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रामनारायण त्रिपाठी “पर्यटक” लोकतंत्र का यज्ञ हो रहा अपनी आहुति दान करें। राष्ट्र धर्म संस्कृति संरक्षण के हित में मतदान करें।। बांट रहे जो लोग हमें उनसे सतर्क रहना होगा। चाहे जो भी मत मजहब हो भारतीय कहना होगा। जातिवाद अलगाववाद पर आओ शर-संधान करें।। लगी विदेशी दृष्टि देश पर माता हमें निहार रही। कटी हुई बाहें दिखलाकर हम सबको धिक्कार रही। बन सुपुत्र हम भारत मां का फिर उज्जवल परिधान करें। राम कृष्ण शिव की गरिमा को हमें सुरक्षित रखना है। सावरकर सुभाष अशफाकुल्ला के पथ को वरना है। जाति वंश की कुटिल नीति का मिलकर हम अवसान करें।।युग परिवर्तन की वेला है हम पर है दायित्व बड़ा। हमें निगल जाने को सम्मुख आतंकी हैवान खड़ा। उसकी गर्दन तोड़ राष्ट्र का फिर से गौरव गान करें।। राष्ट्रवाद को छोड़ विभाजित रहने की मत भूल करें। ऐक्य मंत्र पढ़ समरसता की सिर पर पावन धूल धरें। कमलासन पर भारत मां हो संकल्पित अभियान करें।। चारों ओर शत्रु बैठे हैं हमें संभल कर चलना है। अक्षत रहे मान भारत का फूंक-फूंक पग धरना है। विजय सुनिश्चित होगी अपनी जन-जन का आह्वान करें।। लोकतंत्र का यज्ञ हो रहा अपनी आहुति दान करें। राष्ट्र धर्म संस्कृति संरक्षण के हित में मतदान करें।।16
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