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पुस्तक का नाम – सफरनामा पाकिस्तान लेखक – बलबीर दत्त प्रकाशक – प्रकाशन संस्थान, 4715/21, दयानंद मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली मूल्य – 400 रु., पृष्ठ संख्या -327वरिष्ठ पत्रकार और पाकिस्तानी मामलों के विशेषज्ञ बलवीर दत्त के द्वारा लिखी गई पुस्तक “सफरनामा पाकिस्तान” गत वर्ष प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक आज के दौर के पाकिस्तान की जमीनी हकीकत से रूबरू कराती है। वर्ष 2004 के जनवरी माह में इस्लामाबाद में आयोजित हुए 12वें सार्क सम्मेलन में सम्मिलित हुए 337 भारतीय पत्रकारों के दल में लेखक भी मौजूद थे। जाहिर है वे उन ऐतिहासिक क्षणों के गवाह रहे।समीक्ष्य पुस्तक को केवल पाकिस्तानी शहरों का यात्रा-वृत्तांत कहकर सीमित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसमें एक ऐसे देश की संस्कृति और आम जन-जीवन को करीब से समझने का अवसर मिलता है जो कभी भारत का ही एक भाग हुआ करता था। कहने की आवश्यकता नहीं कि पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों और शहरों की यात्रा के वर्णन को पढ़ते हुए कई बार हमें भारत के किसी हिस्से से गुजरने का अहसास होता है। इस पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि लेखक ने एक ओर सार्क सम्मेलन के दौरान होने वाली राजनीतिक और मीडिया की सरगर्मियों का गहनता से विश्लेषण प्रस्तुत किया है वहीं दूसरी पाकिस्तान बनने की त्रासद कथा और विभाजन के दर्द को भी बड़ी मार्मिकता से प्रस्तुत किया है। मिसाल के तौर पर-“आजादी की दस्तक और देश विभाजन की यादें” नामक अध्याय में लेखक लिखते हैं, “क्या कारण है कि हम इतने वर्षों तक देश विभाजन की दु:खद घटना को भुलाने की कोशिश करते रहे हैं और आज भी उस सवाल को छेड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। भारतीय साहित्य में भारत विभाजन जैसी ह्मदय विदारक दुर्घटना के विस्तृत और गहन साक्ष्य नहीं मिलते, ना ही उसकी पीड़ा और कहर को पर्याप्त गहरी संवेदना के साथ दर्ज किया गया।” स्पष्ट है कि इस यात्रा वर्णन के बहाने लेखक इतिहास के उन पन्नों को पलटते हैं जहां पर अखंड भारत के एक हिस्से को भंग करने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना की कथा दर्ज है। इसी क्रम में- “विभाजन काल की स्मृतियां और अनुभूतियां, विभाजन की भीषण त्रासदी के अहसास वाली पीढ़ी” जैसे कुछ अध्यायों का जिक्र किया जा सकता है।कुछ अध्यायों के जरिए लेखक ने पाकिस्तान की वर्तमान दशा की तुलना, स्वतंत्रता और विभाजन से पूर्व के पाकिस्तान से करते हुए एक नए नजरिए से स्थितियों में हुए बदलाव की सूक्ष्म पड़ताल भी की है। “इस्लामाबाद शहर ए बेमिसाल अब हो रहा बदहाल”, और “अंतरिम राजधानी रावलपिंडी की कहानी” को इस दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा सकता है। इसके साथ ही इतिहास, संस्कृति, लोक कला और शिल्पकला के झरोखे से दोनों देशों की एक-दूसरे में समाई एकरसता को भी कुछ अध्यायों में लेखक ने दिलचस्प ढंग से लिपिबद्ध किया है।इस किताब की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पाकिस्तान से जुड़ी वर्ष 2008 तक की कई महत्वपूर्ण जानकारियां अलग परिशिष्ट में दी गई हैं। संपूर्ण यात्रा-वृत्तांत को लेखक ने बहुत ही रोचक और प्रभावी शैली में प्रस्तुत किया है। पुस्तक को केवल यात्रा वृत्तांत ही नहीं माना जा सकता है, इसमें भारत-पाक संबंधों को समझने का एक रास्ता भी खुलता नजर आता है। लेखक ने पूरी निष्पक्षता के साथ पाकिस्तान के राजनीतिक, प्रशासनिक और सामान्य जनजीवन की मुश्किलों का वर्णन किया है।20
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