोशिशों को कोई समर्थन नहीं दे सकता। मलेशिया की फतवा कमेटी समय-समय पर अपने मुल्क के मुसलमानों के लिए फतवे जारी करती रहती है।
फिर उपजेंगे अंग!
यूनिवर्सिटी कालेज ऑफ लंदन में जारी है शोध
अब इंसान के शरीर के अंग फिर से उगेंगे, बिगड़े या बदशक्ल हुए अंग फिर से सुधर जाएंगे? लगता तो यही है। यूनिवर्सिटी कालेज ऑफ लंदन की प्रयोगशाला में ब्रिटेन के वैज्ञानिक प्रो. अलेक्जेंडर सीफालियान की अगुआई में एक दल इंसानी अंगों को फिर से उपजाने का प्रयोग कर रहा है, जिसमें बहुत हद तक सफलता भी मिल रही है। नेनोटेक्नोलॉजी एंड रीजनेरेटिव मेडिसिन विभाग के इन वैज्ञानिकों का दावा है कि वे शरीर के अंगों को फिर से उपजाने और बिगड़े अंगों को सही सूरत में लाने पर काम कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के लिए मरीज की ही कोशिकाओं का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके चलते शरीर को नए उपजे अंग को अपनाने में दिक्कत नहीं होती। ये वैज्ञानिक दुनिया में पहली बार एक मरीज की नाक फिर से उपजा रहे हैं। विकसित की जाने वाली नाक सीधे मरीज के चेहरे पर नहीं लगा दी जाएगी बल्कि उसकी बाजू की खाल के नीचे रोपे जाने वाले एक गुब्बारे में रखी जाएगी। चार हफ्तों में इस पर खाल और खून की नसें उपज आएंगी, जिसके बाद उसे चेहरे पर लगाया जाएगा। दरअसल यह नाक पॉलीमर से बनाई जाएगी, जो पतले लेटैक्स रबर जैसा अरबों कणों से बना होता है, जिसमें हर कण एक नैनोनीटर (मीटर का एक अरबवां भाग) से कुछ ही ज्यादा आकार का होता है। यानी चौड़ाई में आदमी के एक बाल से 40 हजार गुना छोटा। कणों के अंदर हजारों छोटे-छोटे छेद होते हैं, इन्हीं में ऊतक उपजेंगे और इनका हिस्सा बन जाएंगे। फिर ये असली नाक जैसी ही दिखेगी और वैसी ही महसूस होगी। नाक के अलावा सांस की नली और धमनी भी बनाई जा रही है। उन नए उपजे अंगों-उपांगों को मरीजों के शरीर में जोड़ने के बाद ही असली परीक्षा होगी।
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