ईसाई-वामपंथियों के उकसावे पर खुलेआम हुआ गोमांस भक्षण'बीफ फेस्टिवल' का विद्यार्थी परिषद द्वारा तीखा विरोधहिंसा पर उतरे षड्यंत्रकारी
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ईसाई-वामपंथियों के उकसावे पर खुलेआम हुआ गोमांस भक्षण'बीफ फेस्टिवल' का विद्यार्थी परिषद द्वारा तीखा विरोधहिंसा पर उतरे षड्यंत्रकारी

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Apr 28, 2012, 12:00 am IST
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आवरण कथा

दिंनाक: 28 Apr 2012 15:45:24

आवरण कथा

हैदराबाद से नागराज राव

गत 15 अप्रैल को हैदराबाद के ऐतिहासिक उस्मानिया विश्वविद्यालय में तब बेहद तनाव पैदा हो गया जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की अगुआई में परिसर में पहली बार षड्यंत्रपूर्वक आयोजित 'बीफ फेस्टिवल' यानी 'गोमांस उत्सव' के खिलाफ विरोध प्रदर्शित किया गया। इस मौके पर वंचित वर्ग के छात्रों और अल्पसंख्यक छात्र समूहों के साथ उनका तीखा विवाद हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्त्ताओं ने इस 'उत्सव' के विरोध में पर्चे बांटे थे, जिसमें इसे कट्टर मुस्लिम और वामपंथी छात्रों की साजिश बताया गया था।

घटनाक्रम के अनुसार उस दिन वंचित वर्ग के छात्र यह कहते हुए 'गोमांस उत्सव' मना रहे थे कि गोमांस पकाना और खुले में गोमांस परोसना उनकी पहचान और अधिकार है। 'उत्सव' के आयोजकों का कहना था कि यह शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के खाने-पीने पर 'ब्राह्मणवादी संस्कृति' थोपने के विरोधस्वरूप आयोजित किया गया था। उनके अनुसार, गोमांस देश भर के तमाम छात्रावासों में छात्रों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इस सबमें कई वंचित वर्ग के शिक्षक और कांची ऐलायया जैसे वंचित वर्ग के बुद्धिजीवी शामिल थे।

राजनीतिक षड्यंत्र

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने इस 'उत्सव' का कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि यह कृत्य भारतीय संस्कृति के खिलाफ और हिन्दुओं द्वारा माता के रूप में पूजी जाने वाली गाय का अपमान है। यह घटिया राजनीतिक चाल है। इससे बड़ी संख्या में छात्रों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। वर्ग विशेष और जाति के नाम पर इस तरह का दुष्प्रचार करके उन्हें बांटना घोर निंदनीय है।

उस दिन शाम साढ़े छह बजे के आसपास बेहद तनाव पैदा हो गया जब बड़ी संख्या में छात्र अम्बेडकर छात्रावास पहुंचे, जहां 'दलित छात्र संघ' ने 'उत्सव' के लिए व्यापक व्यवस्था की थी। विश्वविद्यालय के कई शिक्षक, गैर शिक्षक कर्मचारी और वामपंथी वंचित वर्ग के छात्रों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए वहां मौजूद थे। विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्त्ता शांतिपूर्वक छात्रावास के सामने विरोध कर रहे थे कि अचानक पत्थरबाजी शुरू हो गई, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। लाठी चार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया जिसमें कई लोग घायल हो गए। छल से किए गए हमले से साफ है कि मुस्लिम, वंचित वर्ग और ईसाई छात्रों का गठजोड़ विश्वविद्यालय के छात्रों को पंथ और जाति के नाम पर बांट रहा है। उनका इरादा छात्रों को उकसाना, हिन्दुओं की पूज्य गाय का अपमान करके उत्तेजना पैदा करना और अशांति फैलाना था। मुम्बई की प्रसिद्ध लेखिका फरजाना वेर्से ने सामाजिक वेबसाइट ट्विटर पर लिखा कि 'यह पूरा घटनाक्रम दोहरे मापदंड की ओर इशारा करता है। 'बीफ फेस्टिवल' के नाम पर राजनीति की जा रही है।' सेकुलर इतिहासकार इरफान हबीब ने इस 'फेस्टिवल' के संदर्भ में ट्विटर पर अपनी टिप्पणी में कहा कि 'इसमें उत्सव जैसा क्या है? इसकी भरपूर निंदा होनी चाहिए।'

दुष्प्रचार का सहारा

इस 'उत्सव' में सक्रिय अधिकांश छात्रों ने इस आयोजन के बाद स्वीकार किया कि वे अपने घरों में गोमांस नहीं खाते। हैदराबाद से प्रकाशित अखबारों के विश्लेषणों से पता चलता है कि यह साजिश विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से जुड़ी थी। अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के संदर्भ में वंचित वर्ग के नेताओं का मानना है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता चन्द्रशेखर राव सिर्फ ऊंची जाति के लोगों को साथ लेकर चल रहे हैं। 'उत्सव' के बहाने 'दलित एकता' के माध्यम से राजनीतिक फायदा उठाना उनका मूल उद्देश्य हो सकता है। दूसरे, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा भ्रष्टाचार और अलग तेलंगाना राज्य की मांग पर चलाया जा रहा आंदोलन वामपंथी दलों के आंदोलन से ज्यादा प्रभावशाली बन चुका है। ईसाई मिशनरियों और वंचित वर्ग के तथाकथित बुद्धिजीवियों की इस साजिश ने आमतौर पर शांतिपूर्ण रहने वाले एक छात्रावास में बेहद अशांति फैलाई है। हिन्दू आस्था पर चोट करने वाले अभियान के बहाने जो मर्जी खाने के अपने अधिकार की मांग पर छात्रों को भेड़-बकरियों की तरह जुटाया गया जबकि यह पूरी तरह राजनीतिक साजिश है। तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी तो पहले से ही दुष्प्रचार करते आ रहे हैं कि 'वेदों के अनुसार हिन्दू ऋषि-मुनि मांसभक्षण करते थे। हिन्दुओं को इस पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।'

अगले दिन यानी 16 अप्रैल को अभाविप ने परिसर में बंद आयोजित किया। परिषद के एक प्रतिनिधिमंडल ने विश्वविद्यालय के कुलपति श्री सत्यनारायण को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की कि परिसर के अपने ही समाज के अंग वंचित वर्ग के छात्रों का हिंसा में हाथ नहीं था बल्कि बाहर से आए अपराधी तत्वों ने हिंसा फैलाई थी। इनको शीघ्र पकड़ा जाना चाहिए और पुलिस द्वारा अभाविप कार्यकर्ताओं पर ही लगाए गए तमाम अभियोग वापस लिए जाने चाहिए। क्योंकि अभाविप का हिंसा से दूर तक का भी नाता नहीं है। परिषद ने मांग की कि परिसर की शांति भंग करने की साजिश रची गई है। कुछ शिक्षकों या अन्य गैर शिक्षक कर्मचारियों ने 'उत्सव' में भाग लेकर जो हानि पहुंचाई है, उसकी पूरी जांच की जानी चाहिए। परिषद के अनुसार, वंचित वर्ग के छात्रों से 'उत्सव' के नाम पर जबरन चंदा वसूला गया था। दुखद बात यह है कि तेलंगाना राज्य गठन की मांग पर हुए आंदोलनों में बड़ी संख्या में परिसर के छात्रों ने अपनी आहुति दी है। बजाय संवेदना व्यक्त करने के, ऐसे अपमानजनक 'उत्सव' मनाने वाले जश्न मनाते हैं! यह शहीद विद्यार्थियों का घोर अपमान है।

उल्लेखनीय है कि अंग्रेज दो मुद्दों के साथ इस देश में दाखिल हुए थे- (1) इस देश की समृद्धि लूटकर अपने देश के लिए प्राकृतिक संसाधन जुटाना, और (2) हमारी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पांथिक सद्भावना को ध्वस्त करने के लिए ईसाई और यूरोपीय संस्कृति का प्रसार करना। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्होंने गोहत्या और गोमांस खाने को प्रमुख हथियार की तरह इस्तेमाल किया। हैदराबाद में ठीक वही दूषित भावना फैलाने की साजिश रची जा रही है। इसे पहचानकर इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।

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