बाल मन
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बाल मन
बाल कहानी
आशीष शुक्ला
उस दिन एक अप्रैल था। मोहित के मन में हलचल मची हुई थी। वह जल्दी-जल्दी तैयार होकर स्कूल के लिए निकला। रास्ते में उसका सहपाठी राजू मिल गया। दोनों साथ-साथ स्कूल की ओर जाने लगे। कुछ दूर चलने पर मोहित बोला, “राजू आज एक अप्रैल है यानी मेरा प्रिय दिन। मेरी ओर से पार्टी। बताओ, क्या खाओगे?”
“बर्गर!” राजू ने खुश होते हुए कहा।
मोहित और राजू एक दुकान में गए और मोहित ने दुकानदार से एक बर्गर देने को कहा। बर्गर आते ही राजू जल्दी-जल्दी बर्गर खा गया। जब पैसे देने के लिए मोहित ने जेब में हाथ डाला तो चौंक कर बोला, “अरे राजू, पर्स तो मैं घर पर भूल आया।”
अब तो राजू एक बार मोहित का चेहरा देखता और एक बार दुकानदार का। उसने धीरे से अपनी जेब से पैसे निकाल कर दुकानदार को दे दिए। फिर दोनों आगे बढ़ गए। राजू सिर झुकाकर चल रहा था, मानो किसी सोच में डूबा हो। फिर वह मोहित की ओर देखकर बोला, “कल तुम मुझे बर्गर के पैसे दे दोगे न?”
अब तक स्कूल आ गया था। मोहित चलते-चलते रुक गया। फिर राजू की ओर देखकर धीरे से हंसा और तेजी से दौड़ते हुए चिल्लाया “अप्रैल फूल।”
स्कूल में कक्षाएं लग चुकी थीं। हिन्दी की शिक्षिका शीला हिन्दी पढ़ा रही थीं। लेकिन मोहित का मन तो पढ़ाई में लग ही नहीं रहा था। वह तो किसी को अप्रैल फूल बनाने का तरीका सोच रहा था। हिन्दी की कक्षा खत्म होने के बाद खेल-कूद की बारी थी। सब लोग खेल मैदान की ओर जाने लगे। लेकिन मोहित उठकर रोहन के पास आया और उससे पूछा, “रोहन तुम मैदान नहीं गए?”
रोहन मासूमियत से बोला “मेरा मन नहीं लग रहा स्कूल में। मुझे क्या करना चाहिए मोहित?” “मेरे पास बहुत अच्छा एक विचार है।” “जल्दी बताओ मोहित।”
“रोहन तुम मैदान जाओ और वहां जमीन पर आंख बन्द करके लेट जाओ। मानो तुम बेहोश हो गए हो। कोई हिलाए तो भी मत उठना। जब तुम्हें पानी के छींटे मारे जाएं तब जगना। देखना, तुम्हें छुट्टी दे दी जाएगी।”
रोहन, मोहित को धन्यवाद देते हुए मैदान चला गया। मोहित के मन में शरारत जाग उठी थी। वह भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। मोहित के कहे अनुसार रोहन मैदान में लेटकर बेहोश होने का नाटक करने लगा। सभी लोग उसे घेर कर खड़े हो गए। शिक्षक जगाने के लिए उसे हिलाने लगे। लेकिन वह उठा नहीं। सभी लोग घबरा गए। तब मोहित ने अपना जूता उतारा और रोहन की नाक के आगे लगा दिया। रोहन ने तुरन्त नाक सिकोड़ी। जूते से तेज बदबू आ रही थी। रोहन ने थोड़ी-सी आंख खोलकर मोहित को ऐसा करते देखा तो उसे जोर से हंसी आ गई। वह खिलखिलाकर हंस पड़ा। अब तो उसकी शामत आ गई। उसे शिक्षकों से बहुत डांट पड़ी। वह बेचारा दुखी हो गया। जब वह कक्षा में आया तो उसने मोहित से पूछा, “क्यों किया तुमने ऐसा?”
मोहित धीरे से मुस्कराया और बोला, “अप्रैल फूल।” रोहन सिर झुकाकर रोने लगा।
भोजनावकाश के बाद मोहित टहलता हुआ स्कूल के बगीचे में पहुंच गया। रामू काका तन्मयता से पेड़ों को पानी दे रहे थे। वह स्कूल में माली थे। उन्हें देखकर ठिठोली फिर मोहित के मन में हिलोरें लेने लगीं। वह गंभीर स्वर बनाकर रामू काका से बोला, “काका आप यहां पेड़ों को पानी दे रहे हैं और उधर आपके घर में चोरी हो रही है।”
“क्या? चोरी!”
वह घर में अकेले ही रहते थे। उनका इस दुनिया में कोई नहीं था। मोहित की बात को सच मानकर वह घबरा गए। उन्होंने आव देखा न ताव और घर की ओर भागे। मोहित उन्हें भागते देख लोट-पोट हो गया।
स्कूल की छुट्टी के बाद मोहित घर की ओर चल पड़ा। आज तो वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। रास्ते में रामू काका का घर पड़ा, वहां भीड़ लगी हुई थी। उसने लोगों से पूछताछ की तो पता लगा कि रामू काका एक दुर्घटना में घायल हो गए हैं। लोगों ने उसे बताया कि किसी ने उन्हें उनके घर में चोरी की झूठी खबर दे दी। वह दौड़कर घर जा रहे थे। इसी जल्दी में वह एक गाड़ी से टकरा गए। उन्हें काफी चोट आई है। यह सुनकर मोहित को धक्का लगा। वह भारी कदमों से घर आ गया। उसने खाना भी नहीं खाया। वह रामू काका के पास जाना चाहता था, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। वह बार-बार खुद को कोस रहा था। किसी तरह वह साहस करके रामू काका के घर पहुंचा। तब तक सभी लोग वहां से जा चुके थे।
अब मोहित, रामू काका के सामने खड़ा था। रामू काका के सिर पर बंधी पट्टी देखकर उसके सारे शरीर में सिहरन हो उठी। उसने सिर झुका लिया। मोहित को देखकर रामू काका गंभीर हो गए। फिर धीरे से बोले, “क्यों ऐसा मजाक किया तुमने मोहित?”
मोहित सिर झुकाए खड़ा रहा। शर्म के मारे वह कुछ बोल नहीं पाया। रामू काका ने आगे कहा, “बेटा हंसी-ठिठोली जीवन में रंग और रस भरते हैं। लेकिन तभी जब इनमें शालीनता हो। हमें मजाक करने से पहले यह सोच लेना चाहिए कि वह मजाक किसी के लिए नुकसानदायक न हो या किसी के सम्मान पर चोट न करे। तुम्हारी जरा सी नासमझी ने मुझे कितनी मुसीबत में डाल दिया।”
मोहित फफककर रो पड़ा। उसके मुंह से माफी के बोल अटक-अटक कर निकल रहे थे।द
भगवान करेंगे इनका भी लेखा-जोखा
सूरज, चांद और धरती में बात छिड़ी
धरती ने कहा-अच्छा हुआ रात टली,
चांद बोला- आपको क्यों है रात खली?
धरती बोली
चांद जी, आपका आना
गुनाहों की शुरुआत का पैगाम है
जिसको करने के लिए धरती पर
थोड़ी लगाम है
आज कल तो ट्रैफिक से धरती पर
रात में भी जाम है
यदि दिन और रात दोनों में यही हाल है तो
रात का क्या काम है?
सूरज बोला- अरे भई मेरी भी तो कोई सुनो
तारों को छोड़ो मेरी किरणों से खुशियों को चुनो
धरती बोली खुशियों को चुनें कैसे
इनसान ही इंसान से लड़ता है ऐसे
जैसे लड़ते हैं भैंसे
चांद बोला मगर रात में तो हर कोई सोता है
सूरज बोला मगर गरीब
हर मौसम की रात में रोता है
और सुबह उठकर
भूखे पेट धरती में बीज बोता है
धरती बोली-
इंसानों ने खूब अत्याचार किया
और उसके बाद भी
मेरी नदियों से ही पानी पिया
अपना ईमान-धर्म बेचकर कोई कैसे जिए
खूब उपकार अब तक इंसानों ने मुझसे लिए
सूरज बोला-
भ्रष्ट भी तो होता जा रहा है इंसान
मगर भगवान करेंगे इनका भी लेखा-जोखा
तब मेरी किरणें निकलेंगी
पहनकर सोने से जड़ा चोला
तब एक नए स्वर्ग का
धरती पर आगाज होगा।
द अरुन्धती सिंह चंदेल
कक्षा-10, क्वींस कॉलेज, इंदौर
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