|
तथाकथित बुद्धिजीवी धर्म की परम्परा, परिपाटी एवं उसके वर्तमान स्वरूप को अंधविश्वास व रूढ़िवाद की संज्ञा देते हैं, उसके प्रति व्यंग्यात्मक रवैया अपनाते हैं। उनकी दृष्टि से धार्मिक मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। किन्तु लेखक श्री के.वी. सिंह ने अपनी पुस्तक “हिन्दू धर्म में वैज्ञानिक मान्यताएं” में सनातन धर्म एवं संस्कृति से जुड़ी छोटी-छोटी बातों एवं मान्यताओं के पीछे के गहरे विज्ञान को प्रकाशित किया है।आम धारणा यह है कि मंगलवार को नाखून और बाल नहीं काटने चाहिए। आखिर इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं या यह अंधविश्वास मात्र है। इसका खुलासा लेखक ने एक अध्याय में किया है जो सारगर्भित है। लेखक के अनुसार मनुष्य का शरीर सर्दी-गर्मी को संतुलित आवश्यकतानुसार कर लेता है। इस संतुलन को बनाने में हमारे शरीर के व्यर्थ माने जाने वाले अंग नाखून एवं बाल दोनों की बड़ी भूमिका होती है। मंगलवार को शरीर में उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त उर्जा और मानव-विद्युत को ये दोनों अंग अपने में संचित करके रखते हैं। मंगलवार के दिन जब हम बाल या नाखून काटते हैं तो शरीर की विद्युत ऊर्जा का क्षय हो जाता है, इसका आंतरिक संतुलन बिगड़ जाता है।मंदिरों में शंख और घंटा बजाने के पीछे विज्ञान है, कोई अंध मान्यता या पूर्वग्रह नहीं। सच्चाई यह है कि शंख और घंटा ध्वनि से कीटाणु नष्ट या फिर निष्क्रिय हो जाते हैं। मूकता, हकलापन, दमा एवं फेफड़ों की बीमारियां शंख फूंकने से दूर होती हैं। शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्सियम की मात्रा होती है, जो जल को विसंक्रमित करती है। इसलिए शंख में भरकर रखा जल पीने और शरीर पर छिड़कने से रोगाणुओं का नाश हो जाता है।आम जीवन में पुरुषों के दोनों कानों को छेदा जाता था, जो हमारे संस्कारों में से एक संस्कार है। क्या इसके पीछे विज्ञान है? कानों को बिंधवा लेने से शौच-मूत्र क्रियादि के समय अज्ञातरूप से स्खलित वीर्य का क्षरण नहीं होता। कानों की नाड़ियां जाग्रत हो जाती हैं। डायबीटिज, प्रमेह की बीमारियों से बच सकते हैं।रूद्राक्ष धारण करने का प्रचलन मात्र जादू-मंत्र टोना के कारण नहीं अपितु इसके गुण-धर्म हैं, जिनका वैज्ञानिक आधार है। अमरीका के डाक्टर ऐबराहिम जार्जु ने रुद्राक्ष के औषधीय गुणों पर शोध किया है। उनका निष्कर्ष है कि रुद्राक्ष मानसिक रोगों को ठीक करता है। यही कारण है कि प्राचीन काल से रुद्राक्ष धारण करने का विधान हमारे धर्मशास्त्रों में है।पुस्तक का एक महत्वपूर्ण अध्याय है “भारत हजारों वर्षों से आध्यात्मिक जगद्गुरु क्यों रहा है?” इसमें विस्तार से चर्चा है कि भारत पृथ्वी के उस विशिष्ट भूभाग पर स्थित है जहां सूर्य, बृ#ृहस्पति ग्रह का विशेष प्रभाव पड़ता है। सूर्य और बृहस्पति मनुष्य की आध्यात्मिकता के कारक माने जाते हैं।इन दोनों से आने वाली विशेष तरंगों का विकरण भारत के भूभाग को गहन रूप से प्रभावित करता है। इस कारण भारत में आध्यात्मिकता का वातावरण बना रहता है। जाहिर है जहां ऐसा वातावरण बना रहेगा वहां सिद्ध पुरुष भी अधिक पैदा होंगे। अरावली पर्वत और हिमालय पर्वतमाला, सप्त नदियों, छह ऋतुओं तथाविशेषवनस्पतियों का भी बहुत बड़ा हाथ है। दपुस्तक का नाम : हिन्दू धर्म में वैज्ञानिक मान्यताएं लेखक : के.वी. सिंह प्रकाशक : ग्रंथ अकादमी, 1659, पुराना दरियागंज, नई दिल्ली-110002 पृष्ठ : 152 – मूल्य : 200 रुपए20
टिप्पणियाँ