साहित्यकी
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डा.शिव शंकर जायसवाल
मैं अटल हिमवान जैसा
उदधि जैसा धीर हूं
गगन की निस्सीमता हूं,
मैं धरा की पीर हूं।
पांव में है गति पवन की,
मुट्ठियों में मंजिलें,
राह से डिगता नहीं मैं,
आंधियां जितनी चलें।
सूर्य के मैं भाल जैसा,
त्रिपथगा का नीर हूं,
मैं अटल हिमवान जैसा,
उदधि जैसा धीर हूं।
निबिड़ तम को चीरता मैं,
हर चुनौती झेलता,
मैं प्रभंजन का तनय हूं,
संकटों से खेलता।
दिव्यता का अंश हूं मैं,
मनुज की तकदीर हूं,
मैं अटल हिमवान जैसा,
उदधि जैसा धीर हूं।
जो बढ़े आगे निरंतर,
क्षितिज के उस पार तक,
सृष्टि के इस छोर से,
उस दूसरे संसार तक।
मैं पथिक ऐसा अथक हूं,
मुक्त मलय समीर हूं,
मैं अटल हिमवान जैसा,
उदधि जैसा धीर हूं।
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