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भारत की धरा “वीरभोग्या वसुंधरा” के गान से अभिमंत्रित है। मातृभूमि के सम्मान की रक्षा के लिए असंख्य बलिदानियों ने अपने रक्त से भारत माता के चरणों को अभिसिंचित किया है। उनकी गाथा इतनी रोमांचकारी और प्रेरणास्पद है कि बार-बार स्मरण करने व दुहराने का मन होता है। उनकी गौरवशाली बलिदानी स्मृतियों को अक्षुण्ण रखने के लिए ही कहा गया कि “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।” भारत की भावी पीढ़ियां इस इतिहास से परिचित हों व इस गौरवगान को अपना स्वर दें, इसी उद्देश्य से अनेक मनीषियों ने समय-समय पर विविध रूपों में इस इतिहास को लिपिबद्ध करने का यशस्वी प्रयास किया है। इसी कड़ी में दिल्ली के प्रख्यात शिक्षाविद् व बलिदानी वीरों के चरित्र लेखन के लिए समर्पित श्री रविचंद्र गुप्ता ने “स्वतंत्रता सेनानी सचित्र कोश” नाम से एक सचित्र ग्रंथ तैयार किया है जिसका एक-एक पृष्ठ बलिदानी वीरों के जीवन की रक्तिम आभा से तो आलोकित है ही, भारत के स्वाधीनता आंदोलन में प्रेरक भूमिका निभाने वाली आध्यात्मिक विभूति श्रीमद् राधा बाबा, गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक पुण्यात्मा श्रद्धेय हनुमान प्रसाद पोद्दार व पुरी के शंकराचार्य रहे वैदिक गणित के मीमांसाकार पूज्यपाद भारती कृष्ण तीर्थ महाराज जैसे तपस्वियों के स्मरण से भी यह ग्रंथ विभूषित है। यह ग्रंथ 1760 से लेकर 1947 तक ब्रिटिश काल के प्रमुख शहीदों, क्रांतिवीरों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की संक्षिप्त बहुरंगीय चित्रगाथा है। इसे आठ कड़ियों में पिरोया गया है। इसकी प्रथम कड़ी “रक्त का प्रथम अघ्र्य” में उन प्रेरक घटनाओं, आंदोलनों एवं क्रांतिवीरों का उल्लेख है जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वाधीनता समर की भावभूमि तैयार की थी। इसके बाद की कड़ियों में उन राष्ट्रनायकों की चित्रकथाएं हैं जो भारत देश में रहकर अथवा विदेशी धरती से भारत की स्वतंत्रता हेतु अहिंसा अथवा क्रांति के माध्यम से अंग्रेजी शासन को टक्कर देते रहे। इस ग्रंथ में 12-13 वर्ष से लेकर 20 वर्ष तक के किशोर-युवाओं के बलिदान की रोमांचक गाथाएं भी हैं और स्वतंत्रता संघर्ष की यज्ञाग्नि में आहुति देने वाले प्रमुख पत्रकारों, विद्वान, लेखकों, कवियों, संतों-शंकराचार्यों व राजनेताओं की प्रेरक भूमिका भी।वरिष्ठ पत्रकार व ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों के प्रेरक प्रसंगों को खोज-खोजकर लिखने के लिए ख्यात श्री शिवकुमार गोयल इस ग्रंथ की भूमिका में युवा कवि वागीश दिनकर की पंक्तियों “सचमुच बलिदानी वीर वहीं पैदा होते हैं, बलिदान जहां सम्मानित होते रहते हैं। वह देश सदा जीवित रहने का अधिकारी, जिसके जन बलिदानों की गाथा कहते हैं” का उल्लेख करते हुए लिखा है कि “भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास अत्यंत रोमांचकारी, प्रेरणास्पद व समृद्ध है। इस दृष्टि से “स्वतंत्रता सेनानी सचित्र कोश” एक अनूठी पुस्तक कही जाएगी जिसमें स्वाधीनता के संघर्ष में बलिदान देने वाले, फांसी पर झूलने वाले, जेलों में अमानवीय यातनाएं सहन करने वाले मातृभूमि के उपासकों के रंगीन चित्रों के साथ उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर ऐतिहासिक कार्य किया गया है। इस ग्रंथ में जहां सशस्त्र क्रांति में विश्वास रखने वाले बलिदानियों को शामिल किया गया है, वहीं गांधी जी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से राष्ट्र को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सत्याग्रह कर जेलों में अमानवीय यातनाएं सहन करने वाले, पुलिस की गोलियों के आगे सीना तान देने वाले अनेक राष्ट्रभक्तों को भी शामिल किया गया है। ग्रंथ में कुछ स्वतंत्रता सेनानी साहित्य मनीषियों तथा उन धार्मिक विभूतियों के चित्र परिचय भी दिए गए हैं जिन्होंने आजादी की खातिर जेलों में यातनाएं सहन कीं।”राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज को समर्पित इस ग्रंथ के आठ अध्यायों 1-रक्त का प्रथम अघ्र्य, 2-1857 का आग्नेय झंझावात, 3-वंदेमातरम् बोल, 4-अहिंसक क्रांति का उद्घोष, 5-क्रांति की मशालें, 6-शहीद बच्चों की गौरवगाथा, 7-“चलो दिल्ली” नारा गूंज उठा और 8-देशहित तिल-तिल जले जो, में वर्णित एक के बाद एक गाथा राष्ट्रभक्ति व मातृभूमि के प्रति समर्पण के भाव को जिस ऊंचाई तक ले जाती है वह अभिनंदनीय है। ग्रंथ में अनेक बलिदानियों के जीवन का वर्णन व उनका चित्र तो वास्तव में दुर्लभ हैं। चित्रकार गुरु दर्शन सिंह “बिंकल” ने चित्रों को जीवंत बनाने का भरसक प्रयास किया है। चित्रकार गुरु दर्शन सिंह “विकल” ने चित्रों को जीवंत बनाने का भरसक प्रयास किया है। सचमुच यह एक स्तुत्य प्रयास है। इसके लिए लेखक व प्रकाशक साधुवाद के पात्र हैं। यह ग्रंथ हर देशभक्त के लिए संग्रहणीय व पठनीय है। द बभाश20
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