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केन्द्र सरकार की उदासीनता के चलते इस साल भारत-चीन में परम्परागत व्यापार नहीं हो सका। ज्ञात हो कि सीमान्त व्यापार भारतीय क्षेत्र गुजी और तिब्बत की मण्डी तकलकोट के बीच 1991 से चल रहा था। चीन ने इस साल अपने यहां ओलम्पिक खेलों का बहाना देकर इस व्यापार पर रोक लगा दी।चीन के इस कड़े रुख का असर उत्तराखण्ड के रास्ते होने वाले परम्परागत भारत-तिब्बत सीमान्त व्यापार पर भी पड़ा। उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड सरकार ने व्यापारियों को “ट्रेड पासव् भी जारी किए, लेकिन चीन के अधिकारियों ने भारत के व्यापारियों को वापस लौटा दिया। खास बात ये थी कि सीमान्त व्यापार रोके जाने की कोई सूचना चीनी दूतावास ने जारी नहीं की। राज्य सरकार ने इस बारे में केन्द्र सरकार को पत्र भी लिखे, पर कोई जवाब नहीं मिला।राज्य के पर्यटन-धर्मस्थ संस्कृति तथा सीमान्त मामलों के मंत्री श्री प्रकाश पंत का कहना है कि भारत सरकार ने न सिर्फ कैलाश मानसरोवर यात्रा के बारे में चीन सरकार से वार्ता करने में उदासीन रुख अपनाया बल्कि भारत-चीन व्यापार मुद्दे पर तो एकदम चुप्पी साधे रखी। श्री पंत कहते हैं कि यदि केन्द्र सरकार थोड़ा-सा गम्भीर रुख अपनाती तो 1991 से चले आ रहे व्यापार का सिलसिला नहीं टूटता।गौरतलब है कि भारत-चीन सीमान्त व्यापार में चाय, नमक, काफी, भेड़-बकरी, रेशम, ऊन, चंवर, जैसी छोटी-छोटी 38 वस्तुओं की खरीद-बिक्री होती है। हर साल लगभग तीन सौ भारतीय व्यापारी, तकलाकोट जाते हैं। करीब 120 कि.मी. पैदल मार्ग से व्यापारियों को ये माल धारचूला मण्डी तक लाना पड़ता है। इस वर्ष माल न आने से कई व्यापारियों के लिए रोजी-रोटी का भी संकट पैदा हो गया।30
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