इफ्तार की तेज होती रफ्तार
|
मुजफ्फर हुसैन
यह एक संयोग की बात है कि जिन दिनों इस्लामी जगत में रमजान का महीना चल रहा था और जैन मतावलम्बी पर्यूषण का त्यौहार मना रहे हैं, उन्हीं दिनों अण्णा हजारे ने 12 दिन तक अनशन किया और सरकार को उनकी मांगों के सामने झुकना पड़ा। ऐसा होता है अनशन, उपवास, रोजा आदि का प्रभाव। रमजान में रखे जाने वाले 30 रोजे शरीयत के अनुसार अनिवार्य हैं। व्सलिए बड़ी सख्ती से व्सका पालन होता है। यहूदी और वर््सावर्् भी विशेष अवसर पर कुछ दिनों के लिए उपवास करते हैं। भारत में अनेक पंथ के लोग स्वतंत्र रूप से अलग-अलग अवसर पर अथवा सप्ताह में एक बार उपवास रखते हैं। यह बहुत पुरानी परम्परा है। जैन सम्प्रदाय व्स मामले में अपना ऐतिहासिक कीर्तिमान रखता है। वहां उपवास कुछ दिनों या सप्ताह के लिए नहीं, बल्कि महीनों तक चलता है। मुम्बवर्् में व्न दिनों माटुंगा स्थानक वासी जैन संघ में विराजमान पारस मुनि महाराज 240 दिन का उपवास कर रहे हैं। जैन मुनियों का उपवास की दुनिया में चौंका देने वाला व्तिहास है, जिसे कोवर्् चुनौती नहीं दे सकता है। दुनिया के सभी मत-पंथों में उपवास अनिवार्य होने के उपरांत भी मुसलमानों द्वारा रमजान में किए जाने वाले उपवास का अपना एक अनोखा स्थान है। विश्व में जहां कहीं मुसलमान रहते हैं अनिवार्य रूप से रोजा रखकर रमजान मास को सम्मान देते हैं। चूंकि यह क्रम सतत् तीस दिन तक चलता है व्सलिए उसकी चर्चा होना स्वाभाविक बात है।
मजहब की राजनीति
सूर्य उगने से पूर्व रोजा प्रारम्भ होता है जो सूर्य अस्त होने तक चलता है। व्स बीच रोजा रखने वाला न तो पानी पी सकता है और न ही किसी वस्तु का सेवन कर सकता है। जिस क्षण रोजा समाप्त किया जाता है उसे सामान्य भाषा में इरोजा खोलनेइ की संज्ञा दी जाती है। अरबी में व्से व्फ्तार कहा जाता है। मजहब को राजनीति में घसीटने की पुरानी परम्परा है। व्सलिए ब्रिाटिश समय में मुल्ला-मौलवियों और खान बहादुरों की मान-मनौव्वल करने के लिए व्फ्तार के आयोजन की शुरुआत हुवर््। लेकिन आजादी के पश्चात् जब मुस्लिम अल्पसंख्यक वोट बैंक के रूप में देखे जाने लगे तो कांग्रेसियों ने अंग्रेजों की तरह उनकी चापलूसी करना शुरू कर दिया। बाद में तो व्फ्तार के साथ पार्टी शब्द जुड़ गया। मानो वह कोवर्् बर्थ डे अथवा विशेष आयोजन के अवसर पर दी जाने वाली पार्टी हो। व्स प्रकार टी पार्टी व्फ्तार पार्टी बन गवर््। लेकिन कोवर्् ऐसा प्रसंग देखने और पढ़ने को नहीं मिलता है जब मौलाना आजाद, हाफिज मोहम्मद व्ब्रााहीम अथवा रफी अहमद किदववर्् जैसे दिग्गजों ने व्स प्रकार की पार्टियों में अपनी उपस्थिति दर्ज करावर्् हो। राजनीतिक नेता ही नहीं उस समय के मौलाना हिफजुर्रेहमान जैसे किसी मशहूर व्स्लामी विद्वान ने भी किसी व्फ्तार पार्टी में शिरकत की हो, यह पढ़ने को नहीं मिलता है। व्फ्तारी हर कोवर्् व्यक्ति अपनी स्थिति अनुसार ही कर लेता था। उसके पश्चात् नमाज अत्यंत अनिवार्य होती है व्सलिए वह उसमें शामिल हो जाता था। आज भी स्वाभिमानी मुसलमान अपनी हैसियत से अपना रोजा खोल लेता है। लेकिन ज्यों-ज्यों मुसलमानों के वोट का मूल्य बढ़ता चला गया व्फ्तारी, व्फ्तार पार्टी में बदल गवर््। पार्टी शब्द व्स नेक कार्य के साथ कितना प्रासंगिक है, यह भी एक चिंतन का विषय है। अंग्रेजों की पार्टी तो बिना शराब के पूरी होती नहीं थी, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना जैसे लोग तो शामिल हो सकते हैं, लेकिन एक बेचारा सच्चा मुसलमान उससे कैसे जुड़ सकता था।
व्फ्तार का मेला
वर्तमान में व्फ्तार पार्टी का आयोजन देखने योग्य होता है। व्समें अधिकांश वे लोग शामिल होते हैं, जिनका रोजा नहीं होता है। चूंकि कोवर्् अन्य मजहब से जुड़ा व्यक्ति व्स पार्टी का आयोजन करता है तो उसके लिए यह पाबंदी क्यों नहीं हो कि जिसका उपवास हो वही व्समें शामिल हो। नेताओं और अधिकारियों की व्समें भीड़ होती है। पकवान, फल और ठंडे पेय की भरमार होती है। व्फ्तारी से पूर्व नेताओं और चिर-परिचित समाजसेवियों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के भाषण आयोजित किए जाते हैं। सभी मिलकर पार्टी और रमजान की प्रंशसा के पुल बांध देते हैं। रमजान के अंतिम दस दिन में तो व्फ्तार पार्टी की बाढ़ आ जाती है। हर मोहल्ले और हर बस्ती में व्सका आयोजन होता है। मंत्रियों द्वारा आयोजित व्फ्तार पार्टियां विधानसभा परिसर में अथवा भव्य भवनों में आयोजित की जाती है। अब तो मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री द्वारा दी जाने वाली व्फ्तार पार्टी एक स्थायी परम्परा बन गवर्् है। पुलिस के अधिकारी भी व्समें आगे-आगे रहते हैं। फिर हर वार्ड और मोहल्ले के पुलिस अधिकारी व्फ्तार पार्टी का आयोजन करके मन ही मन संतुष्ट हो जाते हैं। सोचने लगते हैं हमने व्फ्तार के नाम पर मुसलमानों का समर्थन प्राप्त कर लिया। मुस्लिम नेताओं को भी व्न मंत्रियों और बड़े पदाधिकारियों की मान्यता मिल जाती है। व्स कारण व्फ्तार पार्टी एक ऐसा मेला हो जाता है, जिसमें सब एक-दूसरे को यह बताने के लिए उपस्थित होते हैं कि हम आपको पहचानते हैं। आप भी हमें पहचानिए ताकि समय पर एक-दूसरे के काम आ सकें।
व्स बार देश में अण्णा हजारे के अनशन का माहौल था। किसी भी क्षण कुछ हो सकता था। एक व्यक्ति देश के एक अहम मुद्दे पर उपवास कर रहा था, यदि ऐसे में केवल व्फ्तार होता, पार्टी नहीं भी होती तो कोवर्् आसमान फट जाने वाले नहीं था। लेकिन भूखे अण्णा के अनशन को समाप्त कराने के लिए वे लोग प्रयास कर रहे थे, जिनके पेट स्वादिष्ट व्यंजनों से पहले ही भरे हुए थे। कुछ रोजेदार व्स अनशन करने वाले अण्णा के पास जाकर अनशन समाप्त करने के लिए आग्रह करते तो उसका एक अलग प्रभाव होता।
एकमार्गी व्यवहार
व्फ्तार पार्टियों में मुस्लिम बंधुओं का रोजा व्फ्तार कराने के लिए सरकार और मंत्रियों की फौज आ धमकती है, लेकिन अन्य मतावलम्बियों के उपवास को तुड़वाते समय तो एक भी राजनीतिक हस्ती नहीं दिखावर्् पड़ती। सैकड़ों भारतीय व्फ्तार आयोजित करते हैं। क्या कभी मुस्लिम समाज ने यह सोचा कि जो महिला करवा चौथ का व्रत अपने पति के लिए करती है उसका व्रत तुड़वाने के लिए हमारी महिलाएं भी आगे आएं? हिन्दू त्योहारों में तो ढेरों उपवास की परम्परा है, फिर हमारे प्रधानमंत्री उनके लिए पार्टी का आयोजन क्यों नहीं करते? अल्पसंख्यक तो वर््सावर्् भी हैं, जिनके उपवास जाने-माने हैं। किसी गुड फ्राव्डे पर ऐसा आयोजन क्यों नहीं होता है? जैन मुनियों के उपवास की तो परम्परा का कीर्तिमान कोवर्् तोड़ नहीं सकता। फिर क्या कारण है कि उनके उपवास छोड़ने यानी पारणा करते समय कोवर्् मंत्री, संतरी उपस्थित नहीं रहता। हर मत में उपवास की परम्परा है, फिर व्फ्तारी की परम्परा केवल मुसलमानों के लिए ही क्यों? हर मत में उपवास की परम्परा है, व्स पर सरकार तो नहीं सोचती है। लेकिन क्या मुस्लिम बंधु किसी अन्य समाज के उपवास तुड़वाने में भाग लेते हैं। यह एकमार्गी व्यवहार कब तक? या तो व्फ्तार के लिए सरकारी तामझाम बंद हो या फिर अन्य मत के लोगों के लिए भी व्फ्तारी के समान कोवर्् आयोजन किया जाए? भारत का बहुसंख्यक समाज तो रमजान वर््द के अवसर पर वर््द मुबारक का संदेश देता है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तो वर््दे मीलाद की छुट्टी नहीं दिए जाने पर लाल किले से आंसू बहाए थे, लेकिन भारतीय मुस्लिम कितने लोगों को दीपावली, राखी, दशहरा अथवा विक्रम संवत् के प्रारम्भ होने पर अपना बधावर्् संदेश प्रेषित करते हैं? संकीर्णता तो व्स हद तक है कि गणपति के समारोह में भाग लेने वाले मुस्लिम के लिए फतवा जारी कर दिया जाता है। मोहर्रम के जुलुस में बहुंसख्यक समाज अखाड़े से लेकर अनेक प्रकार की मन्यताओं में अपना विश्वास दर्शाता है। लेकिन मुस्लिम व्न त्योहारों में अपना कितना योगदान देते हैं, यह व्फ्तार पार्टी स्वीकार करते समय मुस्लिम बंधुओं के लिए सोचने और चिंतन करने का मुद्दा है। हज यात्रा के लिए भारत सरकार और यहां के बहुसंख्यक समाज का योगदान हमेशा सकारात्मक होता है। लेकिन अमरनाथ यात्रा के समय कुछ शरारती तत्व जिस प्रकार की हिंसा फैलाते हैं, क्या यह किसी से छिपा है?
व्फ्तार जैसे पवित्र शब्द के साथ पार्टी शब्द उपयोग किया जाना कितना उपयुक्त है? नमाज तो जमात में पढ़ी जाती है व्सलिए जमात अथवा सामूहिक व्फ्तार का शब्द यदि उपयोग किया जाएगा तो वह अधिक न्यायिक होगा। पार्टी के नाम पर मजहब में राजनीतिक घुसपैठ न तो व्फ्तार पार्टी के आयोजकों के लिए उचित है और न ही मुस्लिम बंधुओं के लिए, जो व्स प्रकार के आयोजनों को स्वीकार कर व्फ्तार पर प्रश्नवाचक चिह्न लगाने का दुस्साहस करते हैं। व्फ्तार की व्स रफ्तार पर विचार करने का समय आ गया है।
टिप्पणियाँ