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मुजफ्फर हुसैन
क्या आप विश्वास करेंगे कि इस युग में कोई देश किसी समुदाय की समस्त मजहबी क्रियाओं पर प्रतिबंध लगा सकता है? मानवाधिकार के तहत हर व्यक्ति अपनी आस्था के अनुसार अपने पांथिक अधिकारों का उपयोग करता है। जो भी देश किसी के पांथिक अधिकारों की अवहेलना करता है उसे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ठीक नहीं माना जाता है। लेकिन चीन सरकार दुनिया में एक ऐसी सरकार है, जो न केवल अपने बनाए हुए कानून का पालन जोर-जबरदस्ती से करवाती है, बल्कि उसे जब यह महसूस होने लगता है कि किसी मजहब के अनुयायियों के कारण उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है तो वह उस पर भी प्रतिबंध लगाने में हिचकिचाती नहीं है। मुस्लिम कैलेंडर के अनुसार पिछले अगस्त माह में रमजान का महीना था। इस्लामी आस्था के अनुसार इस महीने में 30 दिन के उपवास किये जाते हैं, जिन्हें इस्लामी जगत में रोजा कहा जाता है। मुस्लिम जगत के लिए रमजान मजहबी कर्म का महीना है इसलिए न केवल इबादत के लिए नमाज के साथ-साथ रोजे का पालन किया जाता है, बल्कि मुस्लिम अपनी आय में से दान-दक्षिणा भी करते हैं, जिसे जकात कहा जाता है। ईद की नमाज यानी खुत्बा पढ़ने से पूर्व अपनी आय के अनुसार लोग दान भी करते है, जिसे फितरा कहा जाता है। रमजान के अंत के पश्चात् जो ईद मनाई जाती है उसे ईदुल फितर की संज्ञा दी जाती है। भारत में मुस्लिम सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग है जिसे इस रमजान के महीने में जितनी संभव हो सकती है सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। लेकिन हमारे पड़ोस में बसा हुआ चीन पिछले लम्बे समय से वहां रहने वाले चीनी मुस्लिमों के साथ दुव्र्यवहार करता है। असलियत तो यह है कि वह न केवल मुसलमानों का, बल्कि उनके मजहब इस्लाम का भी कट्टर विरोधी है। यदि ऐसा न होता तो वह रमजान मास पर प्रतिबंध नहीं लगाता। वहां के मुस्लिम इस बार मस्जिदों में एकत्रित होकर ऊंची आवाज में अजान नहीं दे सके। पांच समय पढ़ी जाने वाली नमाज और रमजान में विशेषकर रात्रि के समय पढ़ी जाने वाली तराबीह से भी वंचित रहे। इतना ही नहीं रोजे रखने पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया गया। जिसने इसका पालन नहीं किया उसे दंडित किया गया। संक्षेप में कहा जाए तो चीन सरकार ने रमजान की हर गतिविधि पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसलिए में मुस्लिम बंधु इस बार जमात के साथ नमाज नहीं पढ़ सके। सरकारी दफ्तरों और कारखानों में दोपहर को खाना खाना अनिवार्य घोषित किया गया। जो व्यक्ति खाना नहीं खाएगा। वह वार्षिक बोनस से वंचित रहेगा। इस प्रकार के नियम की घोषणा कर दी गई। मुस्लिम बस्तियों में ढाबों को अनिवार्य रूप से खोले रखने के आदेश दिए गए। यह भी कहा गया कि 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति रोजा रखेगा, तो उसे दंडित किया जाएगा। कुल मिलाकर कहा जाए तो चीन में रमजान पर प्रतिबंध था।
विद्रोह की आशंका
चीन सरकार द्वारा घोषित किये गए इस कड़े प्रतिबंध का मुख्य कारण था चीन के सिक्यांग प्रांत के उगूर मुस्लिमों की सरकार से बगावत। चीन सरकार अपने इस प्रांत के नागरिकों से बहुत परेशान है। सिक्यांग की उगूर जनता अपने प्रांत को चीन से आजाद करवाना चाहती है। इसलिए वे अपने इस संघर्ष को अपनी स्वतंत्रता के संघर्ष से निरूपित करते हैं। चीन में जब ओलम्पिक का आयोजन हुआ था उस समय 122 उगूरों ने खुलेआम प्रदर्शन किया था। जिन्हें ओलम्पिक समाप्त होने के दूसरे दिन गोलियों से भून दिया गया। सिक्यांग प्रांत लम्बे समय से अशांत है। यह प्रांत मुस्लिम-बहुल है। पिछले दिनों चीन सरकार ने उन पाकिस्तानियों को धर दबोचा था जो इन बागियों की हथियारों और पैसों से मदद करते थे। अमरीका से अब पाकिस्तान के पहले जैसे रिश्ते नहीं हैं। इसलिए अब पाकिस्तान पूर्ण रूप से चीन पर अवलम्बित है। इसके बावजूद पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी और विशेषतया तालिबान इस्लाम के नाम पर चीन से भी कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। मुस्लिम आतंकवादियों का एक ही उद्देश्य है कि सिक्यांग जल्द से जल्द आजाद होकर एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में रूप में उभरे। चीन इस मामले में कोई रियायत नहीं देना चाहता है। उसने पाकिस्तान को भी इस मामले में सचेत कर दिया है और यहां की उगूर जनता को भी। चीन सरकार का यह मानना था कि रमजान के बहाने उगूर अपनी देशद्रोही हरकतों को व्यापक रूप प्रदान कर सकते थे। चीन सरकार को मिली जानकारी के अनुसार वे बाहरी ताकतों से गठबंधन करके चीन के राष्ट्रीय हितों को आघात पहुंचाने में सक्रिय हैं।
रमजान के प्रारंभ होने से पूर्व पुलिस और उगूर जनता के बीच झड़प हुई थी, जिसमें 11 लोग मारे गए थे। पुलिस ने गोली चलाकर दो आतंकवादियों को ढेर कर दिया गया। पिछले दिनों जर्मनी के नगर म्युनिख में उगूर मुस्लिमों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसमें यह तय हुआ था कि रमजान में चीन सरकार से दो दो हाथ कर लेना है। इस रपट के पश्चात् चीन सरकार ने सिक्यांग प्रांत में अपनी स्थिति मजबूत कर ली। रमजान में होने वाली गतिविधियों की जानकारी मिलते ही चीनी सरकार ने अपने यहां कानून और व्यवस्था का पुख्ता बंदोबस्त कर लिया। इसलिए सरकार ने सर्वप्रथम रमजान प्रारंभ होने से पूर्व वहां की जनता और विशेषकर उगूर के बागी नेताओं से शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिये थे। जिसमें यह लिखा हुआ था कि वे जमात के साथ नमाज नहीं पढ़ेंगे और रमजान के रोजे भी नहीं रखेंगे। सिक्यांग क्षेत्र में जो लोग जमात के साथ नमाज पढ़ते हैं उनके पहचान पत्र के नम्बर पुलिस रिकार्ड में दर्ज कर दिये जाते हैं।
जुलाई 2009 में उगूर जनता और चीनी पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं। क्योंकि उगूरों ने अपने मजहबी और मानवीय अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की थी। उक्त सम्मेलन में बहुत बड़ी संख्या में उगूर शामिल हुए थे। चीनी सरकार ने उन्हें डराने और भयभीत करने के लिए हिंसा का दामन थाम लिया। इस लड़ाई में दो हजार उगूर मारे गए थे और लगभग चार हजार बुरी तरह से घायल हुए थे। पिछले दो साल से जुलाई के दूसरे सप्ताह में पुलिस की इस बर्बरता की निंदा करने के लिए उगूर जनता बड़े पैमाने पर एकत्रित होती है। पुलिस और सेना तैनात होने के बावजूद उगूरों के हौसले बुलंद रहते हैं। इसलिए इस बार जब इन शहीदों की याद में एक सभा बुलाई गई तो चीनी सरकार ने अपनी ताकत से उन्हें दबाने का प्रयास किया। पुलिस ने इस क्षेत्र की हान जनता पर कोई कार्रवाई नहीं की, लेकिन उगूरों पर कड़ी कार्रवाई हुई। इस हिंसा का बुरा परिणाम आया। उगूर भी पुलिस से भिड़ गए जिसमें बड़े पैमाने पर लोगों की मार-काट हुई।
चीन का आरोप
चीन सरकार का अब उगूरों पर यह खुला आरोप है कि वे पृथकतावादी हैं और अपनी ताकत के बल पर सिक्यांग को चीन से अलग कर देना चाहते हैं। वर्तमान में जो स्थिति है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन सरकार के लिए पाकिस्तान की सरकार और सेना अब कटघरे में हैं। वे सिक्यांग में उगूर की घटनाओं के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं। उगूर नेताओं का कहना है कि चीन सरकार उनसे सौतेला व्यवहार करती है। उनके पास न कोई काम है और न ही जीविका चलाने के लिए कोई नियमित साधन। इसलिए उगूर नेताओं की मानें तो चीन केवल वहां के लोगों के बुनियादी अधिकारों की अवहेलना करता है। वे उन पर आरोप लगाकर चीन की जनता को भड़काना चाहते हैं। उनकी आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए चीन सरकार कुछ भी नहीं करती है। वे जब मांग करते हैं तो इसे आतंकवाद और बगावत से जोड़ दिया जाता है। उनका मत है कि बुनियादी अधिकारों की लड़ाई को वे दहशतगर्दी का नाम दे रहे हैं। जबकि चीन सरकार का कहना है कि चीन के उत्तर पूर्वी भाग की प्रगति के लिए वह निरंतर कार्य कर रही है। लेकिन अपने पिछड़ेपन के बहाने कोई राष्ट्र विरोधी हरकत करे तो उसे क्षमा नहीं किया जा सकता है। लेकिन उगूर मुस्लिमों का कहना है कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है।
सिक्यांग के नगर काशगर की आबादी लगभग 6 लाख है जिनमें 80 प्रतिशत मुसलमान हैं। जबकि 20 प्रतिशत हान हैं। चीन सरकार हान को उत्तेजित करके शांति भंग करवाती है और जब उगूर अपनी रक्षा करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो उन्हें आतंकवादी का नाम देकर उनकी बड़ी बेदर्दी से हत्या करवाई जाती है। उगूरों का कहना है कि सरकार इस प्रकार की बदमाशी बंद कर दे वरना उगूरों को अपनी आत्मरक्षा और अपने स्वाभिमान के लिए आगे बढ़ना ही होगा। चीन सरकार का कहना है कि उगूरों पर कोई दया नहीं दिखाई जा सकती है। उन्हें अपने देश की रक्षा के लिए हमें कुचलना ही होगा। चीन के गृहमंत्री मेंग सिक्यांग जू के अनुसार अपराधीवृत्ति के लोगों पर कोई छूट नहीं दी जा सकती है। उनकी ताकत का जवाब केवल ताकत से ही दिया जाएगा। चीन के गृहमंत्री ने गत वर्ष यहां तक कह दिया था कि सिक्यांग में अलकायदा सक्रिय है। चीनी नेताओं ने उस समय यह भी कहा था कि स्थानीय मुस्लिम नेता यदि बगावत को अपना मजहबी अधिकार मानते हैं तो फिर उनसे कोई समझौता नहीं हो सकता है। रमजान में सरकार ने जो सख्ती दिखाई है उसकी इस्लामी दुनिया में निंदा हो रही है। मानवाधिकार आयोग इस पर अपना फतवा जारी कर रहा है लेकिन चीन सरकार टस से मस होने के लिए तैयार नहीं है।
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