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गत 24 मई को पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ बच्चों के दिल्ली पहुंचने के साथ ही यहां वनवासी कल्याण आश्रम का सातवां विशेष छात्रावास प्रारंभ हो गया। उल्लेखनीय है कि आश्रम द्वारा गोरखपुर, कानपुर, वाराणसी, सहारनपुर, रुद्रपुर और भिवानी में पहले से ही छह विशेष छात्रावास संचालित हो रहे हैं। इन छात्रावासों में पूर्वोत्तर राज्यों के उन सुदूर गांवों के वनवासी बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं, जहां शिक्षा की सुविधा नहीं है या जहां अलगाववादियों का प्रभाव है। इन विशेष छात्रावासों के अलावा आश्रम के पूरे देश में 196 छात्रावास हैं। दिल्ली के छात्रावास का नामकरण नागालैण्ड के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और रानी गाइदिन्ल्यू के भाई शहीद जादोनांग के नाम पर किया गया है। इसका पता है- शहीद जानोदांग छात्रावास, जेलदार की हवेली (कन्हैया भवन), बादली गांव, दिल्ली-110022।24 मई की सुबह कुल 36 बच्चे दिल्ली पहुंचे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इन बच्चों का वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती आदि संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भव्य स्वागत किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री भैया जी जोशी, वनवासी कल्याण आश्रम, दिल्ली के उपाध्यक्ष श्री शान्ति स्वरूप बंसल, प्रांत संगठन मंत्री श्री जनार्दन, सह मंत्री श्री भगवान, छात्रावास संचालन समिति के प्रमुख श्री राजकुमार गुप्ता, श्री सूबे सिंह यादव, श्री विनोद कपूर, वनवासी कल्याण आश्रम बादली की जिला समिति के सदस्य श्री प्रकाश सिंह राठौर, डा. ए.के. चौधरी, श्री सन्त कुमार शर्मा, सेवा भारती, दिल्ली के मंत्री श्री ऋषिपाल डडवाल सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे।वनवासी कल्याण आश्रम, उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के सह क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री हनुमान नारायण ने बताया कि ये बच्चे असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय के हैं। इनमें 17 को दिल्ली में रखा गया और 19 सहारनपुर भेजे गए। श्री नारायण ने यह भी बताया कि ये बच्चे भलस्वा गांव के शिशु मन्दिर में पढ़ेंगे और इनका पूरा खर्च समाज के सहयोग से वनवासी कल्याण आश्रम करेगा। श्री नारायण के अनुसार पूर्वोत्तर के सुदूर गांवों में सिर्फ ईसाई संगठनों के स्कूल हैं। इस कारण लोगों को न चाहते हुए भी अपने बच्चों को उनके स्कूलों में भेजना पड़ता है। जबकि ये ईसाई संगठन सेवा और शिक्षा के नाम पर पूर्वोत्तर में विधर्मी एवं विदेशी तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं। श्री नारायण ने कहा कि पूर्वोत्तर से बाहर रखकर इन बच्चों को इसलिए पढ़ाया जाता है ताकि उनमें भारतीयता का भाव पनपे और वे पढ़ाई के बाद अपने-अपने क्षेत्रों में विधर्मी तत्वों की गतिविधियों के विरुद्ध जन-जागरण करें।अरुण कुमार सिंह31
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