व्यंग्य वाण
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व्यंग्य वाण
विजय कुमार
पिछले दिनों भारत के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा पाकिस्तान के प्रवास पर गये। इसके बाद लोकसभा की अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार भी वहां हो आयीं। इससे शर्मा जी बहुत प्रसन्न हैं। उनका खिला हुआ मुखमंडल देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे दोनों ही प्रतिनिधिमंडलों में साथ गये हों।
– शर्मा जी, आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है ?
– भारत और पाकिस्तान के संबंधों में एक नया और क्रांतिकारी मोड़ आने वाला है। अब पाकिस्तान शीघ्र ही हमें व्यापार में 'सर्वाधिक प्रिय देश' का स्थान दे देगा।
– यह सर्वाधिक प्रिय देश क्या होता है ?
– इसका अर्थ है 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' यानि एम.एफ.एन।
– शर्मा जी, छठी फेल होने के कारण इतनी अंग्रेजी तो मैं भी समझता हूं, पर इससे हमें क्या लाभ होगा ?
– इससे दोनों देशों के बीच व्यापार के दरवाजे पूरी तरह खुल जाएंगे और व्यापारियों को लाभ होगा। इससे हमें वे चीजें सस्ती मिलेंगी, जो दूर के देशों से महंगे दाम पर मंगानी पड़ती हैं। हमारा व्यापार करोड़ों से बढ़कर अरबों–खरबों तक पहुंच जाएगा।
– शर्मा जी, आप भले ही कितने खुश हो लें, पर मुझे तो इन तिलों में कोई तेल दिखाई नहीं देता।
– तो तुम अपना चश्मा बदलवा लो। मुझे तो लग रहा है कि दोनों देशों में स्थायी मित्रता के दिन आने ही वाले हैं। भारत को चाहिए कि अपने दिल ही नहीं, घर के दरवाजे भी पूरी तरह खोल दे।
– शर्मा जी, हमने तो दिल के दरवाजे तब से ही खोल रखे हैं, जब से पाकिस्तान का जन्म हुआ है, पर उसने इसके बदले में हमें क्या दिया, यह भी तो सोचो?
– वह क्या दे सकता है, वह तो छोटा भाई है। बेचारा गरीब, किस्मत का मारा, अपनी हालात से लाचार। अमरीकी डॉलर का मोहताज।
– जी हां, तुमने शायद उस जेबकतरे के बच्चे की बात सुनी होगी, जिसने मां के पेट से बाहर आते–आते दाई के हाथ से चूड़ी उतार ली थी। ऐसा ही हाल पाकिस्तान का है।
– अच्छा….?
– और क्या, अलग होते ही उसने कश्मीर पर हमला कर उसका एक तिहाई हिस्सा अवैध रूप से कब्जा कर लिया। लगातार घुसपैठिये भेजकर बचे हुए कश्मीर को भी वह कब्जाना चाहता है। उसकी शह पर घाटी से सभी हिन्दुओं को खदेड़ दिया गया है। 1965, 1971 और 1999 के युद्ध तो आपने भी देखे हैं। उसकी नजर में हम सर्वाधिक प्रिय नहीं, सर्वाधिक घृणित देश हैं।
– छोड़ो वर्मा जी, कब तक इन्हें याद करोगे ? तुमने वह फिल्मी गाना सुना ही होगा, 'छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी..।'
– शर्मा जी, ये पुरानी बातें नहीं हैं। ये तो दिल पर लगे हुए वे घाव हैं, जो कभी नहीं भर सकते। क्या हम संसद पर हुए हमले और लोकतंत्र के उस मंदिर की रक्षा के लिए प्राण देने वालों को भूल जाएं, क्या मुंबई में हुए आतंकी हमले को याद करना बंद कर दें ? उन मां–बहिनों से पूछो, जिनके सुहाग इन हमलों में मिट गये हैं।
– मेरा ये मतलब नहीं है वर्मा जी…।
– तुम्हारा मतलब चाहे जो हो, पर हमने पाकिस्तान को सदा छोटा भाई माना है। उसकी खुशी के लिए हमने क्या–क्या नहीं किया? रेल चलाई, बसें चलाई। जिन्ना की प्रशंसा की। उसके कलाकारों को पैसा और प्रतिष्ठा दी। खुद घाटा उठाकर उसे तेल, गैस, राशन और सब्जियां दे रहे हैं। जरदारी की निजी यात्रा को सरकारी जैसा सम्मान दिया। 14 अगस्त को सीमा पर मोमबत्तियां भी जलाते हैं, पर वह तो कुत्ते की दुम है, जो कभी सीधी नहीं होगी। इसलिए..
– इसलिए क्या.. ?
– इसलिए इस दुम को काटकर आग में झोंक देना ही एकमात्र निदान है। अबकी बार इसका इलाज ऐसा हो कि न मर्ज रहे न मरीज। पाकिस्तान ही नहीं, भारत में रहने वाले उसके 'सर्वाधिक प्रिय शुभचिंतकों' का भी यही इलाज होना चाहिए।
शर्मा जी ने चुपचाप घर चले जाने में ही अपनी भलाई समझी।
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