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देश का यह दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता के 62 वर्षों बाद भी हम अपने शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को उचित सम्मान नहीं दे पाए हैं। अगर सरकारी दस्तावेज को सही माना जाए तो अभी तक यह तय नहीं है कि 13 अप्रैल, 1919 को जनरल डायर की सेना के हाथों जलियांवाला बाग में मारे गए निहत्थे लोग शहीद हैं या नहीं। अमृतसर के उपायुक्त ने केन्द्र सरकार को रपट भेजी है कि इस काण्ड के बाद सरकार ने मृतकों के परिजनों को उचित मुआवजा दे दिया था। अब केन्द्र सरकार को फैसला लेना है कि इस हत्याकाण्ड में मारे गए लोग शहीद थे या नहीं।उल्लेखनीय है कि जलियांवाला बाग शहीद परिवार समिति के अध्यक्ष श्री भूषण बहल ने इन शहीद परिवारों को सरकारी सुविधाएं देने का केन्द्र सरकार से आग्रह किया था। घोर विडम्बना यह है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पास इन शहीदों की कोई सूची तक नहीं है। 14 अगस्त,2008 को गृह मंत्रालय के उपसचिव आर.सी. नायक ने पत्र क्रमांक 05-35-2008 (एफएफ-पी) भेजकर जिला प्रशासन से इसके बारे में जानकारी मांगी। जिला प्रशासन ने 487 लोगों की सूची तो भेजी है परन्तु साथ में तर्क दिया कि इन लोगों के परिजनों को चार से लेकर बीस हजार रुपए तक मुआवजा दिया जा चुका है। अगर सोने की कीमत से मुकाबला किया जाए तो यह राशि आज 20 लाख रूपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक बैठती है। समिति के संयुक्त सचिव टेकचंद कहते हैं कि मुआवजा मिलने के आधार पर अगर शहीदों की शहादत पर सवालिया निशान खड़े किए जाते रहे तो कल को 1962, 1965 और 1971 तथा कारगिल युद्ध के नायकों की शहादत पर भी प्रश्नचिह्न लगने लगेंगे।32
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