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आज पूरे विश्व में जहां भी सनातनधर्मी हैं, वहीं होली का हुड़दंग दिखता है। किन्तु ब्राज क्षेत्र की होली की बात ही कुछ और है। पूरे ब्राज क्षेत्र में बसंत पंचमी से ही लोगों में होली की मस्ती छाने लगती है। फाल्गुन के अन्त में यह मस्ती चरमोत्कर्ष पर होती है। ब्राज में चारों ओर होली की धूम मच जाती है। कोई ऐसा गांव और कोई ऐसा व्यक्ति नहीं, जो होली के रंग में न डूबा हो। किन्तु इस क्षेत्र में बरसाना, नन्दगांव और मथुरा की होली तो विश्व प्रसिद्ध है। फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना, दशमी को नन्दगांव और एकादशी को मथुरा में ऐसी होली खेली जाती है कि इन्हें देखने के लिए दुनियाभर से लोग वहां पहुंचते हैं।गत 23 फरवरी को बरसाना में द्वापर से चली आ रही परंपरा का एक बार पुन: निर्वहन करने के लिए यहां की रंगली गली पुन: इठलाई। क्योंकि वह राधा-कृष्ण के अनुराग की प्रतीक होली की साक्षी बन रही थी। श्याम का रस रंग यहां जमीन पर उतर आया। धरती से आसमान तक रंग और गुलाल के बादल नजर आये।नंदगांव के गोस्वामी हुरियारे एवं बरसाना की गोस्वामी हुरियारिनों के मध्य जब होली खेली जा रही थी तो देश और विदेशों से आये श्रद्धालुजन इस अलौकिक दृश्य को देख अपने आपको धन्य महसूस कर रहे थे। नन्दगांव से आये हुए हुरियारे परंपरागत रसिया “दर्शन दे श्री राधे वृषभान दुलारी” और “होरी में लाज न कर गोरी” गाकर बरसाना की गोपियों को उकसा रहे थे। द्वापर में यहां की गोपियों के प्रेम के आगे कृष्ण ने अपने ईश्वरत्व को बिसरा दिया था। यही भाव यहां साकार होता हुआ नजर आ रहा था।प्रात: से ही बरसाना में जिधर देखो उधर होली देखने वाले श्रद्धालुओं की टोली चली आ रही थी। झूम झूमकर ये टोलियां गा रही थीं- “होरी रे रसिया पर जोरी रे रसिया, आज बिरज में होरी रे रसिया, कौन गांव के कुंवर कन्हैया, कौन गांव की राधा गोरी रे रसिया, नन्द गांव के कुंवर कन्हैया, बरसाने की राधा गोरी रे रसिया।”बरसाना की इस प्रसिद्ध लठमार होली खेलने की तैयारी चालीस दिन पूर्व से ही शुरू हो जाती है। इसके लिये होली खेलने वाली महिलाओं को उनकी सास बादाम घी खिलाती हैं। आज से करीब साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व द्वापर में भगवान अपने सखाओं के साथ राधा रानी एवं गोपियों से होरी खेलने नंदगांव से आते थे। उसी परम्मपरा को निभा कर यहां की महिलाएं अपने आपको धन्य मानती हैं। यहां से होली खेलकर जाते हुए हुरियार बरसाने की गोरियों को निमंत्रण दे जाते हैं कि वे नंदगांव होली खेलने आएं- “नंदगांव आऔ होरी खेलौ” और अगले दिन गोपिकाएं नंद गांव जाती हैं। वहां होली का रंग ऐसा बरसता है कि सब कह उठते “जो रंग बरसै या ब्राज में, सो बैकुण्ठऊ में नाहिं। द मुकेश गोस्वामी10
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