पाकिस्तान की झोली में भारत का डीजल और बिजली
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मिर्च–मसाला और शाक भाजी के साथ–साथ
मुजफ्फर हुसैन
भारत सरकार ने हमारे देश की शाक-भाजी और मिर्च-मसाला पाकिस्तान को निर्यात करना प्रारम्भ कर दिया है। भारत की मिर्ची पाकिस्तानियों को बहुत पसंद है इसलिए उसे सूची में सबसे ऊपर रखा गया है। पाकिस्तान में पिछले दो वर्षों से बाढ़ आ रही है। इसलिए जिन क्षेत्रों में हरी सब्जी की खेती की जाती है वह सब चौपट हो गई है। इसलिए बाजार में न तो टमाटर दिखलाई पड़ता है और न फूल गोभी। पाकिस्तानी बड़ी मात्रा में तुरई और भिंडी का सेवन करते हैं वह भी बाजार से नदारद है। विदेशों में इन सब्जियों के भाव भी अधिक हैं और चूंकि वे दूरी से मंगवानी पड़ती हैं इसलिए उसका खर्च भी अधिक आता है। पाकिस्तान में इसलिए वहां महंगाई दिन-दूनी और रात चौगनी बढ़ रही है। चूंकि पाकिस्तानी जनता को खाने के लिए दैनिक वस्तुएं भी नसीब नहीं हो रही है, इसलिए पाक सरकार के पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है कि वह अपनी जरूरत की सब्जियों को भारत से आयात करे। इसलिए अब वाघा सीमा से सब्जियों के भरे ट्रक गुजरते हुए देखे जा सकते हैं। पाक सरकार ने न तो अब तक भारत को 'मोस्ट फेवरेट' देश का दर्जा दिया है और न ही नियमित रूप से भारत के साथ व्यापार करने को तैयार है। लेकिन पाकिस्तान सरकार को भारतीय सब्जियां मिलने लगी हैं, लेकिन इसका बुरा परिणाम यह होगा कि भारत में जिन सब्जियों के दाम आसमान पर हैं, उनमें और भी वृद्धि हो जाएगी। पाकिस्तान हमारी सब्जियां तो खरीदना चाहता है लेकिन अपने पान की आवश्यकता श्रीलंका और बंगलादेश से ही पूरी करता है। एक समय था कि भारतीय पान धड़ल्ले से पाकिस्तान जाता था। क्योंकि मघई, कलकत्ता, बनारसी और मालवी पान के शौकीन आज भी वहां बड़ी मात्रा में हैं। प्याज का तमाशा तो साल भर चलता ही रहता है। भारत से हर साल पाकिस्तान प्याज खरीदता है। लेकिन अपनी आवश्यकता से अधिक मंगवा कर उसे वातानुकूलित भण्डारों में सुरक्षित कर लेता है। जब कभी भारत के प्याज की किल्लत होती है तो फिर भारत से खरीदे प्याज को ही वह उसे दुगुनी-तिगुनी कीमत में बेच कर अच्छी खासी कमाई कर लेता है। पाकिस्तान पर भारत सरकार को बहुत जल्द दया आ जाती है, इसलिए हमारी सरकार घाटा उठाकर भी अपने पड़ोसी देश की सेवा करने में हिचकिचाती नहीं है।
भारत सरकार की 'दरियादिली'
इस सेवा कार्य से भी भारत सरकार का दिल भरा नहीं है, इसलिए अब नई दिल्ली ने यह तय किया है कि हम अपनी बिजली और विदेशी मुद्रा देकर खरीदा हुआ डीजल भी पाकिस्तान को तोहफे के रूप में भेंट कर देंगे। इसके पीछे का तर्क यह है कि हमें अपने पड़ोसी देश से अच्छे सम्बंध रखने हैं तो हमें कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। इसलिए अपनी जनता भूखों मरे और महंगाई से उसकी हालत पिलपिली हो जाए, फिर भी पाकिस्तान को कष्ट नहीं होना चाहिए। भारत सरकार का यह तर्क कितना थोथा है इसकी जितनी आलोचना की जाए कम है। पाकिस्तान पर हमारी सरकार का प्यार फिर से उमड़ा है। इस बार यह चौंका देने वाला समाचार है कि भारत सरकार पाकिस्तान को 500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने जा रही है। यह बिजली अमृतसर के मार्ग से पहले लाहौर पहुंचेगी। मानो यह कम हो इसलिए भारत सरकार ने एक और चौंका देने वाला निर्णय ले कर भारत की जनता को हतप्रभ कर दिया है। उक्त डीजल 200 किलोमीटर की पाइप लाइन डालकर पाकिस्तान को पहुंचाने का निर्णय किया गया है। हमारे यहां ऊर्जा के स्रोत डीजल और पेट्रोल की स्थिति क्या है यह सारी दुनिया जानती है। हमें भारी विदेशी मुद्रा देकर विदेशों से यह सब चीजें खरीदनी पड़ती हैं। डीजल और पेट्रोल के मूल्य में आए दिन वृद्धि होती है। रसोई गैस की हालत किसी से छिपी नहीं है लेकिन हमारी सरकार को अपने नागरिकों की चिंता नहीं है। केवल अपनी दरियादिली दिखलाने के लिए पाकिस्तान के चरणों में सब कुछ धरने के लिए तत्पर है। हमारे खरीदे क्रूड ऑइल से तैयार किया गया डीजल पाकिस्तान को भेजा जाएगा। भारत सरकार का कहना है चूंकि हम इसे अपनी रिफाइनरी में तैयार करेंगे इससे भारत सरकार को आय होगी। लेकिन सवाल आय और खर्च का नहीं बल्कि देश की सुरक्षा का है। यदि यही वस्तु पाकिस्तान भारतीय सीमा पर तैनात की जाने वाली सेना और उसके उपकरणों के लिए खर्च करेगा तो क्या यह हमारे राष्ट्रीय हितों पर कुठाराघात नहीं होगा? भारत को यदि इससे कोई आर्थिक लाभ होता भी है तो क्या यह लाभ हमारे शत्रु के लिए वरदान नहीं होगा? यह तो ऐसा हुआ कि भारत कल से आर्थिक लाभ के लिए अपने हथियार पाकिस्तान को बेचे और वह फिर हमारे विरुद्ध ही इन हथियारों का युद्ध में उपयोग करे तो उस समय भी क्या हम यह तर्क देंगे कि इससे हमारे देश को विदेशी मुद्रा में कमाई होने वाली है। कितनी दु:खद बात है कि जो देश हर दिन भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ करवाता है, जिस पाकिस्तान में भारत के दाऊद जैसे खतरनाक अपराधी छिपे हुए हैं, इसी पाकिस्तान को भारत सरकार अपना वरदान देने जा रही है। पाकिस्तान हर क्षण भारत को बर्बाद करने की योजनाएं बनाता है लेकिन उसी शत्रु के घर में भारत बिजली की रोशनी करके उन्हें इस बात की प्रेरणा देता है कि भारत में अंधेरा रहेगा तो चलेगा लेकिन भारत के दुश्मन के घर में उजाला होना चाहिए ताकि वह हमारे नगर और हमारी जनता को बराबर देख सके कि उन्हें कहां कब और किस-किस ठिकाने पर हमला करना है। भारत अपनी रिफाइनरी का लाभ उठाने के लिए इस प्रकार से डीजल को बेचना ही चाहता है तो वह किसी अन्य पड़ोसी देश को भी दे सकता है। पाकिस्तान की तरह नेपाल और भूटान भी तो निकट हैं। इस मामले में निकटता और दूरी का तथ्य इसलिए स्वीकार नहीं किया जाता है, क्योंकि जब किसी को लेना ही है और हमें देना है तो अनुबंध करते समय इस पर चर्चा हो सकती है।
निर्णय का औचित्य क्या है?
भारत सरकार का एक और चौंका देने वाला निर्णय है कि वह पाकिस्तान के नगर लाहौर को हमारे स्वर्ण मन्दिर वाले पवित्र नगर अमृतसर से 500 मेगावाट बिजली भेजेगा। क्या भारत सरकार यह काम इसलिए कर रही है कि वाघा सीमा पर बैठे पाकिस्तानी हमलावरों को भारतीय भूमि स्पष्ट दिखलाई पड़े और भारत की जनता जिसे वे अपनी गोलियों से भूनना चाहते हैं और हमारे बड़े नगरों पर मुम्बई जैसे हमलों की पुनरावृत्ति करना चाहते हैं, उसमें उनको परेशानी न हो? भारत सरकार ने यह निर्णय क्या किसी के दबाव में लिया? और यदि लिया तो भारत सरकार की ऐसी क्या मजबूरी थी? पाकिस्तान के अखबारों में जो कुछ प्रकाशित हो रहा है उससे स्पष्ट लगता है इस तरह की खिचड़ी पक रही है। लेकिन यह बात इतनी सरल नहीं है। जब तक विदेश और रक्षा मंत्रालय इसके लिए अपनी सहमति प्रदान नहीं कर देते हैं तब इस योजना को लागू नहीं किया जा सकता है। मात्र 500 मेगावाट बिजली ही लाहौर और उसके आस-पास के क्षेत्र को नहीं मिलेगी बल्कि भटिंडा स्थित रिफाइनरी से भारत के पास जो अधिक डीजल है उसे भी नई 200 किलोमीटर लम्बी बनाई जाने वाली पाइप लाइन के द्वारा पाकिस्तान को भेजा जाएगा। भारत सरकार दोनों देशों के बीच अपने रिश्ते सुधारने के लिए इसे पहल मान रही है। भारत सरकार को सोचना है कि हमें पड़ोसी के साथ सम्बंध सुधारने हैं तो कुछ न कुछ त्याग तो करना ही होगा? इसलिए भारत सरकार ने इन मूल्यवान वस्तुओं को भेंट चढ़ाकर एक आतंकवादी देश से यह अपेक्षा पाल रखी है कि वह अपने पड़ोसी देश भारत से अच्छा व्यवहार करे। इस योजना के लिए केवल इतना ही कहा जा सकता है कि भारत सरकार भस्मासुर को आशीर्वाद देने जा रही है।
हमारी सरकार ने इन दोनों दुर्लभ वस्तुओं को देने की तैयारी करते समय पाकिस्तान से यह सवाल क्यों नहीं पूछा कि जब भारत ईरान से गैस की आपूर्ति का अनुबंध कर चुका था और उसे अपने यहां तक लाने के लिए पाइप लाइन बिछाना चाहता था उस समय पाकिस्तान ने पाइप लाइन बिछाने की स्वीकृति क्यों प्रदान नहीं की थी? पाकिस्तान तो भारत के हर काम में अडंगा डालता है लेकिन हमारी सरकार हमेशा उसकी मुंह मांगी वस्तुएं भेंट चढ़ाने के लिए उतावली रहती है। ईरान से हमें यदि गैस मिल जाती है तो निश्चित ही विदेश से आयात किए जाने वाले खनिज तेल पर हमारी निर्भरता कम हो जाती। अब भी क्या बिगड़ा है? भारत सरकार चाहे तो ईरान की गैस पाइप लाइन को पाकिस्तान पर दबाव डालकर स्वीकृति दिलवा सकती है। ईरान से आने वाली गैस की पाइप लाइन पाकिस्तान की भूमि पर से ही भारत में आ सकती है। पाकिस्तान हमारी कोई बात नहीं मानता लेकिन हम पाकिस्तान के लिए बिछे जा रहे हैं।
पाकिस्तान में कितना ऊर्जा संकट है इस पर पाकिस्तान के दैनिक 'द नेशन' ने जो सम्पादकीय लिखा है उसके कुछ अंश पढ़ना हमारे लिए अनिवार्य है। अखबार लिखता है कि 'दुश्मन जब धराशायी हो रहा हो उस समय उसे प्राण वायु देना ठीक नहीं' ….'वित्त मंत्री अब्दुल हफीज शेख के नेतृत्व वाली 'इकोनोमिक कोआर्डिनेशन कमेटी' ने अफगानिस्तान को पेट्रोल निर्यात पर रोक लगा दी है और सी एन जी किटों काइन गाड़ियों में लगाया जाना भी प्रतिबंधित कर दिया है। कमेटी का कहना है कि उसने यह सब देश में तेल और गैस की किल्लत के कारण किया है।' पाकिस्तानी पत्र कहता है कि 'हमारे संकट का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि हमारे पास अपनी रेलगाड़ियों को समय से चला पाने भर का ईंधन भी नहीं है। रेल समय पर नहीं चलती है तो सामान्य आदमी को कितनी कठिनाई होती होगी यह सरकार की समझ से बाहर है। इसके साथ ही पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस ने भी दिक्कतें बढ़ा दी हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को सत्ता संभाले चार साल होने जा रहे हैं लेकिन इस सरकार ने आम पाकिस्तानी के घर में अंधेरा कर दिया है और यातायात को पंगु बना दिया है।' इन हालात में भारत यह क्यों नहीं समझ पा रहा कि दुश्मन दम तोड़ रहा है, लेकिन हम उसके लिए प्राणवायु का 'सिलेडर' जुटा रहे हैं?
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