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मनमोहन-तरुण गोगोई ने दिया देश को धोखा
प्रधानमंत्री की व्दरियादिली
भारत की जमीन बंगलादेश को सौंपी
राष्ट्र की अखण्डता और सुरक्षा से खिलवाड़
बासुदेब पाल
हाल ही में बंगलादेश के अपने दो दिवसीय सरकारी दौरे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने न केवल देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया बल्कि बंगलादेश को खुश करने के लिए भारत की ही जमीन का समझौता कर लिया। विडम्बना यह है कि उस जमीन पर गुजर-बसर कर रहे भारतीय परिवारों के भविष्य पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया है। संधि के बाद वे भारत के नागरिक नहीं रहे, बंगलादेश के हो गए। ऐसे में कट्टर मजहबी उन्मादियों से सराबोर बंगलादेश क्या उन हिन्दू परिवारों को हर तरह से निर्भय होकर जीने की गारंटी दे सकता है? भारत के जिन भूखंडों को बंगलादेश को सौंपा गया है क्या वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं थे? आखिर भारत की सुरक्षा को दांव पर क्यों लगाया गया?
बंगलादेश के साथ भारतीय भूखंडों को लेकर या भारतीय गलियारों को लेकर जो संधि हुई है, उससे एक आम भारतभक्त का नाराज होना स्वाभाविक है।
पूर्वोत्तर में, खासकर असम में तो इसे लेकर बेहद आक्रोश दिख रहा है। यह आक्रोश असम की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सेकुलर नीतियों के विरुद्ध है। आखिर देश की जमीन का समझौता करने से पहले असम सरकार या केन्द्र सरकार ने देशवासियों से इस बारे में कोई राय मांगी थी? क्या उन्होंने संसद को विश्वास में लिया था?
प्राप्त समाचारों के अनुसार, असम में भारत की करीब 700 एकड़ जमीन बंगलादेश को दे दी गई है। यह वह जमीन है जहां भारतीय परिवार रहते हैं और उस जमीन पर खेतीबाड़ी करते हैं। बंगलादेश से बिल्कुल सटे असम के करीमगंज जिले की बात करें तो वहां लगभग 750 बीघा जमीन को लेकर विवाद उठाया जाता रहा है। करीमगंज जिले से लगती भारत-बंगलादेश की 105.66 किलोमीटर लंबी सीमा में से 35.8 किलोमीटर तो नदी तट सीमा है। इस सीमा पर कंटीले तारों की जो बाड़ लगाई गई है उसमें भी खामियां हैं। अभी 20 अगस्त को ही करीमगंज के जिलाधिकारी खुद वहां गए थे, वहां कंटीले तारों की बाड़ को देखकर उन्होंने टिप्पणी की थी-व्सीमा पर बाड़ लगाने के लिए भारत और बंगलादेश के बीच 29 नवम्बर 2009 को नई दिल्ली में दोनों देशों के गृह सचिवों की बैठक हुई थी। बैठक में तय किया गया था कि जीरो लाइन के 137 मीटर अंदर भारतीय इलाके में कंटीली तार की बाड़ लगाई जाएगी। इसके बावजूद जो बाड़ लगाई गई है वह संधि में तय बातों की अनदेखी करती है।व् लेकिन असम के मुख्यमंत्री इसे कितने हल्केपन से लेते हैं, वह उनकी नई दिल्ली में हुई पत्रकार वार्ता से साफ हो जाता है। उन्होंने वहां कुछ अलग ही तथ्य दिए थे। आखिर जो चीजें केन्द्र सरकार और केन्द्र के अधिकारियों को मीडिया के सामने रखनी चाहिए थीं उन्हें असम के मुख्यमंत्री क्यों समझा रहे थे, यह समझ से परे था। तरुण गोगोई को शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी मौजूदगी में प्रधानमंत्री ने बंगलादेश सरकार से जो संधि की है उसे लेकर उनके राज्य की जनता में कितना गुस्सा है। असम के करीमगंज जिले के लाठीटीला, दुमाबाड़ी, पल्लाटीला चायबागान और नयागांव इलाकों की जमीन की अदला-बदली की गयी है जबकि धुबरी जिले में बरईबाड़ी और ठाकुरियानबाड़ी इलाकों की जमीन का समझौता किया गया है। दरअसल भारत और बंगलादेश के बीच लम्बे समय से गलियारों को लेकर विवाद उठाया जाता रहा है। ऐसे करीब 162 गलियारे पश्चिम बंगाल-बंगलादेश की सीमा पर हैं तो उधर असम और त्रिपुरा में सीमांकन को लेकर विवाद है। वास्तव में असम और मेघालय के बहुत से इलाके बंगलादेश ने कब्जाए हुए हैं। उनमें से कुछ इलाकों पर तो बंगलादेश ने कानूनी तौर पर अधिकार जमा लिया है।
भारत और बंगलादेश (तत्कालीन पूर्वी बंगाल) के बीच 1947 में विभाजन के समय रेडक्लिफ लाइन को प्रमाण मानकर सीमा खींची गई थी, जिसका उस वक्त भी स्थानीय निवासियों ने विरोध किया था पर उस विरोध को दरकिनार कर दिया गया था। भारत और बंगलादेश के बीच 4095 किलोमीटर लम्बी सीमा में से 2216 किलोमीटर पश्चिम बंगाल से सटी है तो 856 किलोमीटर त्रिपुरा से, 443 किलोमीटर मेघालय से, 318 किलोमीटर मिजोरम से और 318 किलोमीटर सीमा असम से सटी है। सीमा पर नदी के मुहाने हैं तो पहाड़ भी हैं, रिहायशी बस्तियां हैं तो निर्जन क्षेत्र व वन भी हैं। यह एक छिद्रित सीमा है जिस पर 54 नदियां बहती हैं और ऐसी जगहें भी कम नहीं हैं जहां दोनों देशों की जमीन को बस नदी ही बांटे हुए है। सालोंसाल इन नदियों और जंगलों से बंगलादेशी घुसपैठियों का भारत में निर्बाध आना जाना लगा रहा है।
सीमा पर अनेक स्थान ऐसे हैं जहां भारत के सीमा सुरक्षा बल और बंगलादेश की बंगलादेश राइफल्स के बीच कई मौकों पर गोलीबारी होती रही है और भारत के कई जवान शहीद भी हुए।
तनाव के ऐसे कुछ स्थान हैं मेघालय में पीरदोया, मुल्कापुर, दाउकी, तमाबिल और असम में दुमाबाड़ी, लाठीटीला और बरईबाड़ी। धुबरी जिले में मनकाचार- बरईबाड़ी सीमा क्षेत्र ही वह इलाका है जहां सन् 2001 में बंगलादेश राइफल्स के लोग भारतीय सीमा सुरक्षा बल के 16 जवानों को जबरन घेरकर अपने यहां ले गए थे और बाद में उनके क्षत-विक्षत शव लौटाए थे। पिछले वर्ष मेघालय स्थित दुमकापुर सीमा पर भारत एवं बंगलादेश के सीमा प्रहरियों के बीच कम से कम 6 बार गोलीबारी हुई थी, जिसमें बड़ी संख्या में भारत के आम ग्रामीणजन मारे गए थे। दोनों देशों के बीच सीमा पर घुसपैठ, खेत बागान, नदियों में मछली पकड़ने जैसी घटनाओं को लेकर हिंसक झड़पें होती आई हैं। 1974 में इंदिरा-मुजीबुर्रहमान संधि हुई थी जिसकी पन्द्रहवीं धारा के तहत सितम्बर 2010 में असम के करीमगंज जिले में दुमाबाड़ी और लाठीटीला तथा धुबरी जिले में मनकाचार का तथाकथित विवादित इलाका बरईबाड़ी बंगलादेश को सौंप दिया गया था। मेघालय के दाउकी और तमाबिल में नए सिरे से सीमांकन किया गया था। बताया गया है कि सीमा पर 220 एकड़ जमीन में से भारत को 193 एकड़ जमीन हासिल होगी। इस नये सीमांकन को लेकर वहां के गांव वालों ने गुस्सा प्रगट करते हुए उसे मानने से इनकार कर दिया। अन्तरराष्ट्रीय सीमा समन्वय समिति के अध्यक्ष एम.रिंगसाय (मेघालय) ने शिकायत की थी कि मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने जमीन के असली स्वामियों से इस बारे में राय तक लेने की कोशिश नहीं की।
असम सहित सभी पूर्वोत्तरवासी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस व्दरियादिलीव् और तरुण गोगोई की नासमझी के कारण इतने आक्रोशित हैं कि लोग जगह-जगह सड़कों पर उतर आए हैं। असम के विपक्षी दलों ने कांग्रेस सरकार की इस घुटनाटेक और देशविरोधी नीति का जमकर विरोध किया। इनमें असम गण परिषद और भाजपा प्रमुख हैं। व्आसूव् ने भी विरोध प्रदर्शन करके बंगलादेश को दी गई असम की जमीन वापस लेने की मांग की। जहां व्आसूव् ने गोगोई को व्धोखेबाजव् करार दिया वहीं असम गण परिषद के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने असम की जमीन बंगलादेश को सौंप कर अपने पद पर बैठने से पूर्व ली गई शपथ का उल्लंघन किया है। उन्होंने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए असम विधानसभा का एक विशेष आपातकालीन सत्र बुलाए जाने की मांग भी की। महंत के अनुसार, असम के मुख्यमंत्री और असम से ही राज्यसभा सांसद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, दोनों ने असम के लोगों के साथ धोखा किया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि असम के नागरिकों और राज्य की विधानसभा को इस पूरे मुद्दे पर अंधेरे में रखा गया।
विश्व हिन्दू परिषद ने गुवाहाटी में एक प्रेस वार्ता आयोजित करके सरकार को चेताया कि अगर असम की जमीन वापस नहीं ली जाती तो देशव्यापी आंदोलन होगा।
असम की जमीन को बंगलादेश को सौंपे जाने की कड़ी भत्र्सना करते हुए विश्व हिन्दू परिषद की पूर्वोत्तर इकाई के मंत्री अभिजीत डेका ने कहा कि तरुण गोगोई असम के सबसे खराब मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। जमीन देने संबंधी प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर होने के बाद ढाका में गोगोई ने कहा था, व्हम दो देशों के बीच जमीन को लेकर चले आ रहे विवादों को अनिश्चितकाल तक के लिए अनसुलझा नहीं रख सकते।व् श्री डेका ने कहा कि अगर भारत सरकार इस तरह का रवैया रखती है तो संभव है हमें एक दिन उन सभी इलाकों से हाथ धोना पड़े जिन पर पाकिस्तान और चीन अपने-अपने दावे जताते हैं। क्या भारत का केन्द्रीय नेतृत्व ऐसा करेगा? विहिप ने राज्य के सभी पांथिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों से एकजुट होकर भारत की जमीन बंगलादेश को सौंपे जाने के इस करार का विरोध करने की अपील की है।
भाजपा ने राजधानी गुवाहाटी में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए और असम की भूमि अविलम्ब वापस लेने की मांग की। उधर दिल्ली में संसद के निकट जंतर मंतर पर भाजपा ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। प्रदर्शन में कार्यकत्र्ताओं के अलावा बड़ी संख्या में राष्ट्रभक्त नागरिक उपस्थित थे जिन्होंने एक स्वर से असम की करीब 700 एकड़ भूमि बंगलादेश को सौंपे जाने का विरोध करते हुए सरकार को देशविरोधी हरकतों से बाज आने को कहा। इस मौके पर भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और असम की वरिष्ठ नेता श्रीमती बिजोया चक्रवर्ती, राज्यसभा सांसद चंदन मित्रा, दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता, संगठन महामंत्री रामलाल सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे। वक्ताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री को भारत में बंगलादेशी घुसपैठियों के बारे में बात करनी चाहिए थी, बंगलादेश से इस पर लगाम लगाने को कहना चाहिए था। लेकिन भारत सरकार ने जिस प्रकार अपनी ही जमीन बंगलादेश को सौंपकर अपनी कमजोरी दिखाई है उससे आतंकवादियों और घुसपैठियों को शह ही मिलेगी।
उधर असम के विद्रोही गुट उल्फा ने भी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से यह सीख लेने की सलाह दी कि अपने राज्य के लोगों के हितों की रक्षा कैसे की जानी चाहिए। उल्फा ने इस मुद्दे पर आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दी। नये सीमांकन के बाद भारत के 666 परिवार अब बाड़ के उस पार कर दिए जाएंगे। इनमें कछार में 179 परिवार, धुबरी में 125 और करीमगंज में 362 परिवार हैं। भारत के इन नागरिकों के भविष्य को लेकर भारत की सरकार ने जो सवाल खड़ा कर दिया है और बंगलादेशी घुसपैठ तथा भारत की सुरक्षा के साथ जो खिलवाड़ किया गया है उसके विरुद्ध 9 सितम्बर को राष्ट्रनिष्ठ छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। परिषद के कार्यकत्र्ताओं ने करीमगंज में लाठीटीला में उस स्थान पर जाकर तिरंगा फहराया जो ऐतिहासिक रूप से भारत का है, जिसे प्रधानमंत्री डा.सिंह बंगलादेश को सौंपने को आतुर हैं। परिषद ने कहा है कि अगर भारत की जमीन को लेकर किसी तरह का समझौता किया गया तो वह चुप नहीं बैठेगी और देशव्यापी आंदोलन छेड़ेगी। उल्लेखनीय है कि लगभग दो साल पहले विद्यार्थी परिषद ने बंगलादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध व्चिकन नेकव् पर एक बड़ा आंदोलन किया था। परिषद का नारा ही है-व्दिल्ली हो या गुवाहाटी-अपना देश, अपनी माटी।
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