उत्तर प्रदेश में चलेगा इस्लामी एजेंडा!
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अखिलेश की मुलायम नीति
इस्लामी एजेंडा!
लखनऊ से शशि सिंह
माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश को अखिलेश यादव के रूप में एक उच्च शिक्षित और नियोजित विकास- केंद्रित मानसिकता वाला मुख्यमंत्री मिला है। यह भी कल्पना की जा रही थी कि अब राज्य अपने पिछड़ेपन से उबर सकेगा। जनता ने तो मायावती के कुशासन से मुक्ति की आशा के साथ विकास के लिए वोट दिया था। लेकिन उसकी उम्मीद पर पानी फिरता जा रहा है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और सरकार का एजेंडा पूरी तरह वोट बैंक आधारित है। सरकार विशेष रूप से यहां की मुस्लिम आबादी को ध्यान में रखकर काम कर रही है।
राज्य की अफसरशाही की प्रमुख कुर्सियों से लेकर निगम और बोर्डों में मनोनयन, राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले इसी वोट बैंक को रिझाने के लिए किए जा रहे हैं। पार्टी और सरकार विकास के काम करने की बजाय साल 2014 के लोकसभा चुनाव को दृष्टि में रखकर कदम उठा रही है। सूत्रों का कहना है कि सरकार मुस्लिम आबादी को ध्यान में रखते हुए राज्य के उन्हीं की बहुलता वाले 21 जिलों में नये माध्यमिक विद्यालय खोलने जा रही है। दरअसल राज्य सरकार केन्द्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार से मुस्लिमों को लुभाने में होड़ कर रही है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत केंद्र सरकार काफी धन उत्तर प्रदेश को देने जा रही है। हर पांच किलोमीटर पर माध्यमिक विद्यालय खोले जाने हैं। लेकिन राज्य सरकार हर पांच किलोमीटर पर माध्यमिक विद्यालय खोलने की बजाय उस मद का सारा धन मुस्लिम बहुल इलाकों में विद्यालय खोलने पर खर्च करने जा रही है।
मुसलमानों के लिए स्कूल
उल्लेखनीय है, उत्तर प्रदेश के 21 जिलों में कमोबेश मुस्लिमों की ठीक-ठाक आबादी है। एक बड़े वोट बैंक के रूप में उन्हें देखा जा रहा है। विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर, आगरा, अलीगढ़, सहारनपुर, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर समेत 21 मुस्लिम बहुल जिलों में ही इन विद्यालयों को खोले जाने का फैसला विशेष रूप से राज्य को सांप्रदायिक दृष्टि से बांटने का सुनियोजित प्रयास माना जा रहा है। इन जिलों से नये विद्यालयों की आवश्यकता तथा प्रस्ताव भी मांग लिये गए हैं। सूत्रों की मानें तो राज्य के 21 जिलों के 72 विकास खंडों में इन विद्यालयों को खोला जाना है। इनमें सबसे अधिक आठ विद्यालय मुजफ्फरनगर में खोले जाने हैं। बिजनौर और सहारनपुर में छह-छह, रामपुर, गाजियाबाद और सिद्धार्थनगर में पांच-पांच और बरेली व मुरादाबाद में चार-चार प्रखण्डों को इस निमित्त चिन्हित किया गया है। हर विद्यालय में एक प्रधानाध्यापक, सात अध्यापक, एक गैर शिक्षण कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी के दो कर्मचारियों की नियुक्ति होनी है।
अखिलेश की सरकार बनने के बाद से ही उसका सांप्रदायिक नजरिया सामने आने लगा है। एक कैबिनेट तथा सात राज्यमंत्री मुस्लिम ही नियुक्त किये गए। हाल के सालों में इतने मुस्लिम मंत्रियों की नियुक्ति पहली बार हुई है। सरकार का पहला बड़ा फैसला आईएएस अफसर जावेद उस्मानी को मुख्य सचिव बनाने का था। दूसरा बड़ा और विवादास्पद फैसला श्रीराम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की ओर से मुकदमा लड़ रहे जफरयाब जीलानी को राज्य का अपर महाधिवक्ता बनाने का था। जीलानी पिछले तीन दशक से रामजन्मभूमि आंदोलन का विरोध करते आए हैं। उन्हें 'बाबरी आंदोलन' का अगुआ माना जाता है। माना जा रहा है कि यह नियुक्ति भी मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की नीयत से की गई है।
सरकार ने गांव से लेकर शहर तक फैले कब्रिस्तानों को सुरक्षित करने के बहाने उनके चारों ओर चहारदीवारी के निर्माण का फैसला किया है। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ का कहना है कि इससे तो गांव-गांव में तनाव की स्थाई नींव पड़ जाएगी। इसे लेकर ईसाई समुदाय में भी असंतोष देखा जा रहा है। उसका भी कहना है कि अगर करना ही है तो उनके समुदाय से संबंधित कब्रगाहों के भी चारों ओर चहारदीवारी खड़ी की जाए।
दरार डालने की साजिश
सरकार बनते ही राज्यभर की 10वीं पास सभी मुस्लिम लड़कियों को आगे की पढ़ाई के लिए 30 हजार रुपये की एकमुश्त मदद का फैसला हिंदू छात्राओं को मुंह चिढ़ाने वाला है। इस फैसले में गरीबी और आर्थिक विपन्नता को आधार नहीं बनाया गया। आखिर हिंदू समुदाय में गरीब लड़कियों की संख्या कम तो नहीं है। उन्हें इस योजना में क्यों नहीं शामिल किया गया? सरकार फैजाबाद और लखनऊ कचहरी में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में शामिल दो आरोपियों के ऊपर लगे मामले वापस करने की योजना भी बना रही है। इसके साथ ही राज्य के सुरक्षा बलों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए भी सरकार विशेष प्रावधान करने के बारे में भी विचार कर रही है। उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह यादव ने ही अपने पहले मुख्यमंत्रित्वकाल में शांति सुरक्षा बल के गठन का मार्ग प्रशस्त किया था। उसमें विशेष रूप से मुस्लिमों की भर्ती का प्रावधान किया गया था। उस समय पीएसी को हिंदुओं की ओर झुकाव वाला बल आरोपित किया गया था। शांति सुरक्षा बल आकार लेता, उससे पहले सरकार गिर गई और चुनाव हो गए। बाद में सत्तारूढ़ हुई भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उस प्रावधान को वापस ले लिया था।
इस्लामीकरण की तैयारी
गोरक्षपीठके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ अखिलेश सरकार के मुस्लिम तुष्टीकरण के प्रयास को प्रदेश के इस्लामीकरण की संज्ञा देते हैं। उनका कहना है कि सपा सरकार को समाज के सभी वर्गों ने सुशासन के लिए वोट दिया था, न कि प्रदेश के इस्लामीकरण के लिए। सरकार जरूर अखिलेश यादव के नेतृत्व में काम कर रही है, लेकिन इसका पूरा एजेंडा मुलायम सिंह अपनी वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर तय कर रहे हैं। जनता में यह संदेश जा रहा है कि मुलायम ही अपने हिसाब से सरकार चला रहे हैं। सरकार बनने के बाद दो ही काम हुए हैं, पहला काम है ढाई सौ अफसरों का स्थानांतरण और पदस्थापन। इसमें भी बड़ पैमाने पर पैसे के लेन-देन की बात सामने आ रही है। दूसरा अब तक का सबसे घातक काम हो रहा है प्रदेश के इस्लामीकरण का। उन्होंने आरोप लगाया कि केवल मुस्लिम लड़कियों को 30 हजार रु. की मदद देना भेदभाव वाला फैसला है। सालों से हिंदुओं के कट्टर विरोधी रहे जीलानी को अपर महाधिवक्ता बनाया जाना सीधा-सीधा हिंदुओं के प्रति दुर्भावनापूर्ण दृष्टि रखने जैसा है। जीलानी दशकों से रामजन्मभूमि पर मंदिर का खुला विरोध करते आ रहे हैं। कब्रगाहों पर चहारदीवारी से गांव-गांव में झगड़े होंगे। सरकार भी चाहती है कि इस तरह का तनाव पैदा हो ताकि वह अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सके।
सरकारी स्तर पर भेदभाव
राजधानी लखनऊ के पूर्व महापौर और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डाक्टर दिनेश शर्मा ने भी सरकार के प्रयास को समाज में भेदभाव पैदा करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान पंथनिरपेक्ष है। संविधान की शपथ लेकर ही कोई सरकार अस्तित्व में आती है। अखिलेश सरकार भी संविधान की शपथ लेकर सत्ता में आयी है। उसे ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे बहुसंख्यक समाज में भेदभाव की भावना घर करे। प्रदेश सरकार क्या, किसी भी सरकार को बहुसंख्यकों की भावनाओं का अपमान नहीं करना चाहिए। संविधान में सबको समान अवसर की बात कही गई है। सरकार का कर्तव्य है कि वह संविधान की भावना का ध्यान रखे।
मुस्लिम तुष्टीकरण
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने प्रदेश सरकार पर करारा प्रहार करते हुए कहा कि सरकार पूरी तरह मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चल रही है। उन्होंने कहा कि हाईस्कूल पास मुस्लिम लड़कियों को 30 हजार रुपये की मदद देने का फैसला हिंदू लड़कियों में निराशा भरने वाला है। इस तरह के फैसले भेदभाव की भावना को जन्म देते हैं। किसी भी सरकार को इस तरह के फैसले नहीं लेने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति भी ठीक नहीं है।
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