कल्याणकारी है हिन्दू जीवन दृष्टि
|
संस्कार भारती के संरक्षक श्री योगेन्द्र को 23वां डा. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान
–डा. कृष्णगोपाल, सह सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा. कृष्णगोपाल
'डा. हेडगेवार ने सूत्र दिया था कि भारत की आत्मा हिन्दुत्व है। भारत की संज्ञा, प्रज्ञा, चिंतन एवं इतिहास सबके मूल में अमर हिन्दू दृष्टि ही है। यही कारण है कि तमाम प्रहारों के बावजूद हमारा देश नष्ट नहीं हुआ। पश्चिमी राष्ट्रों के उदय एवं अस्त की कहानी युद्ध की ललकार एवं झंकार पर आधारित है, जबकि हमारे राष्ट्र का निर्माण ऋषियों की अंत:अनुभूति, उनके तप एवं चिंतन के आधार पर हुआ है। इस चिंतन ने ही समस्त जीवों को ईश्वरीय रूप माना, सभी प्राणियों के सुख की कामना की, विचारों के वैविध्य का सम्मान किया, धरती को मां के रूप में तथा सारी पृथ्वी को कुटुम्ब के रूप में स्वीकार किया'। उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सह-सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल ने गत दिनों कोलकाता में 23वें डा. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। यह सम्मान विगत कई वर्षों से कोलकाता की प्रसिद्ध सामाजिक संस्था श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा लगातार दिया जा रहा है। इस वर्ष यह सम्मान रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक तथा संस्कार भारती के संरक्षक श्री योगेन्द्र को दिया गया। सम्मानस्वरूप उन्हें शॉल, नारियल, मान पत्र एवं इक्यावन हजार रुपए का चेक भेंट किया गया।
श्री योगेन्द्र को सम्मानित करते हुए डा. कृष्णगोपाल। साथ में हैं संस्था के पदाधिकारी
डा. कृष्णगोपाल ने कहा कि हिन्दुओं की दृष्टि 'एकम' की है तथा उनका आंगन 'बहुधा' का है। अपने हृदय की उदारता में हिन्दुओं ने सबको समाहित किया है। संस्कार भारती के कार्यों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को संभालने तथा पीढ़ियों को समृद्ध करने का काम संस्कार भारती कर रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कला-साधना हिन्दुत्व दर्शन की साधना है। कला आपत्ति-विपत्ति के समय राष्ट्र की अंत: चेतना को जगाती है। संस्कार भारती बाबा योगेन्द्र के नेतृत्व में इस मूल भाव को सफलतापूर्वक प्रसारित कर रही है।
सम्मान प्राप्ति के बाद श्री योगेन्द्र ने कहा कि साधक को स्नेह-संबल चाहिए, ताकि वह अपनी साधना को गति दे सके। उन्होंने कहा कि आज का कलाकार भाव साधक न होकर व्यापारी होता जा रहा है इसलिए राष्ट्र के जागरण में उसकी साधना प्रभावी नहीं बन पा रही है। सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने इसे कला साधकों का सम्मान बताया तथा प्राप्त राशि को संस्कार भारती को समर्पित कर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. तरुण मजूमदार ने की तथा मुख्य अतिथि थे श्री यादवराव देशमुख। कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात रंगकर्मी श्री विमल लाठ ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन किया संस्था के अध्यक्ष डा. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने। प्रतिनिधि Enter News Text.
टिप्पणियाँ