मुश्किल में माया
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उत्तर प्रदेश
लखनऊ से शशि सिंह
उत्तर प्रदेश में करीब पांच साल से राज कर रहीं मुख्यमंत्री मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी अब एक बार फिर जनता के बीच में हैं। पांच साल पहले जनता से उन्होंने क्या कहा था और क्या किया, इस सबका हिसाब देना मुश्किल हो रहा है।
अपराधियों पर अंकुश लगाने का वादा तो हवाई साबित हुआ, भ्रष्टाचार पर भी मायावती का भाषण भोथरा हो गया। आमजन को राहत की बात कहीं दिखी नहीं, अगर दिखा तो केवल माया का मूर्ति-प्रेम। यह मूर्ति-प्रेम सत्ता के चौथे कार्यकाल में सिर चढ़कर बोला और देखते ही देखते कम से कम तीन बड़े जिले “बहुजन समाज” के नाम पर प्रतिमाओं से पहचाने जाने लगे। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और राजधानी लखनऊ में पार्कों, स्मृति स्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर “बहुजन समाज के स्वाभिमान” के नाम पर अब तक कुल चार हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर डाले गए।
भ्रष्टाचार व गुंडागर्दी पड़ेगी भारी
मायावती का सबसे खराब रिकार्ड कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर रहा। महिलाओं, युवतियों, किशोरियों, यहां तक कि मासूम बच्चियों की अस्मिता से खिलवाड़ किया गया। एक दर्जन मंत्री या मंत्री पद का दर्जा पाए बसपा नेताओं के प्रेम-प्रसंग सामने आये। सात मंत्रियों का नाम भ्रष्टाचार में उछला। जन दबाव, लोकायुक्त और विभिन्न न्यायालयों के आदेशों के चलते अब तक 19 मंत्रियों को कुर्सी छोड़नी पड़ी है। आनंद सेन, अमरमणि त्रिपाठी और शेखर तिवारी को हत्या के आरोपों में उम्रकैद की सजा हो चुकी है। आजादी के बाद प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब इतने मंत्रियों को विभिन्न आरोपों में कुर्सी छोड़नी पड़ी है।
मुलायम को पीछे छोड़ा
“चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर” का नारा देने वाली मायावती गुडों को संरक्षण देने में मुलायम सिंह यादव से भी आगे निकल गईं। जिला पंचायत और स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र से होने वाले चुनावों में गुंडागर्दी खुलकर सामने आई। नतीजतन 50 से अधिक जिला पंचायतों पर बसपा समर्थक काबिज हो गए। स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र से चुने जाने वाले विधान परिषद के चुनावों में रायबरेली में कांग्रेस तथा प्रतापगढ़ में सपा को जीत मिली। बाकी 52 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। इसमें कैसे-कैसे लोग चुने गए, जरा गौर करिए- माफिया ब्रजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह उसी चुनाव में विधान परिषद की सदस्य बनीं। अमरमणि त्रिपाठी, आनंदसेन, गुड्डू शर्मा, सुनील सिंह, जितेंद्र सिंह बबलू, शिव प्रसाद यादव, उमाकांत यादव, शेखर तिवारी, रवि शंकर सिंह पप्पू, अरविंद त्रिपाठी, संजीव द्विवेदी, सूरजभान, डीपी यादव आदि ऐसे नाम हैं जो जनता में सिहरन पैदा करते हैं। इनमें हालांकि अमरमणि, आनंदसेन, गुड्डू शर्मा सपा का दामन थाम चुके हैं। जितेंद्र सिंह बबलू पीस पार्टी में शामिल हो गए और डीपी यादव ने राष्ट्रीय परिवर्तन पार्टी को पुनर्जीवित कर लिया। सबसे मालदार विधायक, जहां तक घोटालों की बात है, तो खुद मायावती ही हैं, जिन पर समय-समय पर अंगुलियां उठती रही हैं, उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। “ताज कॉरिडोर” घोटाले का अभी फैसला नहीं आया है। इसमें मायावती की संलिप्तता मानी जा रही है। “नेशनल इलेक्शन वॉच संस्था” ने हाल ही में धनी विधायकों की सूची जारी की है, उसमें मायावती को सबसे ज्यादा मालदार बताया गया है। मायावती की चल संपत्ति 52 करोड़ 57 लाख तथा अचल संपत्ति 74 करोड़ 69 लाख रुपये बताई गयी है। कुल 87 करोड़ रु. की संपत्ति प्रामाणिक दस्तावेजों के आधार पर बताई गई है। यह मायावती की घोषित संपत्ति है। अघोषित संपत्ति कितनी है, कहा नहीं जा सकता है। मायावती की ही कैबिनेट के मंत्री नंद गोपाल नंदी की संपत्ति 15 करोड़ रु. बताई गई।
चुनाव आयोग ने इसीलिए चुनाव की घोषणा के बाद जब कड़ाई की तो मायावती तिलमिला उठीं। अब मायावती तथा चुनाव आयोग आमने-सामने हैं। आयोग ने हाल ही में आदेश जारी कर कहा कि लखनऊ और नोएडा में बने विभिन्न पार्कों, स्मृति स्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर पार्टी की विचारधारा के प्रचार के लिए स्थापित की गईं हाथी (हाथी बसपा का चुनाव चिन्ह है) और खुद मायावती की प्रतिमाओं को ढंक दिया जाए ताकि उनका चुनावी लाभ न लिया जा सके। आयोग को लगता था कि इनसे बसपा का प्रचार होगा। इसलिए उसने उन्हें ढंकवाने का फैसला किया। उसके आदेश पर 11 जनवरी तक इन पर पर्दा डाल भी दिया गया। तिलमिलाई बसपा ने चुनाव आयोग पर उसके साथ भेदभाव का आरोप जड़ दिया। जबकि अनेक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने उक्त निर्णय की सराहना की और विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इसे सही कदम ठहराया। उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी प्रतिमाएं ढंकने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दर्ज याचिका खारिज कर दी।
मायावती के मूर्ति प्रेम ने सामान्य भारतीय परंपरा को भी नकार दिया। परंपरा के अनुसार जीवित रहते कोई अपनी प्रतिमा स्थापित नहीं करवाता। लेकिन मायावती ने इसके उलट ही किया। सार्वजनिक स्थलों पर मायावती ने पार्टी के चुनाव चिन्ह-हाथी-की मूर्तियां भी बहुतायत में लगवाईं। इन स्थानों पर वंचित वर्ग से आने वाले महापुरुषों समेत डा. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमाएं भी लगवाई गईं, उन पर फिलहाल आयोग को कोई आपत्ति नहीं है। उसको केवल मायावती और हाथी की प्रतिमाओं पर आपत्ति है। राजधानी लखनऊ में मायावती की नौ मूर्तियां (सात कांस्य, दो संगमरमर) मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, डाक्टर अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, कांशीराम बहुजन नायक पार्क और कांशीराम सांस्कृतिक स्थल पर लगाई गई हैं। लखनऊ में ही बसपा के चुनाव चिन्ह हाथी की 125 प्रतिमाएं लगाई गई हैं। इन्हें “मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल”, “डाक्टर अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल” तथा जेल रोड पर “कांशीराम ईको ग्रीन पार्क” में लगाया गया है।
नोएडा में प्रतिमा
इसी क्रम में “नोएडा मेमोरियल पार्क” में मायावती की दो तथा हाथी की 52 प्रतिमाएं लगाई गई हैं। ग्रेटर नोएडा के गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय में मायावती की एक प्रतिमा तथा हाथी की 10 मूर्तियां स्थापित की गई हैं। सूरजपुर में हाथी की 10 मूर्तियां लगी हैं। केवल मायावती की प्रतिमाओं पर पांच करोड़ से अधिक रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इससे कहीं अधिक धन हाथी की प्रतिमाओं पर खर्च किया गया है। जिन सार्वजनिक स्थलों पर ये प्रतिमाएं लगाई गई हैं, वे जनता की निगाह में हैं। अब अगर चुनाव आयोग को लगता था कि इनसे बसपा का चुनाव प्रचार होगा तो इसमें अनुचित व अतार्किक क्या था? लेकिन बसपा को लगता है कि आयोग उसके साथ पक्षपात कर रहा है। विरोध के बावजूद अब चुनाव खत्म होने तक ये प्रतिमाएं ढंकी रहेंगी।
बसपा का कुतर्क
आयोग के इस निर्णय को जहां विपक्ष सराह रहा है वहीं बसपा इसे पक्षपातपूर्ण मान रही है। बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र का (कु) तर्क है कि पार्टी के चुनाव चिन्ह में हाथी की सूंड नीचे है जबकि स्मारकों में लगी प्रतिमाओं में हाथी की सूंड ऊपर है। उनका यह भी कहना है कि तब तो सभी मंदिरों पर पर्दे डाल दिए जाएं, कांग्रेस के चुनाव चिन्ह हाथ तथा भाजपा के कमल तथा सपा की साइकिल पर भी रोक लगे। हालांकि सतीश मिश्र के इस बयान से आयोग अविचलित रहा। उसने शासन को प्रतिमाओं को ढंकने का कड़ाई से निर्देश दिया था। बताया गया कि जिस विभाग ने प्रतिमाओं को लगाया है, उसे ही उन्हें ढंकवाना पड़ेगा। इस पर करीब एक करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
नहीं चलेगी मनमानी
आयोग की सख्ती के आगे राज्य सरकार की एक नहीं चली। आयोग निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए कृतसंकल्प है। उसने मायावती सरकार के प्रति निजी तौर पर वफादार अफसरों को भी हटाना शुरू कर दिया है। सबसे पहले मायावती के सर्वाधिक करीबी पुलिस महानिदेशक बृजलाल तथा प्रमुख सचिव (गृह) कुंवर फतेह बहादुर को हटाया गया था। अब, बताते हैं, सीधे चुनाव प्रक्रिया से जुड़े जिलाधिकारी तथा पुलिस अधीक्षकों की बारी है। उनको चिन्हित किया जा रहा है।द
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