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सितम्बर, 1958 की बात है। मुझे मेरे बड़े भ्राता श्री दाउदयाल अग्रवाल ने बताया कि मेरा ब्याह 4 फरवरी, 1959 को संघ के प्रचारक रहे एक सज्जन से होना निश्चित हो गया है। मुझे प्रसन्नता हुई, क्योंकि मेरा परिवार भी संघ से जुड़ा है। विवाह होने के बाद मुझे अपने पति द्वारा ज्ञात हुआ कि काशी के संघ कार्यालय (घटाटे राममन्दिर, गोदौलिया) में श्री भाऊराव देवरस से मेरे परिवार के प्रमुख श्री श्याम मोहन अग्रवाल (भैया जी) की भेंट हुई। भाउराव जी उस समय स्वास्थ्य लाभ के लिए पतिदेव के बड़े भाई मुरलीधर तुलस्यान के साथ छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) में रहते थे। काशी किसी कार्यवश आये थे। वार्तालाप में भाउराव जी द्वारा यह कहा गया कि प्रचारक जीवन से वापस लौटे एक अग्रवाल परिवार के लड़के के लिए कोई लड़की हो तो बताना। भैया जी ने कहा लड़की तो हमारे परिवार में ही है। उसके पश्चात् भैयाजी नागपुर जाकर पति देव के भाई साहब से मिलकर सारी बातें तय कर आये। 4 फरवरी, 1959 को मेरा श्री श्यामसुन्दर तुलस्यान के साथ विवाह सम्पन्न हो गया। ब्याह में भाऊराव जी, श्री रज्जू भैया, श्री संकठा सिंह और संघ के अन्य कई प्रमुख अधिकारी उपस्थित थे। शीघ्र ही कुछ ऐसी परिस्थिति बनी कि हमें नागपुर से वाराणसी आना पड़ा। पतिदेव के दूसरे बड़े भ्राता श्री शंकर लाल तुलस्यान, जो गोरखपुर जनपद के गोला बाजार में रहते थे, लकवा से ग्रस्त हो गये। उनकी वाराणसी में सुडिया के प्रसिद्ध वैद्य शिवकुमार शास्त्री की देख-रेख में चिकित्सा प्रारम्भ हुई। हम लोग साथ में रहे। ईश्वर की अनुकम्पा से 25 दिन में ही वे स्वस्थ होकर छिंदवाड़ा चले गये। सन् 1955 से ही तुलस्यान परिवार का कोयले का व्यापार वाराणसी में प्रताप कोल कम्पनी के नाम से चल रहा था। अत: हम लोगों को काशी में ही रहकर उक्त व्यवसाय देखना था। इस प्रकार गृहस्थ जीवन का प्रारम्भ हुआ। बचपन से ही संघ के स्वयंसेवक होने के नाते व्यवसाय के अतिरिक्त इनका समय संघ कार्य में लगता था। सब ठीक प्रकार चलता रहा। तीन बच्चे (दो लड़के और लड़की) परिवार में आये। जून 1975 में अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने आपातस्थिति घोषित कर दी और संघ के स्थानीय एवं ऊपर के अधिकारी जेल भेज दिये गये। उस समय मेरे पतिदेव पर काशी महानगर प्रभात कार्यवाह का दायित्व था! संघ पर प्रतिबंध लग गया। कुछ दिन पश्चात् संघ की ओर से सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ। पतिदेव के ऊपर पुलिस की नजर थी और यह बचकर सत्याग्रह कराना, आवश्यकतानुसार कचहरी जाना आदि करते थे। एक दिन बोले मैं जा रहा हूं और सप्ताह भर गायब रहे। लौटने पर बताया कि वे डा. सुब्राहृण्यम स्वामी को लखनऊ से लेकर काठमाण्डू गए थे। स्वामी विदेशों में भारत में लोकतंत्र की हत्या का प्रचार कर रहे थे। वे काठमाण्डू से लंदन चले गये। साहसिक कार्य था, पतिदेव आनन्दित थे।बच्चे बड़े हुए तो व्यापार संभाल लिया। आज लड़की कोलकाता में अपने पतिदेव के साथ प्रसन्न है। पतिदेव वानप्रस्थ आश्रम का कत्र्तव्य निभा रहे हैं। वाराणसी के एक नगर कबीरनगर के संघचालक का दायित्व संभाले हुए हैं और “सक्षम” के प्रान्तीय संरक्षक हैं। मेरा जीवन प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत हो रहा है। समाज सेवा से जुड़े दो परिवारों का कितना सुखद रहा, यह सोचकर आज भी मैं आनंदित होती हूं।-प्रमिला तुलस्यानग्राम : चुरामनपुरपो. : भुल्लनपुर पी.ए.सी.जिला : वाराणसी (उ.प्र.)20
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