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भारत माता मंदिर, हरिद्वार के संस्थापक एवं भानुपुरा पीठ के पूर्व शंकराचार्य तथा सुविख्यात संत स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज ने अपना सर्वस्व ही समाज में समता, समरसता तथा सेवा-भावना जागृत करने के लिए अर्पित किया हुआ है।एक बार गुजरात के एक धनिक भक्त पूज्य स्वामी जी महाराज के दर्शनों के लिए पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी को बताया कि वे इस वर्ष होली पर्व वृन्दावन व बरसाना में मनाएंगे। होली पर बांकेबिहारी जी का फूल बंगला बनवाएंगे। विभिन्न खाद्य व्यंजनों का प्रसाद बिहारी जी को चढ़ाएंगे।स्वामी जी ने कहा, “सेठ जी, यह आपका अहोभाग्य है कि इस बार ब्राज की रंगीली होली बांकेबिहारी जी तथा राधा-रानी के दर्शन कर मनाएंगे। ब्राज की होली का तो आनन्द ही अलग है।”कुछ क्षण मौन रहने के बाद स्वामी जी ने कहा- “सेठ जी, बांकेबिहारी जी को तरह-तरह के व्यंजन अर्पित कीजिए- बरसाना में राधारानी को वस्त्राभूषण भेंट कीजिए। किन्तु साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के सखा गोप भी ब्राज में वास करते हैं। उन गरीब सखाओं की बस्ती में पहुंचकर उन्हें वस्त्र तथा भोजन सामग्री भेंट कीजिए। बच्चों को खिलौने व गुलाल-अबीर दीजिए जिससे उनकी भी होली आनंद के साथ मन सकेगी।” सेठ जी ने स्वामी जी के आदेश को शिरोधार्य कर वृन्दावन व बरसाना में भगवान के भोग के साथ-साथ गरीबों की बस्ती में पहुंचकर बच्चों को मिठाई, गुलाल, अबीर तथा पिचकारियां बांटीं। पहली बार उन्हें कई गुना अधिक अनूठा संतोष व शांति की अनुभूति हुई है। प्रतिनिधि17
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