पूर्वोत्तर भारत में तेजी से फैलता लाल आतंकअब हथियारों के तस्कर बने अलगाववादी
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पूर्वोत्तर भारत में तेजी से फैलता लाल आतंक
जगदम्बा मल्ल
नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैण्ड (आइजक-मुइवा गुट) के सचिव थुइंगालेंग मुइवा के धार्मिक आचरण में बड़ा विरोधाभास है। वह घोषित बैप्टिस्ट ईसाई है किन्तु आचरण में चीनी कम्युनिस्ट है, माओवादी है। ईसाई होने का ढोंग करके वह अमरीका, ब्रिटेन सहित ईसाई देशों का समर्थन जुटाता है और कम्युनिस्ट होने का दावा करके वह चीन का समर्थन लेता है। ऐसा नहीं है कि ईसाई देशों अथवा कम्युनिस्ट चीन को मुइवा के इस ढोंग का पता न हो। फिर भी दोनों की मजबूरी है कि वे आतंकवादियों के इस सरगना की मदद करते रहें, ताकि मुइवा किसी एक की गोद में न बैठ जाए और भारत में उनके गैरकानूनी हित साधता रहे।
एंथोनी सिमराय मणिपुर के उखुरूल जिले का तांग्खुल नागा है, जो मुइवा का चचेरा भाई है और एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) का विदेश सचिव भी है। यह बैप्टिस्ट ईसाई होते हुए भी घोर माओवादी है। चीन से हथियारों के लेन- देन में इसकी प्रमुख भूमिका रहती है। वस्तुत: एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के संविधान में लिखा हुआ है कि वह चीनी साम्यवाद के सिद्धान्तों पर स्थापित हुआ एक संगठन है। जब ईसाई देशों में इसकी छीछालेदर होने लगी तो उसने अपने संविधान में बैप्टिस्ट ईसाई मत को एकमात्र घोष्ाित “धर्म” जुड़वाया, अपने लैटरहेड पर “नागालैण्ड फार क्राइस्ट” लिखवाया तथा ईसाई देशों को संभालने का दायित्व अपने कठपुतली व कमजोर अध्यक्ष आइजक चिसी स्वू, जो सेमा नागा है, को दिया। इसीलिए आइजक ने अमरीका के बोरीवली पहाड़ी पर आयोजित एक कार्यक्रम को वषर््ा 2006 में संबोधित करते हुए 10,000 नागा ईसाई मिशनरियां तैयार करने की एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) की योजना का खुलासा किया। इस समय एंथोनी सिमराय जेल में है। मुइवा दिल्ली का चक्कर काट रहा है और आइजक चिसी स्वू अपने बुढ़ापे की बीमारी झेल रहा है। वह अपनी याददास्त खो बैठा है।
चीन के संगी-साथी
यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट मणिपुर का एक प्रभावी आतंकवादी संगठन है और इसका प्रमुख राजकुमार मेघेन इस समय जेल की हवा खा रहा है। मेघेन दूसरा बड़ा आतंकवादी है जिसका चीन की सेना व हथियारों के दलालों से निकट संबंध बताया जाता है। चीनी सेना का नाम है पीपुल्स लिबरेशन आर्मी। इसी नाम से मणिपुर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) नामक संगठन काम कर रहा है। एन. विश्वेश्वर सिंह इसका प्रमुख नेता था, जिसकी उसके ही साथियों ने गोली मारकर हत्या कर दी, क्योंकि वह आत्मसमर्पण कर मणिपुर विधानसभा का सदस्य बन गया था। पीएलए इस समय चीनी अधिकारियों से निकट संबंध बनाये हुए है। जैसे-जैसे इन पर भारतीय सेना की मार पड़ती है वैसे-वैसे मानव अधिकार के हनन की दुहाई देते हुए ये हल्ला मचा देते हैं। कुछ कथित मानवाधिकारवादी चानू इरोम शर्मिला के रूप में काम करने वालों के माध्यम से सेना को बदनाम करने की मुहिम चलाते हैं, ताकि इनकी जान बच सके।
असम में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रण्ट आफ असम (उल्फा) प्रमुख आतंकवादी संगठन है, जिसके कथित तौर पर 80 प्रतिशत आतंकवादी उल्फा के अध्यक्ष अरविन्द राजखोवा के साथ शस्त्र सहित आत्मसमर्पण कर केन्द्र सरकार के साथ समझौता वार्ता कर रहे हैं और भारतीय संविधान के तहत असम के लिए राजनीतिक व अधिकांशत: आर्थिक मांग कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे भारत के अन्दर ही रहना चाहते है। उन्होंने उल्फा के स्वयंभू सेना प्रमुख परेश बरुआ, जो इस समय चीन के यूआन प्रांत में चीनी सेना के संरक्षण में पल रहा है, से भी अपील की है कि वह भी भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर असम के समन्वित विकास के लिए कार्य करे।
किन्तु परेश बरुआ अभी सुन नहीं रहा है। उसे पकड़ने के लिए भारत सरकार ने इन्टरपोल (अन्तरराष्ट्रीय पुलिस) की मदद से रेड कार्नर (वारंट आफ अरेस्ट) नोटिस जारी कर दिया है। यह परेश बरुआ 3 विभिन्न मुस्लिम नामों से पांचतारा होटल चलाता है, सैकड़ों करोड़ रुपए का अवैध धन्धा करता है। बंगलादेश ने जब इसे गिरफ्तार करना चाहा तो वह चीन भाग गया और वहीं से पूर्वोत्तर भारत के लगभग 40 छोटे-बड़े आतंकवादी संगठनों को अवैध हथियारों की आपूर्ति करता है और बदले में करोड़ों रुपये कमाता है।
पूर्वोत्तर के उल्फा, एन.एस.सी.एन (आईएम) आदि आतंकवादी संगठन इन दिनों काफी कमजोर हो चुके हैं। शेष्ा आतंकवादी संगठनों की भी हालत खस्ता हो चुकी है। इसका पूरा-पूरा श्रेय सेना व सुरक्षा बलों को जाता है । केन्द्र सरकार एवं संबंधित राज्य सरकारें मिलीभगत करके इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहती हैं और आतंकवाद के नाम पर धन की लूट करते रहना चाहती हैं, इसलिए वे सेना व सुरक्षा बलों को एक सीमा से आगे नहीं बढ़ने देतीं, ताकि आतंकवाद जीवित बना रहे और इन स्वार्थी राजनेताओं की चांदी होती रहे। वरना सेना इनको कभी का पूरी तरह खत्म कर चुकी होती।
भारत-भक्त हैं ये लोग
नागा व मीजो सहित सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत की सभी जनजातियां मौलिक रूप से भारत-भक्त हैं। सांस्कृतिक, धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से वे भारत की सार्वभौम सांस्कृतिक विरासत से गहरी जुड़ी हुई हैं। जहां-जहां लोग ईसाई बन गये हैं वहां-वहां अलगाववादी-आतंकवादी संगठन खड़े हो गये हैं। जहां-जहां मुसलमानों की आबादी बढ़ गयी है वहां इस्लामी आतंकवादी संगठन सक्रिय हो गये हैं। साथ ही यह भी सच है कि दिल्ली ने समग्र पूर्वोत्तर भारत की उपेक्षा की है, उनके साथ अन्याय किया है एवं सौतेला व्यवहार किया है। जब तक यहां के लोग जागरूक नहीं हुए थे तब तक तो वे दिल्ली की भूल-भुलैया में उलझे रहे। जब वे उत्तर पूर्व क्षेत्र से बाहर आये और शेष्ा भारत के विकास को देखा तो उनकी आंखें खुलीं। उन्होंने यह भी देखा कि उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन कर बाहर ले जाया जा रहा है तो यहां के युवकों में असंतोष्ा पैदा हो गया। इसी असंतोष्ा में से आसू (आल असम स्टूडेण्ट्स यूनियन) आन्दोलन 1978 में खड़ा हो गया, जिसने समग्र पूर्वोत्तर भारत को झकझोर कर रख दिया। भारत के शत्रुओं को ऐसे अवसर की तलाश थी और सन् 1980 के बाद मार-काट शुरू हो गई। नागालैण्ड, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा और असम में एक साथ मार-काट मच गयी। इन सब जगहों से अन्य प्रांतों के लोगों को भागने के लिए मजबूर किया गया। सैकड़ों लोग मारे गये। अरूणाचल फिर भी शांत रहा क्योंकि वहां न तो चर्च था, न चीन था और न ही मुसलमान थे। वे सब कट्टर देशभक्त हिन्दू थे।
माआवोदियों का षड्यंत्र
पूर्वोत्तर भारत के युवकों में बेकारी, अशिक्षा, गरीबी व असंतोष्ा के कारण केन्द्र सरकार के खिलाफ घोर नाराजगी है। शांतिपूर्ण आन्दोलनों के माध्यम से जब केन्द्र सरकार उनकी बात अनसुनी कर देती है तो वे “दिल्ली विरोधी” हो जाते हैं। चर्च व मदरसा प्रायोजित आतंकवादी संगठन तो इस अवसर की ताक में पहले से ही यहां बैठे हुए हैं। वे उन युवकों के हाथ में बन्दूक थमा देते हैं और भारतीय सेना की ओर इशारा कर देते हैं।
इस समय पूर्वोत्तर भारत में सभी छोटे-बड़े आतंकवादी संगठनों की जड़ें हिल रही हैं किन्तु सामान्य युवकों का असंतोष्ा जस का तस बना हुआ है। उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। सभी राज्यों में भ्रष्टाचार ऐसे समय में माओवादियों को एक सुनहरा अवसर दिखाई दे रहा है और वे यहां के युवकों को माओवाद की ओर आकर्षित कर रहे हैं। माओवादियों का यह गोपनीय कार्य गत कई वषर््ाो से चल रहा था और उनके लोग स्थानीय तरुणों से संपर्क बनाये हुए थे। किन्तु केन्द्र सरकार, सुरक्षा एजेन्सियों तथा गुप्तचर एजेन्सियों की तंद्रा तब टूटी जब आन्ध्र प्रदेश के कुख्यात माओवादी कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने नवम्बर-दिसम्बर में असम का दौरा किया और यहां की सरकारों की आंख में धूल झोंक गया। उसके बाद जब उसने बंगाल में प्रवेश किया तो वहां की कोबरा बटालियन ने उसे मार गिराया। गुप्तचर एजेन्सियों के अनुसार 16 नवम्बर को कामतापुर लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (के.एल.ओ.) के मुखिया जीवन सिंह के साथ मिलकर किशनजी ने लाल गलियारे को धुबड़ी होते हुए बंगलादेश की सीमा तक ले जाने का खाका तैयार किया था। परेश बरुआ गुट के उल्फाइयों से भी इस बीच संपर्क बढ़ाये जा रहे थे। मणिपुर के उग्रवादी संगठन पी.एल.ए. के कुछ नेताओं से भी किशनजी का संपर्क हुआ था। अगले 2-3 दिन के अन्दर वह इन गुटों के सहयोग से बंगलादेश में सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचना चाहता था, किन्तु बीच में ही मारा गया। खबरों के मुताबिक माओवादी असम के कुछ संवेदनशील इलाकों मे अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं। बड़े बांध का विरोध जैसे अति संवेदनशील आन्दोलनों में माओवादी तथा हूजी के गुर्गे रूप बदलकर शामिल हो चुके हैं।
हथियारों की तस्करी ही धंधा
ऐसी जानकारी मिल रही है कि ऊपरी असम के तिनसुकिया जिले में माओवादियों ने अपनी पैठ बना ली है। उन्होंने असम-अरुणाचल सीमा से सटे सदिया को अपना गढ़ बनाते हुए अंबिकापुर, राजगढ़, हौलोगांव, पोंगरी सहित कई भीतरी अंचलों में अपना दबदबा बना लिया है। बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों में 300 से अधिक माओवादी अरुणाचल के रास्ते असम में प्रवेश कर चुके हैं। इसमें 100 से अधिक प्रशिक्षित संवर्ग के हैं। इनके पास भारी मात्रा में लैंडमाइंस, आईईडी व विस्फोटक पदार्थ मौजूद हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि माओवादी सुरक्षा बलों पर बड़े हमले करने की ताक में हैं और इनको कुछ गैर-सरकारी संगठनों का समर्थन भी मिल रहा है। इन संगठनों को पहचानने की आवश्यकता है। पिछले 3-4 महीनों में माओवादियों ने ऊपरी असम में सुरक्षा बलों से हथियार छीनने की वारदातों को अंजाम दिया तथा एकाध घटना में उन्होंने इंडियन रिजर्व बटालियन के जवानों पर हमला करके दो जवानों को घायल कर दिया था। इसी दौरान कई माओवादी गिरफ्तार हुए हैं।
अंटोनी शिमराय की गिरफ्तारी के बाद परेश बरुआ ही ऐसा अकेला व्यक्ति रह गया है जिसकी पहुंच दक्षिण पूर्व एशिया के उन सभी अवैध बाजारों तक है जहां खुलेआम अस्त्र-शस्त्र बिकते हैं। परेश बरुआ म्यांमार की यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी (यू.डब्ल्यू.एस.ए.) और कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (के.आई.ए.) से भी हथियार प्राप्त करता है। इसके अलावा उसकी पहुंच उन हथियारों तक भी है जो चीनी सेना ने अपने आधुनिकीकरण के दौरान बाहर कर दिए हैं। इस तरह परेश बरुआ इस क्षेत्र में अवैध शस्त्रों का सबसे बड़ा व्यापारी बन गया है और इस व्यापार में होने वाले लाभ से वह असम में अपना आतंकी संगठन चला रहा है। इसने पिछले एक वषर््ा के अन्दर अपने संगठन की ताकत दोगुनी कर ली है और तिनसुकिया, डिब्रूगढ़ तथा ऊपरी असम में धन उगाही कर मजबूत होने में जुटा है। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि वह माओवादियों के साथ मिलकर प्रहार करने की योजना बना रहा है।द
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