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भारत के स्वाधीनता-संग्राम का इतिहास अति व्यापक एवं उत्प्रेरक है। इतिहासकारों ने इस संग्राम को विभिन्न दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य से परखा है। लेखक श्री रूपनारायण ने इस संग्राम को एक नई दृष्टि दी है। पुस्तक की विषय-वस्तु मुख्यत: 20वीं शताब्दी का इतिहास है। इसके पूर्व के इतिहास की झलक भी कहीं-कहीं है।भारतीय राजनीति की त्रिमूर्ति-लाल, बाल और पाल के योगदान की संक्षिप्त चर्चा तृतीय अध्याय में संकलित है। “कूका आंदोलनव् की विस्तार से चर्चा है तो जालियांवाला बाग की घटना को भी स्थान दिया गया है। एक अध्याय में महिलाओं के योगदान का वर्णन है। लेखक ने नेताजी सुभाष एवं चन्द्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी योगदान को बेहद आदर से याद किया है। तत्कालीन भारतवर्ष में घटित स्वाधीनता-संग्राम के विलुप्त अध्याय इस पुस्तक में हैं। महात्मा गांधी के योगदान का कई अध्यायों में स्मरण किया गया है। अध्याय “विनायक दामोदर सावरकरव् में वीर सावरकर के स्वाधीनता-संग्राम में योगदान का आदि से अंत तक का वर्णन आंदोलित करता है। अंदमान (कालापानी) जेल की दुर्दशा और उस विकट परिस्थिति में वीर सावरकर के जूझने का अदम्य उत्साह का वर्णन रोमांच पैदा करता है।लेखक ने संग्रामगाथा को विस्तार देते हुए “गोआ-मुक्तिव् अभियान का भी वर्णन किया है। इसमें वर्णित है कि किस प्रकार सन् 1946 में राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में यह आंदोलन प्रारंभ हुआ और वर्षों तक चलता रहा। इस आंदोलन का तात्कालिक लक्ष्य गोआ में नागरिक स्वतंत्रता स्थापित करना था। दादरा और नगर हवेली पुर्तगाली दासता से सन् 1954 में मुक्त हुए। इसका श्रेय “युनाइटेड फ्रंट ऑफ गोआंशव् को जाता है। सन् 1961 में भारतीय सेना का “आपरेशन विजयव् प्रारम्भ हुआ। भारतीय सेना ने 40 घंटे के भीतर 19 दिसम्बर, 1961 को गोआ को पुर्तगालियों से आजाद करा लिया। इस प्रकार 15 वर्षों के संघर्ष के पश्चात् यह आन्दोलन सफल हुआ।कुल 40 अध्यायों तक विस्तृत यह गाथा-ग्रंथ इतिहास प्रेमियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं रोचक है। लेखक का दावा है, “इस पुस्तक में दिए हुए प्रसंग किस्से या इतिहास नहीं हैं। ये गाथाएं हैं। गाथाएं जो संस्कृति बनाती हैं। लोगों को प्रेरणा देती हैं।व्दपुस्तक का नाम : स्वाधीनता संग्राम के सुनहरे प्रसंग लेखक : रूपनारायण प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन 205 बी, चावड़ी बाजार, दिल्ली-110006 पृष्ठ : 244 – मूल्य : 250 रुपए23
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