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जम्मू–कश्मीर /विशेष प्रतिनिधि
…पर इन आतंकवादियों की पत्नियों और बच्चों के बारे में अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं
सीमा पार पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवाद का पाठ पढ़ने गए आतंकवादी अब जम्मू-कश्मीर वापस लौटने लगे हैं। सरकार ने उनके पुनर्वास सम्बन्धी नीति भी घोषित कर दी है, किन्तु अभी तक यह स्पष्ट नहीं कि उनके साथ जो पाकिस्तानी पत्नियां (मुस्लिमों में एक से अधिक पत्नी रखने का चलन है) तथा उनके बच्चों की नागरिकता का क्या होगा तथा उनका पुनर्वास कैसे होगा?
लगभग दो वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने कथित रूप से केन्द्र सरकार से परामर्श करने के पश्चात यह नीति घोषित की थी कि 'भटके हुए युवकों' (आतंकवादियों) की सीमा पार से वापसी पर सरकार वचन देती है कि उनके पुनर्वास के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे। उन्हें जीविका के साधन जुटाने के लिए नगद राशि के अतिरिक्त सरकारी नौकरी भी दी जा सकती है इस नीति की घोषणा के पश्चात, सरकारी सूत्रों के अनुसार, अभी तक 1050 ऐसे आतंकवादियों के परिजनों ने पुलिस तथा सुरक्षा बलों के पास आवेदन भेजा है कि उनके युवक सीमा पार से वापस आना चाहते हैं। इन आवेदनों की जांच का काम जारी है और उनमें से कई के वापस लौटने के लिए कार्यक्रम व रास्ते भी घोषित कर दिए गए हैं। गत दो-तीन महीनों में लगभग 25 ऐसे युवक व उनके परिवार इस राज्य में वापस पहुंच चुके हैं। इनमें से अधिकांश पाकिस्तानी पासपोर्ट तथा वीजा के साथ नेपाल के रास्ते भारत आए और फिर कश्मीर पहुंचे हैं। ये अपने साथ दो-दो, तीन-तीन पाकिस्तानी मूल की पत्नियां और उनसे पैदा हुए दो-दो, तीन-तीन बच्चे भी लाए हैं। एक अनुमान के अनुसार मई के पहले सप्ताह तक जो आतंकवादी यहां पहुंचे हैं उनके साथ 90 से अधिक महिलाएं तथा पाकिस्तान में पैदा होने वाले बच्चे भी हैं।
सीमा पार से आने वाले इन आतंकवादियों की जांच तो विभिन्न सुरक्षा बल व खुफिया एजेंसियों के अधिकारी संयुक्त रूप से कर ही रहे हैं किन्तु सरकार इस संबंध में चुप्पी साधे हुए है कि सीमा पार से आने वाली महिलाओं तथा बच्चों का पुनर्वास कैसे होगा, क्योंकि वह न केवल विदेशी हैं अपितु गैरराज्यीय भी हैं। जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार गैरराज्य का नागरिक इस राज्य का नागरिक नहीं बन सकता, भले ही वह भारत का नागरिक क्यों न हो। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि 1947 में भारत के पीड़ादायक बंटवारे के पश्चात जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्रों में सीमा पार पाकिस्तान से 3000 से अधिक पिछड़ी जाति के सिख तथा अन्य परिवार भारत आ गए थे। वे गत 65 वर्षों से इस राज्य में शरणार्थियों का ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उन्हें अभी तक इस राज्य में नागरिक के अधिकार नहीं दिए गए हैं, जिसके लिए वे संघर्ष कर रहे हैं। इन पाकिस्तानी शरणार्थियों के नेताओं का कहना है कि अगर डा. मनमोहन सिंह, श्री इन्द्र कुमार गुजराल तथा अन्य अनेक लोग पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में आकर भारत के प्रधानमंत्री तक बन सकते हैं तो अगर हम जम्मू-कश्मीर आ गए तो हमारा दोष क्या है? इन शरणार्थियों का यह भी प्रश्न है कि अगर आतंकवादियों की पाकिस्तानी पत्नियां तथा बच्चे इस राज्य में आकर बस सकते हैं तो उन्हें क्यों प्रताड़ित किया जा रहा है? क्या यह साम्प्रदायिक तथा कट्टरवादी सोच का परिणाम नहीं है?
केरल /प्रदीप कृष्णन
पुलिस तंत्र में भी घुसे कट्टरवादी तत्व?
केरल की पुलिस में ही कुछ उग्र व आतंकी तत्व शामिल हैं, यह खुलासा किसी और ने नहीं स्वयं केरल की पुलिस ने ही किया है। केरल पुलिस के चर्चित सब इंस्पेक्टर बीजू सलीम को पूछताछ के लिए 'कस्टडी' में देने की अपील करते हुए केरल पुलिस ने यह खुलासा किया। केरल के 258 मुस्लिम नेताओं व संगठनों के ई-मेल खातों की निगरानी के संदर्भ में तिरुअनंतपुरम के मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी (सीजेएम) के समक्ष केरल पुलिस ने कहा कि इस मामले को तूल देने का मुख्य आरोपी बीजू सलीम ही है, लेकिन उसे कई वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। बीजू सलीम को नकली स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के आधार पर अवकाश पर जाने देने में भी कुछ लोगों ने उसकी मदद की। केरल पुलिस ने कहा है कि पुलिस मुख्यालय के उच्च तकनीकी अपराध अन्वेषण ब्यूरो (हाईटेक क्राइम सेल) में बतौर उपनिरीक्षक (सब इंस्पेक्टर) कार्यरत बीजू सलीम का एक प्रतिबंधित मुस्लिम आतंकी संगठन से भी लम्बे समय से संबंध है। बीजू सलीम को 258 मुस्लिम नेताओं व संगठनों के ई-मेल खातों पर निगरानी रखने के गोपनीय आदेश के गलत तरीके से प्रस्तुत करने व उसे मीडिया तक पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में उसे गत 24 जनवरी को उसकी सेवा से निलंबित कर दिया गया है और प्रारंभिक जांच के बाद 3 फरवरी को उसके विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया गया है।
बीजू सलीम पर आरोप है कि उसने तत्कालीन पुलिस उपमहानिदेशक (खुफिया विभाग) ए. हेमचन्द्रन के 3 नवम्बर, 2011 के गोपनीय आदेश को जमात-ए-इस्लामी के साप्ताहिक पत्र 'मध्यमम्' तक पहुंचाया, जिसमें 2508 मुस्लिम नेताओं और संगठनों के साथ ही 10 अन्य प्रमुख नेताओं के ई-मेल व अन्य तकनीकी संबंधी गतिविधियां की निगरानी करने को कहा गया था। जमात-ए-इस्लामी ने इस खबर को और भी सनसनीखेज बनाते हुए छापा कि 258 में से कुछ मुस्लिम नेता तो राज्य में गठबंधन सरकार के प्रमुख सहयोगी मुस्लिम लीग के प्रमुख नेता हैं। हालांकि जमात-ए-इस्लामी के पत्र 'मध्यमम्' का कहना है कि इस संबंध में एक पुलिस अधीक्षक (खुफिया विभाग) द्वारा सेवा प्रदाता कम्पनियों को लिखे पत्र से उसे जानकारी मिली कि इन नेताओं के प्रतिबंधित 'सिमी' से संबंधों को खोजने की कोशिश की जा रही है।
इस रपट को 'साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने का षड्यंत्र' बताते हुए मुख्यमंत्री ओमेन चांडी ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी ने उन 10 लोगों के नाम नहीं दिए जो मुस्लिम नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अधीक्षक द्वारा 'सिमी' से संबंध की बात भूलवश लिखी गई है। इस बीच बीजू सलीम की जांच में जुटे पुलिस दल को एक वर्ग के कुछ उच्च अधिकारियों तथा समाचार जगत से जुड़े कुछ कर्मियों की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है, पुलिस उनके विरुद्ध भी कार्रवाई का मन बना रही है। लेकिन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की बैसाखी के सहारे सत्ता में टिकी कांग्रेस और उसके मुख्यमंत्री ओमेन चांडी इसकी इजाजत देंगे, इसकी उम्मीद बेमानी है।
महाराष्ट्र /द.बा.आंबुलकर
भू–माफियाओं की सरकार!
हाराष्ट्र में सत्तारूढ़ सोनिया और पवार कांग्रेस की गठबंधन सरकार की एक खास विशेषता यह है कि इसके अधिकांश नेताओं-विधायकों की नजरें सरकारी जमीनों पर ही टिकी रहती हैं। पिछले कुछ वर्षों में सरकारी जमीनों पर इन दलों के नेताओं और उनके चहेतों द्वारा अवैध कब्जे के जितने मामले सामने आए, उतने पिछले कई दशकों में नहीं आए थे। इसीलिए महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के जुझारू नेता देवेन्द्र फडणवीस ने सोनिया-पवार गठबंधन सरकार को 'भू-माफियाओं की सरकार' की संज्ञा देते हुए अनेक मंत्रियों-विधायकों के भूमि घोटाले से संबंधित मामलों को सदन के पटल पर रखा। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रपट के आधार पर तैयार की गई एक सीडी को सदन में प्रस्तुत कर देवेन्द्र फडणवीस ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया कि वर्तमान और पूर्व कुल मिलाकर दस कांग्रेसी मंत्रियों के विरुद्ध सरकारी जमीन को निजी तौर पर प्रयोग करने और अपने परिवार व मित्रों के नाम पर गठित शिक्षा संस्थाओं के लिए अवैध तरीके से आवंटन का मामला बनता है।
देवेन्द्र फडणवीस द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा में प्रस्तुत की गई रपट के अनुसार राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा वर्तमान में भी मंत्री छगन भुजबल से संबद्ध 'मुम्बई एजुकेशन ट्रस्ट' को नासिक में सन् 2003 में 41 हजार 300 वर्ग मीटर जमीन मात्र 1 लाख 55 हजार रुपयों में आवंटित की गयी। छगन भुजबल के सांसद पुत्र समीर भुजबल को उनके गृहनगर नासिक में ही 91 हजार 300 वर्गमीटर जमीन नियमों का उल्लंघन कर दी गई। सीएजी (कैग) की रपट के अनुसार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांग्रेसी नेता नारायण राणे के सिंधुदुर्ग शिक्षा प्रसार मंडल के समाज भवन निर्माण हेतु जो 1719 वर्ग मीटर सरकारी जमीन मात्र दस हजार रु.वार्षिक के किराये पर दी गयी है, उसकी वास्तविक कीमत 6 करोड़, 68 लाख रुपये है। एक अन्य मंत्री डा.पतंगराव कदम के भारती विद्यापीठ शिक्षा संस्थान को पुणे स्थित लोहगांव में 19 हजार 200 वर्गमीटर जमीन कौड़ियों के मोल दी गई, जिसकी वर्तमान कीमत लगभग चार करोड़ अस्सी लाख रु. है। इस जमीन का अब तक प्रयोग न होने के कारण उसे सरकार को लौटाने के शासकीय आदेश के बावजूद उस पर अमल न किये जाने पर भी कैग ने कटाक्ष किए हैं।
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान केन्द्रीय मंत्री विलासराव देशमुख के मांजरा शिक्षा संस्थान ने भवन निर्माण हेतु सितम्बर, 2005 में (जब वे स्वयं मुख्यमंत्री थे) लगभग तीस करोड़ रुपए कीमत की जमीन सिर्फ 6 करोड़ रुपयों में हथियाई थी। उस पर अब तक भवन निर्माण के काम की शुरूआत क्यों नहीं हुई, यह सवाल भी रपट में पूछा गया है। कैग ने यह भी पूछा है कि राज्य सरकार में मंत्री तथा कांग्रेसी नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बिखे पाटिल फाउंडेशन को पुणे में 5 हजार 396 एकड़ जमीन की 91 लाख रु. कीमत के स्थान पर मात्र 17 लाख रुपयों में कैसे दी जा सकती है? इसके अलावा राज्य की उप राजधानी नागपुर में कांग्रेस के जिला कार्यालय हेतु आवंटित जमीन पर व्यापारिक भवन निर्माण के मामले में भी रपट में सवालिया निशान लगाये गये हैं। सरकार की जमीन धोखाधड़ी से तथा मिट्टी के मोल हथियाने के लिए इन विधायकों, मंत्रियों तथा नेताओं ने जो हथकंड़े अपनाये उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पूर्व मंत्री वसंत पुरके ने अपने आपको शासकीय कर्मचारी बताते हुए अपनी मासिक आय मात्र 2500 रु.प्रतिमाह बतायी है, जबकि पूर्व मंत्री तथा विधायक डा.सुनील देशमुख ने अपनी मासिक आय 10 हजार 600 रु, विधायक रामराजे निंबालकर ने 5500 रु., विधायक संजय देवतले ने 12500 रु. तो विधायक नितिन राऊत ने अपनी मासिक आय मात्र 12 हजार रु. घोषित की है।
देवेन्द्र फडणवीस द्वारा सदन में प्रस्तुत सीडी में कैग की अधिकारिक रपट के आधार पर दिये गये विवरण की गूंज राज्य विधानसभा के बाहर भी सुनाई दी। एक ओर जहां सदन में संवैधानिक परम्परा के अनुसार कैग की पूरी रपट सदन में प्रस्तुत करने की मांग विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे तथा भाजपा-शिवसेना के साथ ही महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के सभी विधायक कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार के मंत्रियों ने कैग की रपट को कूड़ेदान में फेंक देने का बयान जारी किया। राज्य मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में कैग रपट में कांग्रेस नेताओं पर लगाये गये आरोपों की जांच कराने की बजाय उस रपट के सदन में प्रस्तुत होने के पहले ही सार्वजनिक करने के लिए भाजपा विधायक देवेन्द्र फडणवीस पर क्या कार्रवाई की जा सकती है, इस पर राज्य के महाधिवक्ता से राय लेने का निर्णय लिया गया। इस सारे मामले पर विचार कर महाराष्ट्र के महाधिवक्ता हेरिस खंबाटा ने राय दी कि राज्य सरकार को कैग की रपट खारिज करने का अधिकार नहीं है और सरकार के लिए इस प्रकार की रपट को सदन में प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है। इस राय के बाद राज्य सरकार की हालत सदन से लेकर सड़क तक पतली नजर आ रही है।
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