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प्राप्त समाचारों के अनुसार भारत की सरकार ने अलगाववादियों, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के दबाव में आकर जम्मू कश्मीर को पूर्ण स्वायत्तता देने की तैयारी कर ली गई है। यह निर्णय जम्मू कश्मीर को भारत से तोड़ने का देशघातक इरादा रखने वालों की विजय माना जाएगा। मार्च 2006 में प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह द्वारा गठित पांच कार्य दलों में से सेवानिवृत्त न्यायधीश सगीर अहमद की अध्यक्षता वाले पांचवें कार्य दल ने अपनी रपट में कहा है कि जम्मू कश्मीर को स्वायत्तता देने के मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया जाए और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के अस्थाई स्टेट्स पर एक बार अंतिम फैसला कर दिया जाए। यह रपट गत 23 दिसंबर को जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पास भेज दी गई है।इस रपट में स्पष्ट कहा गया है कि 1975 में हुए शेख-इंदिरा समझौते अथवा किसी एयरोप्रीएट फार्मूला के मद्देनजर “ऑटोनोमी” देने पर सोचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी भारत विरोधी गतिविधियों के लिए जेल के सींकचों में बंद शेख मुहम्मद अब्दुल्ला को रिहा करके उसके साथ एक समझौता किया और उसे प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। अब इसी तरह से अब्दुल्ला के दल नेशनल कांफ्रेंस के प्रस्ताव “जम्मू कश्मीर को स्वायत्तता दो” को स्वीकार करके प्रदेश में व्याप्त अलगाववाद को पुरस्कृत करने का खतरनाक खेल खेला जा रहा है। नेशनल कांफ्रेंस द्वारा पारित “ऑटोनोमी प्रस्ताव” के अनुसार जम्मू कश्मीर को 1953 वाली संवैधानिक स्थिति में लाया जाए। अर्थात रक्षा, संचार और विदेश मामलों को केन्द्र के पास रखकर शेष सभी मामलों के लिए प्रदेश को “आजाद” कर दिया जाए। अगर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इशारे पर तैयार की गई रपट व्यवहार में आ गई तो जम्मू कश्मीर की “आजादी” के लिए चल रहे अलगाववादी षड्यंत्रों की विजय होगी। ज्ञातव्य है कि इस कार्य दल के अध्यक्ष सगीर अहमद पिछले कई वर्षों से अस्वस्थ होकर डाक्टरों के कहने पर बिस्तर में पड़े हुए हैं। इनकी अध्यक्षता में कार्य दल की अंतिम बैठक 2-3 सितंबर 2007 को नई दिल्ली में हुई थी। जाहिर है कि यह रपट उन्होंने तैयार नहीं की। उनके नाम से सरकार ने आनन फानन में तैयार करवा ली है।इस रपट में यह भी कहा गया है कि जम्मू और लद्दाख के साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा। क्षेत्रीय पक्षपात की सभी शिकायतें निराधार हैं। लद्दाख को केन्द्र शासित क्षेत्र बनाना भी उचित नहीं है। प्रदेश सरकार की तोता रटंत अर्थात जम्मू कश्मीर में कहीं कोई पक्षपात नहीं है के साथ सहमति प्रकट करके प्रधानमंत्री और उनके सलाहकारों ने अपने वोट बैंक को मजबूत करने का ऐसा खेल खेला है जिससे भारत की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। प्रश्न यह है कि स्वायत्तता की मांग तो केवल कश्मीर घाटी में अलगाववादी ताकतें कर रही हैं, फिर जम्मू और लद्दाख को क्यों बलि का बकरा बनाया जा रहा है? द13
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