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हारिये न हिम्मतमधु जगमोहनबच्चो!”जीतना” किसे अच्छा नहीं लगता। तुम परीक्षा देते हो, पास होने पर खुशी मनाते हो। माता-पिता का प्यार आशीर्वाद पाते हो। तुम मनपसन्द उपहार भी लेते हो, और अगली कक्षा में जाने की उत्सुकता और नई किताब कापी के लिए बाजार जाने के लिए माता-पिता को जल्दी करने को कहते हो। बच्चो! तुम खेलों में भी भाग लेते हो, क्यों? विजय पाने के लिए-आगे बढ़ने के लिए। और तुम्हारे माता-पिता भी सदैव तुम्हारी विजय, जीत और सफलता, इतना ही नहीं, तुम्हारे “प्रथम” स्थान प्राप्त करने की भी अपेक्षा करते हैं। यह अच्छी बात है। तो बच्चो “लगे रहो”, क्योंकि लगन और परिश्रम हमेशा फलदायक होता है।किन्तु एक बात का ध्यान हमेशा रखो कि जीत के साथ हार भी है जैसे “जय” के साथ “पराजय”, लाभ के साथ हानि और इसी प्रकार हर एक स्थिति के दो पहलू होते हैं। सदैव ही हमारी “जीत” हो। हम सदैव अव्वल आएं, यह कोई जरूरी नहीं। इसका यह अर्थ कतई नहीं कि तुम आगे बढ़ने का यत्न करना छोड़ दो, यह सोचकर कि कहीं “हार” हो गई तो? ऐसा विचार मन में लाना ही तुम्हारी “हार” है।तुम स्कूल जाते हो, अपने साथियों से आगे बढ़ने का यत्न करते हो। टी.वी., रेडियो, समाचार पत्रों से जब तुम उभरते खिलाड़ियों के बारे में जानते हो, सुनते हो, पढ़ते हो, तो क्या तुम्हारे मन में भी उनकी तरह ही विजय प्राप्त कर देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से प्यार भरा साक्षात करने और पदक पाने की बलवती इच्छा, नहीं जगती? कई बच्चे तो अपनी इसी “इच्छा” को साकार करने का सपना देखने लगते हैं, और इसके लिए उन्होंने अपने पढ़ाई कक्ष में हाल ही में हुए ओलम्पिक खेलों के विजेताओं के चित्र, अखबारों से काट-काट कर दीवारों पर चिपका दिए हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हर बालक में-यों कहिए कि बालक ही नहीं, बड़ों में भी “ख्याति”, विजय और सफलता प्राप्त करने की उत्कट भावना होती है।आज जिसे देखिए छोटी आयु से ही बैट-बॉल लेकर क्रिकेट खेलता नजर आता है। या फिर 4,5 वर्ष का नन्हा बालक, तबला, सितार या हारमोनियम बजाने की शिक्षा अपने माता-पिता या गुरु की मदद से लेता नजर आता है। कितना अच्छा लगता है, यह सोचकर कि एक दिन यह नन्हा बालक, देश का विख्यात गायक, या वादक बनेगा और उसका “सपना” साकार होगा।ऐसा नहीं है कि सभी के सपने साकार हों, तो क्या हुआ? उन्होंने प्रयास तो किया, परिश्रम तो किया। क्या पता अभ्यास करते-करते वह भी एक दिन विजय प्राप्त कर ले।करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान,रसरी आवत् जात ते, सिल पर पड़त निशान।अर्थात् अभ्यास और लगातार अभ्यास से मन्दबुद्धि व्यक्ति भी बुद्धिमान एवं विवेकी हो जाते हैं, जैसे रस्सी रगड़ते-रगड़ते पत्थर जैसी- कठोर वस्तु पर निशान बन जाता है। बच्चो इसी संदर्भ में एक कहानी बड़ी प्रसिद्ध है, तुम भी सुनो, पढ़ो।एक बड़ा पराक्रमी राजा था। नाम था उसका “शिवम”। उसका बड़ा साम्राज्य था, सेना थी, हाथी, घोड़े थे। और बड़ा साम्राज्य पाने की उसकी लालसा बढ़ती जाती थी। इसी के फलस्वरूप उसने “विजयी” होने के लिए “पड़ोसी” राज्य पर हमला कर दिया। पड़ोस में छोटे-छोटे कई राज्य थे। अपने साथी राजा पर हमला होते देख उन्होंने उस राजा को “मदद” करने का आश्वासन दिया और उसके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर आ पहुंचे युद्ध के मैदान में। घमासान युद्ध का भयानक दृश्य देखकर राजा शिवम के छक्के छूट गए। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि मुकाबले में इतने राजा उठ खड़े होंगे। उसकी सेना में खलबली मच गई। शोर, और हाहाकार मच गया, जिससे राजा शिवम का हाथी जिस पर वह सवार था, वापस भागने लगा। राजा शिवम घबरा गया, पर हाथी था कि कहना मानने को तैयार ही नहीं था। राजा शिवम को न पाकर उसकी सेना के पैर भी उखड़ गए। बहुत से सेनानी मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। इस तरह राजा शिवम बुरी तरह पराजित हो गया। राजपाट सब नष्ट हो गया। उसका अभिमान ही उसे ले डूबा।वह दिन-रात खिन्न मन से जंगलों में भटकते-भटकते, एस वीरान छोटी-सी कुटिया में पहुंचा और वहीं डेरा डाल दिया। बहुत उदास, निराश रहने लगा। न खाता, न पीता हालांकि उसका एक वफादार सेवक उसके साथ था। एक दिन पेड़ के नीचे लेटा था। सोच रहा था, कैसे, क्या करें कि उसे दोबारा अपना राज्य मिल जाए। उसके पास तो कुछ भी नहीं, सेना भी नहीं, हथियार भी नहीं-बहुत दु:खी हो गया। तभी अचानक उसकी नजर एक चींटी पर पड़ी, जो पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रही थी। वह रेंग-रेंग कर ऊपर पहुंचती पर फिर गिरकर नीचे आ जाती। पर उसने हार नहीं मानी, फिर दोबारा चढ़ने लगी। इस बार वह पहले से थोड़ा और ऊपर पहुंची, पर अचानक फिर नीचे गिर गई। राजा देखता रहा, देखता रहा। उसने गिना कि चींटी दस बार चढ़ी, दस बार गिरी, पर यह क्या? ग्यारहवीं बार वह ऊपर तक पहुंच ही गई। वाह क्या बात है?राजा को मानो एक दिशा मिल गई। उसने आव देखा न ताव। अपने सेवक को बुलाकर हिदायत दी कि जंगलों में भटकती सेना के लोगों को इकट्ठा करें और फिर से युद्ध की तैयारी शुरू करें। इस बार किसी लालच से नहीं, बल्कि अपना खोया राज्य पाने के लिए।राजा का उत्साह देखकर, सब लोगों ने, प्रजा ने, सेनानियों ने उसका साथ देने का फैसला किया। कुछ ही महीनों में “युद्ध” की सारी तैयारी हो गई। पराक्रमी राजा शिवम ने एक चींटी की सहायता से अपनी हीन भावना, निराशा, और निर्बलता पर विजय प्राप्त की और इस बार युद्ध करने पर उसने पड़ोसी राज्य पर विजय प्राप्त कर ली। विजयी होने पर उसने सभी राजाओं को सम्मानपूर्वक अपने राज्य में निमंत्रित कर उनसे मित्रता कर ली। क्यों? क्योंकि वह जान चुका था “मित्रता, प्रेम व भाईचारे” से प्राप्त की गई विजय ही सच्ची विजय है।आशा करती हूं, कहानी तुम्हें अच्छी लगी होगी। तुम भी लगातार कोशिश करने की आदत डाल लोगे तो कठिनाइयों पर विजय पाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा।33
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