भारतीय हैं हम सभी
दिंनाक: 21 Jan 2012 13:38:01 |
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डा.दयाकृष्ण विजयवर्गीय 'विजय'
पृथक–पृथक जब हो गये भारत पाकिस्तान,
गंगा जमुनी कब रही भारत की पहचान।
भारतीय हैं हम सभी किये यहां अधिवास
सबके अपने हो गये परंपरा इतिहास।
सबमें होना चाहिए अनन्य भारत प्रेम,
श्वास श्वास सोचे सदा भारत का ही क्षेम।
हो न किसी के पंथ का राष्ट्र भाव से द्रोह,
भू जन संस्कृति का रहे हृदय–हृदय में मोह।
भारतीय कहते जगे सबके भीतर गर्व,
जियें संकुचितता किये मन की सारी खर्व।
जिया शांति सद्भाव ही अब तक भारत देश,
लोकतंत्र ही प्रिय रहा, नहीं मजहबी वेश।
सत्य अहिंसा के रहे सदा गूंजते घोष,
और धनों को धूरि कह माने धन संतोष।
भाव लिए विस्तार का करी न सीमा पार,
सारी वसुधा को किया कह कुटुम्ब ही प्यार।
कंठ कंठ गाता यहां सबके सुख के गीत,
भारत के अध्यात्म की यही सनातन रीत।
हो आक्रांत न धर्म से देशभक्ति का भाव,
शांति कूल छू पाएगी तभी एकता नाव।
बांटा सबको ज्ञान ही भेदभाव को त्याग,
मानव के उत्कर्ष से रहा सदा अनुराग।
सदा वत्सला मातृ भू सबके लिए प्रणम्य,
सभी सम्प्रदायों सहित जन जन की अधिनम्य
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