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आर टी आई मामले पर माया सरकार घेरे मेंशशि सिंहसूचना के अधिकार के सवाल पर उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को न केवल राज्य के विपक्षी दलों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ रहा है वरन राजभवन की भृकुटि भी टेढ़ी हो गयी है। सुरक्षा, गुप्तचर सीमा और विदेश जैसे नाजुक और संवेदनशील मामलों को छोड़कर प्राय: हर विषय की सूचना पाना आम नागरिक का अधिकार है। ऐसा कानून जब केन्द्र सरकार ने बनाया था तो उस समय ही यह स्पष्ट कर दिया गया था कि राज्य सरकारें अपने हिसाब से किसी भी प्रकार का बड़ा फेरबदल नहीं कर सकतीं। अगर उनकी किसी भी तरह की फेरबदल करने कीविवाद का पहला मुद्दा यह है कि राज्य सरकार ने सीधे नागरिक सरोकारों से जुड़े हुए मुद्दों को भी आरटीआई के दायरे से बाहर कर दिया। दूसरा सवाल संवैधानिक है, जो मायावती सरकार के लिए फंदा साबित हो सकता है। नागरिक सवालों को आरटीआई से बाहर रखने पर विपक्षी दल नाराज हैं तो राजभवन को नजरंदाज किये जाने पर खुद राज्यपाल टीवी राजेश्वर सख्त नाराजगी जता चुके हैं। विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर मुखर हो रहीं हैं। चौतरफा दबावों के चलते राज्य सरकार घिरा हुआ महसूस कर रही है उसके पास सवालों के जवाब नही है।2 जून को जो अधिसूचना जारी की गयी थी उसमें राज्यपाल की नियुक्ति, मंत्रियों, राज्यमंत्रियों व उपमंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रियों के लिए आचार संहिता, राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति को भेजे जाने वाली मासिक अर्धशासकीय पत्र की सामग्री, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित पत्रावली, महाधिवक्ता की नियुक्ति, मंत्रियों, सांसदों के खिलाफ शिकायत की जांच, पद्म पुरस्कारों से जुड़ी सूचना, उ0प्र0 कार्य नियमावली 1975 की अधिसूचनाएं, साइबर कार्य, अन्य राज्यों के कार्य नियामवली संबंधी कार्य-भारत सरकार के एलोकेशन आफ रूल्स आफ बिजनेस, सचिवालय अनुदेश संशोधन एवं व्याख्या, उ0प्र0 कार्य (बंटवारा) नियामावली 1975 की अधिसूचनाएं जैसे 14 विषयों को सूचना के अधिकार कानून से बाहर किया गया था। इस पर हंगामा होना स्वभाविक था। भाजपा, सपा और कांग्रेस समेत कई सामाजिक संगठनों ने सख्त विरोध की चेतावनी दी। कांग्रेस के प्रतिनिधिमण्डल ने राज्यपाल से मिलकर अधिसूचना की संवैधानिकता पर सवाल खड़ा किया। आनन-फानन में सरकार ने पुरानी अधिसूचना को र करते हुए 7 जून को नई अधिसूचना जारी कर दी। इसमें राज्यपाल की नियुक्ति, मंत्रियों, राज्यमंत्रियों व उपमंत्रियों की नियुक्ति, मंत्रियों के लिए आचार संहिता, राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति को भेजे जाने वाली मासिक अर्धशासकीय पत्र की सामग्री, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित पत्रावली को आरटीआई के दायरे से बाहर करते हुए शेष 9 विषयों को आरटीआई दायरे में रखा गया। इस बार भी अधिसूचना राज्यपाल की अनुमति या राजभवन की सहमति के बिना जारी की गयी। इस मामले में राज्यपाल ने सामाजिक संगठनों और विपक्षी पार्टियों के विरोध को अपने पत्र में शामिल करते हुए राज्य सरकार से पूरे मामले पर रपट तलब की है। उधर राज्य सरकार का कहना है कि उसे अधिसूचना जारी करने का अधिकार है।संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए तो फिलहाल राज्य सरकार को ऐसी अधिसूचना जारी करने का अधिकार नहीं है। नौ विषयों को छोड़ दिया जाये तो अन्य पांच विषय जो आरटीआई के दायरे से बाहर किये गये हैं, उन्हें भी दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता है। सूचना का अधिकार एक्ट की धारा-24 (4) के तहत राज्य सरकार26
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